Wednesday, 31 August 2022

गणेशोत्सव

त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।
त्वं साक्षादात्मासि नित्यम्।

 वे ही ब्रह्म स्वरुप और नित्य हैं।

अत:एव अपने जीवन के सभी प्रकार के विध्नों के नाश एवं शुचिता व शुभता की प्राप्ति के लिए हमें गणेशजी की अभ्यर्थना अवश्य करनी चाहिए।_                      
                   गणपति के विविध मंत्र 
।।ॐ गं गणपतये नम:।।
।।ॐ हेम वर्णायै ऋद्धयै नम:।।
।।ॐ सर्वज्ञान भूषितायै सिद्धयै नम:।।
।।ॐ पूर्णायै पूर्णमदायै शुभायै नम:।।
।।ॐ पूर्णायै पूर्णमदायै लाभायै नम:।।
।।ॐ सौभाग्यप्रदायक धन- धान्य युक्तायै लाभायै नम:।।                               
   
      "श्रीसङ्कष्टनाशनगणेशस्तोत्रम्"

प्रणम्य   शिरसा   देवं   गौरीपुत्रं    विनायकम्।
भक्तावासं   स्मरेन्नित्यमायुष्कामार्थ    सिद्धये।।
  
    प्रथमं   वक्रतुण्डं   च  एकदन्तं    द्वितीयकम्।
   तृतीयं   कृष्णपिङ्गाक्षं   गजवक्त्रं  चतुर्थकम्।।

लम्बोदरं   पञ्चमं    च   षष्ठं   विकटमेव   च।
सप्तमं   विध्नराजेन्द्रं    धूम्रवर्णं  तथाष्टकम्।।

    नवमं   भालचन्द्रं   च   दशमं  तु   विनायकम्।
    एकादशं    गणपतिं   द्वादशं  तु   गजाननम्।।

द्वादशैतानि   नामानि   त्रिसंध्यं   यः  पठेन्नरः।
न   च  विध्नभयं  तस्य सर्वसिद्धिकरं  परम्।।

     विद्यार्थी  लभते  विद्यां धनार्थी  लभते  धनम्।
     पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्।।

जपेद् गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत्।
संवत्सरेण  सिद्धिं   च  लभते  नात्र   संशयः।।

   अष्टेभ्यो ब्राह्माणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत्।
   तस्य  विद्या  भवेत्  सर्वा गणेशस्य प्रसादतः।।              💐💐💐💐💐💐💐💐💐

Friday, 19 August 2022

सोहर

जुग जुग जियसु ललनवा,
भवनवा के भाग जागल हो
ललना लाल होइहे,
कुलवा के दीपक मनवा में,
आस लागल हो ॥

आज के दिनवा सुहावन,
रतिया लुभावन हो,
ललना दिदिया के होरिला जनमले,
होरिलवा बडा सुन्दर हो ॥

नकिया तहवे जैसे बाबुजी के,
अंखिया ह माई के हो
ललन मुहवा ह चनवा सुरुजवा त सगरो,
अन्जोर भइले हो ॥

सासु सुहागिन बड भागिन,
अन धन लुटावेली हो
ललना दुअरा पे बाजेला बधइया,
अन्गनवा उठे सोहर हो ॥

नाची नाची गावेली बहिनिया,
ललन के खेलावेली हो
ललना हंसी हंसी टिहुकी चलावेली,
रस बरसावेली हो ॥

जुग जुग जियसु ललनवा,
भवनवा के भाग जागल हो
ललना लाल होइहे,
कुलवा के दीपक मनवा में,
आस लागल हो ॥

Thursday, 18 August 2022

प्रश्न:--- गोघृत (गाय के दूध से बना घी)कभी ना मिले तो यज्ञ पूजन आदि कार्य कैसे किया जा सकता है?


घृतार्थे गो घृतं ग्राह्यं, तदभावे तु माहिषम्। 
आजं वा तदभावे तु साक्षात्तैलमपीष्यते।। 
तैलाभावे गृहृतव्यं तैलं जर्तिल संभवम्। 
तदभावे अतसि स्नेह: कौसुम्भा:सर्षपोद्भवा:।। 
वृक्षस्नेहोद्भवो ग्राह्य: पूर्वालाभे पर:पर:। 
तदभावे यवव्रीही: श्याम कान्यतमो भव:।। 

अर्थात्, 
           शास्त्रों में जहाँ कहीं भी घृत शब्द आया है वहाँ उससे गाय का घृत ही समझना चाहिए।
यज्ञ - पूजन कार्य में "गोघृत" यह मुख्य कल्प है। 
यदि गाय का घी सुलभ न हो तो भैंस का घी लेना चाहिए । 
यह भी न मिले तो बकरी या भेड़ का घी लेना चाहिए।
यदि ये न मिल सकें तो तिल के तेल का उपयोग करना चाहिए यज्ञ आदि में। 
इसके अभाव में तिसी का तेल उपयोगी है।
 तिसी का तेल न मिले तो फूल से उत्पन्न (सूरजमुखी आदि ) तेल ग्राह्य है।
 इसके अभाव में सरसो का तेल ग्राह्य है। 
सरसो का तेल भी यदि अलभ्य हो तो क्रमश: जौ, धान, साँवा और कोदो के भूसी से निकले तेल को ग्रहण करना चाहिए। 
एक बात ध्यान रहे,सबसे पहले यत्न पूर्वक गाय के घी का ही  ग्रहण करना चाहिए आलस्य , प्रमाद और वित्तशाठ्य(कंजूसी) छोड़कर यदि न मिले तो श्लोक में बताए गए क्रमानुसार प्रयोग करना चाहिए ।
🙏 साभार 🙏

Tuesday, 16 August 2022

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी



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यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥4-7॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥4-8॥

 अर्थात् 

मैं अवतार लेता हूं. मैं प्रकट होता हूं. जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूं. जब जब अधर्म बढ़ता है तब तब मैं साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं,  दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए मैं आता हूं और प्रत्येक युग में जन्म लेता हूं.

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जब भी बुराई की प्रबलता और धर्म का पतन होगा, मैं बुराई को मारने और अच्छे को बचाने के लिए पुनर्जन्म लूंगा। 
 जन्माष्टमी का मुख्य महत्व सद्भावना को प्रोत्साहित करना और बुरी इच्छा को हतोत्साहित करना है। 
 पवित्र अवसर लोगों को एक साथ लाता है, इस प्रकार कृष्ण जन्माष्टमी एकता और विश्वास का प्रतीक है ।
कृष्ण के जीवन का हर पहलू मनोरम है, मनमोहक है-- चाहे वह शिशु कृष्ण की नटखटपन हो , गोकुल में कृष्ण का जीवन हो , राधा के साथ कृष्ण का प्रेम हो या क्रूर कंस की हत्या हो ।

 भगवान कभी भी भौतिक चीजें नहीं मांगते। वे अपने भक्तों से ध्यान चाहते हैं। अपने आप को पूरी तरह से भगवान कृष्ण के प्रति समर्पित कर दें और इस जन्माष्टमी को विशेष बनाएं।

"कृं कृष्णाय नमः" ... यह श्रीकृष्ण का मूलमंत्र है जिसका जप करने से व्यक्ति को सम्पदा प्राप्त होता है. आप इस मंत्र का उच्चारण अपने दैनिक जीवन में कर सकते हैं.

"ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण: प्रचोदयात्"
.... श्रीकृष्ण के इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति के जीवन और मन से सभी दुख दूर हो जाते हैं।

"हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे"
.... यह 16 शब्दों का वैष्णव मंत्र है, जो भगवान कृष्ण का सबसे प्रसिद्ध मंत्र है. इस दिव्य मंत्र का उच्चारण करने से व्यक्ति श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन हो जाता है. चिंता तनाव से मुक्ति मिलती है।

"ॐ क्लीं कृष्णाय नमः''
.... इस मंत्र का जप करने से मनुष्य को सफलता और वैभव की प्राप्ति होती है, लेकिन इसका जप अनुष्ठान पूर्वक करना अनिवार्य है.  आप किसी भी विषम समस्या में हैं तो इस मंत्र का उपयोग कर सकते हैं। लाभदायक होता है।

"श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवाय"
.... इस मंत्र के उच्चारण से श्रीकृष्ण की कृपा व्यक्ति पर बनी रहती है।

🙏🌹 जय श्री कृष्ण 🌹🙏

Monday, 15 August 2022

महर्षि पिप्पलाद

*🌻महर्षि पिप्पलाद🌻*
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
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*🌻श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था। तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं। इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा। जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों (फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीपल के पत्तों और फलों को खाकर बालक का जीवन येन केन प्रकारेण सुरक्षित रहा।*
  
*🌻एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे। नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूंछा...*

*🌻नारद- बालक तुम कौन हो ?*

*🌻बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ।*

*🌻नारद- तुम्हारे जनक कौन हैं ?*

*🌻बालक- यही तो मैं जानना चाहता हूँ।*
   
*🌻तब नारद जी ने ध्यान धर देखा। नारद ने आश्चर्यचकित हो कर बताया कि हे बालक ! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो। तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी। नारद ने बताया कि तुम्हारे पिता दधीचि की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की वय में ही हो गयी थी।*

*🌻बालक- मेरे पिता की अकाल मृत्यु का कारण क्या था ?*

*🌻नारद- तुम्हारे पिता पर शनिदेव की महादशा थी।*

*🌻बालक- मेरे ऊपर आयी विपत्ति का कारण क्या था ?*

*🌻नारद- शनिदेव की महादशा।*
  
    *🌻इतना बताकर देवर्षि नारद ने पीपल के पत्तों और गोदों को खाकर जीने वाले बालक का नाम पिप्पलाद रखा और उसे दीक्षित किया।*

*🌻नारद के जाने के बाद बालक पिप्पलाद ने नारद के बताए अनुसार ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी ने जब बालक पिप्पलाद से वर मांगने को कहा तो पिप्पलाद ने अपनी दृष्टि मात्र से किसी भी वस्तु को जलाने की शक्ति माँगी।*

*🌻ब्रह्मा जी से वर मिलने पर सर्वप्रथम पिप्पलाद ने शनि देव का आह्वाहन कर अपने सम्मुख प्रस्तुत किया और सामने पाकर आँखे खोलकर भष्म करना शुरू कर दिया। शनिदेव सशरीर जलने लगे। ब्रह्मांड में कोलाहल मच गया।*

*🌻सूर्यपुत्र शनि की रक्षा में सारे देव विफल हो गए। सूर्य भी अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र को जलता हुआ देखकर ब्रह्मा जी से बचाने हेतु विनय करने लगे।* 

*🌻अन्ततः ब्रह्मा जी स्वयम् पिप्पलाद के सम्मुख पधारे और शनिदेव को छोड़ने की बात कही किन्तु पिप्पलाद तैयार नहीं हुए।* 

*🌻ब्रह्मा जी ने एक के बदले दो वर मांगने की बात कही। तब पिप्पलाद ने खुश होकर निम्नवत दो वरदान मांगे...*

*🌻1- जन्म से 5 वर्ष तक किसी भी बालक की कुंडली में शनि का स्थान नहीं होगा। जिससे कोई और बालक मेरे जैसा अनाथ न हो।*

*🌻2- मुझ अनाथ को शरण पीपल वृक्ष ने दी है। अतः जो भी व्यक्ति सूर्योदय के पूर्व पीपल वृक्ष पर जल चढ़ाएगा उस पर शनि की महादशा का असर नहीं होगा।*
 
     *🌻ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह वरदान दिया। तब पिप्पलाद ने जलते हुए शनि को अपने ब्रह्मदण्ड से उनके पैरों पर आघात करके उन्हें मुक्त कर दिया। जिससे शनिदेव के पैर क्षतिग्रस्त हो गए और वे पहले जैसी तेजी से चलने लायक नहीं रहे।* 

*🌻अतः तभी से शनि "शनै:चरति य: शनैश्चर:" अर्थात जो धीरे चलता है वही शनैश्चर है, कहलाये और शनि आग में जलने के कारण काली काया वाले अंग भंग रूप में हो गए।*
      
*🌻सम्प्रति शनि की काली मूर्ति और पीपल वृक्ष की पूजा का यही धार्मिक हेतु है। आगे चलकर पिप्पलाद ने प्रश्न उपनिषद की रचना की, जो आज भी ज्ञान का वृहद भंडार है.....!!*

Sunday, 14 August 2022

#संकष्टी #गणेश #चतुर्थी , #हेरम्ब #गणेश #चतुर्थी , #भाद्रपद चतुर्थी ( #Sankashti #Chaturthi ) . #4 #Stories of #Ganesh #Chaturthi

भाद्रपद मास को भादों के नाम से भी जानते हैं. भाद्रपद का माह श्री कृष्ण के साथ भगवान श्री गणेश जी की पूजा के लिए विशेष तौर पर समर्पित होता है. भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत रखने का विधान है. इसे हेरंब संकष्टी चतुर्थी भी कहते हैं.

संकष्टी चतुर्थी का अर्थ ही है संकटों को ​हरने वाली चतुर्थी. मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी को व्रत रखने और भगवान गणेश की विधि पूर्वक और शुभ मुहूर्त में पूजा करने से सारे संकट दूर हो जाते हैं और सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है.



#गणेश चतुर्थी व्रत की पहली कथा :-
 
पौराणिक एवं प्रचलित श्री गणेश कथा के अनुसार एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे थे। तब वह मदद मांगने भगवान शिव के पास आए। उस समय शिव के साथ कार्तिकेय तथा गणेशजी भी बैठे थे। देवताओं की बात सुनकर शिव जी ने कार्तिकेय व गणेश जी से पूछा कि तुम में से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। तब कार्तिकेय व गणेश जी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया। 
इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की मदद करने जाएगा।
भगवान शिव के मुख से यह वचन सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए, परंतु गणेश जी सोच में पड़ गए कि वह चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इस कार्य में उन्हें बहुत समय लग जाएगा। तभी उन्हें एक उपाय सूझा। 
गणेश अपने स्थान से उठें और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे। तब शिव जी ने श्री गणेश से पृथ्वी की परिक्रमा ना करने का कारण पूछा।

तब गणेश ने कहा - 'माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं।' यह सुनकर भगवान शिव ने गणेश जी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। इस प्रकार भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसके तीनों ताप यानी दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होंगे। इस व्रत को करने से व्रतधारी के सभी तरह के दुख दूर होंगे और उसे जीवन के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। चारों तरफ से मनुष्य की सुख-समृद्धि बढ़ेगी। पुत्र-पौत्रादि, धन-ऐश्वर्य की कमी नहीं रहेगी।


#गणेश चतुर्थी व्रत की दूसरी कथा :-
 
एक समय की बात है राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था। वह मिट्टी के बर्तन बनाता, लेकिन वे कच्चे रह जाते थे। एक पुजारी की सलाह पर उसने इस समस्या को दूर करने के लिए एक छोटे बालक को मिट्टी के बर्तनों के साथ आंवा में डाल दिया।
 
उस दिन संकष्टी चतुर्थी का दिन था। उस बच्चे की मां अपने बेटे के लिए परेशान थी। उसने गणेशजी से बेटे की कुशलता की प्रार्थना की।
 
दूसरे दिन जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो आंवा में उसके बर्तन तो पक गए थे, लेकिन बच्चे का बाल बांका भी नहीं हुआ था। वह डर गया और राजा के दरबार में जाकर सारी घटना बताई।
 
इसके बाद राजा ने उस बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने सभी तरह के विघ्न को दूर करने वाली संकष्टी चतुर्थी का वर्णन किया। इस घटना के बाद से महिलाएं संतान और परिवार के सौभाग्य के लिए संकट चौथ का व्रत करने लगीं।


#गणेश चतुर्थी व्रत की तीसरी कथा :-
 
एक समय की बात है कि विष्णु भगवान का विवाह लक्ष्‍मीजी के साथ निश्चित हो गया। विवाह की तैयारी होने लगी। सभी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, परंतु गणेश जी को निमंत्रण नहीं दिया, कारण जो भी रहा हो। अब भगवान विष्णु की बारात जाने का समय आ गया। सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह समारोह में आए। उन सबने देखा कि गणेशजी कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। तब वे आपस में चर्चा करने लगे कि क्या गणेशजी को नहीं न्योता है? या स्वयं गणेश जी ही नहीं आए हैं? सभी को इस बात पर आश्चर्य होने लगा। तभी सबने विचार किया कि विष्णु भगवान से ही इसका कारण पूछा जाए।
विष्णु भगवान से पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेश जी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि गणेशजी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता।
इतनी वार्ता कर ही रहे थे कि किसी एक ने सुझाव दिया- यदि गणेश जी आ भी जाएं तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे कि आप घर की याद रखना। आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे। यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी।
होना क्या था कि इतने में गणेश जी वहां आ पहुंचे और उन्हें समझा-बुझाकर घर की रखवाली करने बैठा दिया। बारात चल दी, तब नारद जी ने देखा कि गणेश जी तो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं, तो वे गणेश जी के पास गए और रुकने का कारण पूछा। गणेश जी कहने लगे कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है। नारद जी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके वाहन धरती में धंस जाएंगे, तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा।
अब तो गणेश जी ने अपनी मूषक सेना जल्दी से आगे भेज दी और सेना ने जमीन पोली कर दी। जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए। लाख कोशिश करें, परंतु पहिए नहीं निकले। सभी ने अपने-अपने उपाय किए, परंतु पहिए तो नहीं निकले, बल्कि जगह-जगह से टूट गए। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए।
 
तब तो नारद जी ने कहा- आप लोगों ने गणेश जी का अपमान करके अच्छा नहीं किया। यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है। शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेश जी को लेकर आए। गणेश जी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया, तब कहीं रथ के पहिए निकले। अब रथ के पहिए निकल को गए, परंतु वे टूट-फूट गए, तो उन्हें सुधारे कौन?
पास के खेत में खाती काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। खाती अपना कार्य करने के पहले 'श्री गणेशाय नम:' कहकर गणेश जी की वंदना मन ही मन करने लगा। देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया।
 
तब खाती कहने लगा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी को नहीं मनाया होगा और न ही उनकी पूजन की होगी इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है। हम तो मूरख अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेश जी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं। आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेश जी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेश जी की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा। ऐसा कहते हुए बारात वहां से चल दी और विष्णु भगवान का लक्ष्मी जी के साथ विवाह संपन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए। 
हे गणेश जी महाराज! आपने विष्णु को जैसो कारज सारियो, ऐसो कारज सबको सिद्ध करजो। बोलो गजानन भगवान की जय।


#गणेश चतुर्थी व्रत की चौथी कथा :-
 
श्री गणेश चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव तथा माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। वहां माता पार्वती ने भगवान शिव से समय व्यतीत करने के लिए चौपड़ खेलने को कहा। शिव चौपड़ खेलने के लिए तैयार हो गए, परंतु इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा, यह प्रश्न उनके समक्ष उठा तो भगवान शिव ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका एक पुतला बनाकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा- 'बेटा, हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, परंतु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है इसीलिए तुम बताना कि हम दोनों में से कौन हारा और कौन जीता?' 
 
उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का चौपड़ खेल शुरू हो गया। यह खेल 3 बार खेला गया और संयोग से तीनों बार माता पार्वती ही जीत गईं। खेल समाप्त होने के बाद बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा गया, तो उस बालक ने महादेव को विजयी बताया। 
 
यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और क्रोध में उन्होंने बालक को लंगड़ा होने, कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता पार्वती से माफी मांगी और कहा कि यह मुझसे अज्ञानतावश ऐसा हुआ है, मैंने किसी द्वेष भाव में ऐसा नहीं किया। 
 
बालक द्वारा क्षमा मांगने पर माता ने कहा- 'यहां गणेश पूजन के लिए नागकन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे।' यह कहकर माता पार्वती शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गईं। 
 
एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्याएं आईं, तब नागकन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया। उसकी श्रद्धा से गणेश जी प्रसन्न हुए। उन्होंने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा। उस पर उस बालक ने कहा- 'हे विनायक! मुझमें इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वे यह देख प्रसन्न हों।'
 
तब बालक को वरदान देकर श्री गणेश अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और कैलाश पर्वत पर पहुंचने की अपनी कथा उसने भगवान शिव को सुनाई। चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती शिवजी से विमुख हो गई थीं अत: देवी के रुष्ट होने पर भगवान शिव ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक श्री गणेश का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन से भगवान शिव के लिए जो नाराजगी थी, वह समाप्त हो गई। 
 तब यह व्रत विधि भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताई। यह सुनकर माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई। तब माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्री गणेश का व्रत किया तथा दूर्वा, फूल और लड्डूओं से गणेशजी का पूजन-अर्चन किया। व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वतीजी से आ मिले। उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का यह व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाता है। इस व्रत को करने से मनुष्‍य के सारे कष्ट दूर होकर मनुष्य को समस्त सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं। 

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Sunday, 7 August 2022

"सुदर्शन चक्र कवच" (श्रीवल्लभाचार्य कृत)

सुदर्शनचक्र' भगवान विष्णु का प्रमुख आयुध है,जिसके माहात्म्य की कथाएँ पुराणों में स्थान स्थान पर दिखाई देती हैं।
मत्स्य पुराण ’ के अनुसार एक दिन दिवाकर भगवान् ने विश्व कर्मा जी से निवेदन किया कि ‘कृपया मेरे प्रखर तेज को कुछ कम कर दें, क्योंकि अत्यधिक उग्र तेज के कारण प्रायः सभी प्राणी सन्तप्त हो जाते हैं। 
विश्वकर्मा जी ने सूर्य को चक्र भूमि पर चढ़ा कर उनका तेज कम कर दिया।उस समय सूर्य से निकले हुए तेज पुञ्जों को ब्रह्माजी ने एकत्रित कर भगवान् विष्णुके सुदर्शन चक्र के रुप में भगवान् शिव के त्रिशूल′ रुप में तथा इन्द्र के वज्र के रुप में परिणत कर दिया।‘
पद्म पुराण के अनुसार भिन्न-भिन्न देवताओं के तेज से युक्त सुदर्शन चक्र को भगवान् शिव ने श्रीकृष्ण को दिया था।  
वामनपुराण के अनुसार दामासुर नामक भयंकर असुरको मारने के लिए भगवानशंकर ने विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया।
एक बार भगवान् विष्णु ने देवताओं से कहा था कि आप लोगों के पास जो अस्त्र हैं , उनसेअसुरों का वध नहीं किया जा सकता। आप सब अपना अपना तेज दें। इस पर सभी देवताओं नेअपना अपना तेज दिया। सब तेज एकत्र होने पर भगवान विष्णु ने भी अपना तेजदिया। फिर महादेव शंकर नेइस एकत्रित तेज के द्वारा अत्युत्तम शस्त्र बनाया और उसका नाम सुदर्शनचक्र रखा।
भगवान् शिव ने सुदर्शन चक्र को दुष्टों का संहारकरने तथासाधुओं की रक्षा करने के लिएविष्णु को प्रदान किया।
हरिभक्ति विलास में लिखा है कि सुदर्शन चक्र बहुत पूज्य है। वैष्णव लोग इसे चिह्न के रुप में धारण करें। 
गरुड़ पुराण में भी सुदर्शन चक्र का महत्त्व बताया गया है औरइसकी पूजा विधि दी गई है।श्रीमद्भागवत में सुदर्शन चक्र की स्तुति इस प्रकार की गई है--
 हे सुदर्शन!आपका आकार चक्र की तरह है। आपके किनारे का भाग प्रलय कालीन अग्नि के समान अत्यन्त तीव्र है।आप भगवान् विष्णुकी प्रेरणा से सभी ओर घूमते हैं। जिस प्रकार अग्नि वायु की सहायता से शुष्क तृण को जला डालती है ,उसी प्रकार आप हमारी शत्रु सेना को तत्काल जला दीजिए।
 
।।वल्लभाचार्यकृत सुदर्शनकवच।।

वैष्णवानां हि रक्षार्थं श्रीवल्लभः निरुपितः।सुदर्शन महामन्त्रो वैष्णवानां हितावहः।।
मन्त्रामध्ये निरुप्यन्ते चक्राकारं च लिख्यते।उत्तरा गर्भरक्षां च परीक्षित हिते- रतः।।
ब्रह्मास्त्र वारणं चैव भक्तानां भय भञ्जनः। वधंच दुष्ट खण्डं खण्डं च कारयेत्।।
वैष्णवानां हितार्थाय चक्रंधारयते हरिः।पीताम्बरो परब्रह्म वनमाली गदा धरः।।
कोटिकन्दर्प लावण्यो गोपिका प्राण वल्लभः। श्रीवल्लभः कृपानाथो गिरिधरः शत्रुमर्दनः।।
दावाग्नि -दर्पहर्ता च गोपीनां भय नाशनः।गोपालो गोपकन्याभिः समावृत्तो ऽधि तिष्ठते।।
वृजमण्डल- प्रकाशी चकालिन्दी विरहानलः।स्वरुपानन्द-दानार् थं,तापनोत्तर भावनः।।
निकुञ्जविहार भावाग्ने देहिमे निजदर्शनम्। गोगोपिका श्रुताकीर्णो वेणुवादन तत्परः।।
कामरुपी कलावांश्च कामिन्यां कामदो विभुः।
मन्मथो मथुरानाथो माधवो मकर ध्वजः।।
श्रीधरः श्रीकरश्चैव श्रीनिवासः सतां गतिः।
मुक्तिदो भुक्तिदोविष्णुः भूधरो भूतभावनः।।
सर्वदुःख हरोवीरो दुष्टदानव नाशकः।
श्रीनृसिंहो महाविष्णुःश्रीनिवासः सतां गतिः।।
चिदानन्द मयो नित्यः पूर्णब्रह्म सनातनः। 
कोटिभानु प्रकाशीच कोटिलीला प्रकाशवान्।।
भक्त प्रियः पद्मनेत्रो भक्तानां वाञ्छित प्रदः।हृदिकृष्णो मुखेकृष्णोनेत्रेकृष्णश्च कर्णयोः।।
भक्तिप्रियश्च श्रीकृष्णः सर्वं कृष्ण मयं जगत्।कालंमृत्युं यमंदूतं भूतंप्रेतं च प्रपूयते।।
ॐ नमो भगवते महाप्रतापाय महा विभूति पतये वज्र देह वज्र काम वज्रतुण्ड वज्रनख वज्रमुख वज्रबाहु वज्रनेत्र वज्रदन्त वज्र कर कमठ भूमात्म कराय श्री मकर पिंगलाक्ष उग्र प्रलय कालाग्नि रौद्र वीर भद्रावतार पूर्ण ब्रह्म परमात्मने ऋषिमुनि वन्द्य शिवास्त्र ब्रह्मास्त्र वैष्णवास्त्र नारायणास्त्र काल- शक्ति दण्ड कालपाश अघोरास्त्र निवारणाय पाशुपातास्त्र मृडास्त्र सर्वशक्ति-परास्त कराय परविद्या निवारण अग्नि दीप्ताय अथर्ववेद ऋग्वेद सामवेद यजुर्वेद सिद्धि कराय निराहाराय वायु वेग मनोवेग श्रीबाल कृष्णः प्रतिषठानन्द करः स्थल जलाग्नि गमे मतोद् भेदि सर्वशत्रु छेदि छेदि मम बैरीन् खादयोत्खादय सञ्जीवन पर्वतोच्चाटय डाकिनी शाकिनी विध्वंस कराय महा प्रतापाय निज लीला प्रदर्शकाय निष्कलंकृत नन्द कुमार बटुक ब्रह्मचारी निकुञ्जस्थ-भक्तस्नेह कराय दुष्ट जन स्तम्भनाय सर्व पापग्रह कुमार्ग ग्रहान् छेदय छेदय भिन्दि भिन्दि, खादय, कण्टकान् ताडय ताडय मारय मारय शोषय शोषय ज्वालय ज्वालय संहारय संहारय (देवदत्तं) नाशय नाशय अति शोषय शोषय मम सर्वत्र रक्ष रक्ष महा पुरुषाय सर्व दुःख विनाश नाय ग्रह मण्डल भूतमण्डल प्रेत मण्डल पिशाचमण्डल उच्चाटन उच्चाटनाय अन्तर भवादिक ज्वर माहेश्वर ज्वर वैष्णव ज्वर-ब्रह्मज्वर विषमज्वर शीतज्वर वात ज्वर कफज्वर-एकाहिक -द्वाहिक त्र्याहिक- चातुर्थिक- अर्द्ध मासिक मासिक षाण्मासिक सम्वत्सरादि- कर भ्रमि भ्रमि छेदय छेदय भिन्दि भिन्दि, महाबल पराक्रमाय महा विपत्ति-निवारणाय भक्र -जन- कल्पना कल्पद्रुमाय दुष्टजन मनोरथ स्तम्भनाय क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजन वल्लभाय नमः।।
पिशाचान् राक्षसान् चैव, हृदिरोगांश्च दारुणान् भूचरान्खेचरान् सर्वे डाकिनी शाकिनी तथा।।
नाटकं चेटकं चैव, छल -छिद्रंन दृश्यते। अकाले मरणंतस्य, शोकदोषो न लभ्यते।।
सर्वविघ्न- क्षयं यान्ति रक्ष मे गोपिका प्रियः। 
भयं दावाग्नि च चौराणां विग्रहेराज संकटे।।

।।फल -श्रुति।।

व्याल व्याघ्र महाशत्रु वैरिबन्धो न लभ्यते।
 आधिव्याधि-हरश्चैव ग्रह पीडा विनाशने।।
संग्राम -जयदस्तस्माद् ध्याये देवं सुदर्शनम्।
सप्तादश इमे श्लोका यन्त्र मध्येच लिख्यते।।
वैष्णवानां इदं यन्त्रं,अन्येभ्श्च न दीयते। 
वंशवृद्धि र्भवेत्तस्य,श्रोता चफलमाप्नुयात्।।
सुदर्शन महा मन्त्रो लभते जय मंगलम्।।
सर्व दुःख हरश्चेदं अंगशूल अक्ष -शूल उदरशूल गुदशूल कुक्षि शूल जानु शूल जंघशूल -हस्त शूलपाद-शूल वायु-शूल स्तन शूल सर्व शूलान् निर्मूलय दानव दैत्य- कामिनि वेताल ब्रहम् राक्षस -कालाहल अनन्त वासुकी तक्षककर्कोट तक्षक कालीय स्थलरोग जलरोग- नाग पाश- काल पाश- विषं निर्विषं कृष्ण! त्वामहं शरणागतः।
वैष्णवार्थं कृतं यत्र श्रीवल्लभ निरुपितम्।। 

इसका नित्य प्रातःऔर रात्रि में सोते समय पांच –पांच बार पाठ करने / श्रवण मात्र से ही समस्त शत्रुओं का नाश होता है और शत्रुअपनी शत्रुता छोड़ कर मित्रता का व्यवहार करने लगते हैं।शुभमस्तु!🙏 आज इतना ही 🙏

Friday, 5 August 2022

नर्मदेश्वर

नर्मदा नदी के हर पत्थर में हैं "शिव" .…किन्तु  क्यों..!! 
🌷प्राचीनकाल में नर्मदा नदी ने बहुत वर्षों तक तपस्या करके ब्रह्माजी को प्रसन्न किया। प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने वर मांगने को कहा। नर्मदाजी ने कहा‌:- ’ब्रह्मा जी! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे गंगाजी के समान कर दीजिए।’
🌷ब्रह्माजी ने मुस्कराते हुए कहा - ’यदि कोई दूसरा देवता भगवान शिव की बराबरी कर ले, कोई दूसरा पुरुष भगवान विष्णु के समान हो जाए, कोई दूसरी नारी पार्वतीजी की समानता कर ले और कोई दूसरी नगरी काशीपुरी की बराबरी कर सके तो कोई दूसरी नदी भी गंगा के समान हो सकती है।'
🌷ब्रह्माजी की बात सुनकर नर्मदा उनके वरदान का त्याग करके काशी चली गयीं और वहां पिलपिलातीर्थ में शिवलिंग की स्थापना करके तप करने लगीं। 
🌷भगवान शंकर उनपर बहुत प्रसन्न हुए और वर मांगने के लिए कहा। 
🌷नर्मदा ने कहा - ’भगवन्! तुच्छ वर मांगने से क्या लाभ...? बस आपके चरणकमलों में मेरी भक्ति बनी रहे।'
🌷नर्मदा की बात सुनकर भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हो गए और बोले - ’नर्मदे! तुम्हारे तट पर जितने भी प्रस्तरखण्ड (पत्थर) हैं, वे सब मेरे वर से शिवलिंगरूप हो जाएंगे। गंगा में स्नान करने पर शीघ्र ही पाप का नाश होता है, यमुना सात दिन के स्नान से और सरस्वती तीन दिन के स्नान से सब पापों का नाश करती हैं🌷 परन्तु तुम दर्शनमात्र से सम्पूर्ण पापों का निवारण करने वाली होगी। तुमने जो नर्मदेश्वर शिवलिंग की स्थापना की है, वह पुण्य और मोक्ष देने वाला होगा।’ 
🌷भगवान शंकर उसी शिवलिंग में लीन हो गए। इतनी पवित्रता पाकर नर्मदा भी प्रसन्न हो गयीं। इसलिए कहा जाता है ‘नर्मदा का हर कंकर शिव शंकर है।'
🔱 !! हर हर महादेव !! 🔱

Monday, 1 August 2022

नाग पंचमी पर्व पर विशिष्ट प्रयोग

श्रावण में भगवान शिव का पूजन अभिषेक के साथ ही पंचमी पर नाग देवता की भी पूजा की जाय तो, ‌सर्प भय का नाश होता है और रक्षा होती है।
।।नवनाग स्तोत्र ll

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं,
शन्खपालं ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं कालियं तथा,
एतानि नव नामानि नागानाम च महात्मनं
सायमकाले पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत।
।।इतिश्री नवनाग स्त्रोत्रं सम्पूर्णं।। 

☄️ भोग:-नाग देवता की प्रसन्नता के लिए इस दिन खीर बनाकर पूजन कर भोग लगाकर किसी पेड़ की नीचे खीर रख दें।
( विशेष बात: ये खीर सिर्फ नाग देवता के लिये होती है इसे भूलकर भी स्वयम न खायें न ही बच्चों या किसी अन्य व्यक्ति को दें, इसलिए थोड़ी ही बनाएं और भगवान को अर्पित कर दें)

☄️कालसर्प योग एवम राहु केतु शांति हेतु:-
चांदी और तांबे के 1-1 जोड़ी सर्प लेकर नाग देवता मन्दिर में अर्पण करें। दूध से अभिषेक एवं चन्दन का तिलक कर भोग अर्पण करें।
नाग मन्दिर न हो तो शिव लिंग पर इन्हें चढ़ाकर ॐ नमः शिवाय या महामृत्युंजय मंत्र से यथा सम्भव अधिकाधिक जप करते हुए अभिषेक करें।

☄️ नागदेवता कृपाप्राप्ति मंत्र :-
निम्न मंत्र का जप करते हुए सांप की बावीं या किसी बड़े वृक्ष जिसके नीचे बिल या कोटर हो मिट्टी के पात्र में दूध चढ़ाएं।
‘सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:।।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।’
अर्थात् – संपूर्ण आकाश, पृथ्वी, स्वर्ग, सरोवर-तालाबों, नल-कूप, सूर्य किरणें आदि जहां-जहां भी नाग देवता विराजमान है। वे सभी हमारे दुखों को दूर करके हमें सुख-शांतिपूर्वक जीवन दें। उन सभी को हमारी ओर से बारंबार प्रणाम…।

☄️नाग गायत्री मंत्र :-
ॐ भुजंगेशाय विद्महे सर्पराजाय धीमहि तन्नो नाग प्रचोदयात।।


☄️ भय नाश एवं रक्षा हेतु:-

।।श्री नागस्तोत्र।।
अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च।
सुमन्तुजैमिनिश्चैव पञ्चैते वज्रवारका:॥१
मुने: कल्याणमित्रस्य जैमिनेश्चापि कीर्तनात्।
विद्युदग्निभयं नास्ति लिखितं गृहमण्डल॥२
अनन्तो वासुकि: पद्मो महापद्ममश्च तक्षक:।
कुलीर: कर्कट: शङ्खश्चाष्टौनागा: प्रकीर्तिता:॥३
यत्राहिशायी भगवान् यत्रास्ते हरिरीश्वर:।
भङ्गो भवति वज्रस्य तत्र शूलस्य का कथा॥४

॥इति श्रीनागस्तोत्रम् सम्पूर्णम्॥
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☄️ सर्पभयनाशक "मनसास्तोत्र"
महाभारत में जब राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने तक्षक से बदला लेने के लिए सर्पनाश का यज्ञ किया तो सब सांप मरने लगे , उस समय उन्हें आस्तिक नामक मुनि ने बचाया जो भगवान शिव की मानस पुत्री मनसा देवी के पुत्र थे।

मनसा देवी के इस स्तोत्र का पाठ करने से सर्प दंश से रक्षा होती है और मनसा देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

।।ध्यानः।।
चारु-चम्पक-वर्णाभां, सर्वांग-सु-मनोहराम्।
नागेन्द्र-वाहिनीं देवीं, सर्व-विद्या-विशारदाम्।।

।। मूल-स्तोत्र ।।

नमः सिद्धि-स्वरुपायै, वरदायै नमो नमः।
नमः कश्यप-कन्यायै शंकरायै नमोनमः।।
बालानां रक्षण-कर्त्र्यै नागदेव्यै नमोनमः।
नमः आस्तीकमात्रे ते, जरत्कार्व्यै नमोनमः।।
तपस्विन्यै च योगिन्यै, नागस्वस्रे नमोनमः।
साध्व्यै तपस्या-रुपायै शम्भु शिष्येच तेनमः।।

।। फल-श्रुति ।।
इति ते कथितं लक्ष्मि ! मनसाया स्तवं महत्।
यः पठति नित्यमिदं, श्रावयेद् वापि भक्तितः।।
न तस्य सर्प-भीतिर्वै, विषोऽप्यमृतं भवति।
वंशजानां नाग-भयं, नास्ति श्रवण-मात्रतः।।

यह मनसा देवी का महान् स्तोत्र कहा है। जो नित्य भक्ति-पूर्वक इसे पढ़ता या सुनता है – उसे साँपों का भय नहीं होता और विष भी अमृत हो जाता है। उसके वंश में जन्म लेनेवालों को इसके श्रवण मात्र से साँपों का भय नहीं होता।

☄️"मनसादेवी द्वादशनाम स्तोत्र"
      जो पुरुष पूजा के समय इन बारह नामों का पाठ करता है, उसे तथा उसके वंशज को भी सर्प का भय नहीं हो सकता। इन बारह नामों से विश्व इनकी पूजा करता है। उसके सामने उग्र से उग्र सर्प भी शांत हो जाता है।

जरत्कारुर्जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी।
वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा।। 
जरत्कारुप्रियाऽस्तीकमाता विषहरेति च।
महाज्ञानयुताचैव सा देवी विश्वपूजिता।।
द्वादशैतानि नामानि पूजाकाले तु यः पठेत्।
तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भवस्य च।।

☄️ कन्या के विवाह हेतु:-
        जिन कन्याओं के विवाह में विलंब हो रहा हो वे नाग देवता के मंदिर में ऐसी प्रतिमा जिसमें नाग नागिन का जोड़ा हो या दो नाग सम्मुख आलिंगन बद्ध यानी लिपटे हुए हों, उनका देवी एवं देवता का अलग अलग श्रृंगार चढ़कर कर विधि विधान से पूजन करवाएं।

🙏 जय हो आचार्य गुरुजनों का


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जय जय जय महिषासुर मर्दिनी नवरात्रि के अवसर पर भगवती मां जगदम्बा संसार की अधिष्ठात्री देवी है. जिसके पूजन-मनन से जीवन की समस्त कामनाओं की पूर...