Sunday, 7 August 2022

"सुदर्शन चक्र कवच" (श्रीवल्लभाचार्य कृत)

सुदर्शनचक्र' भगवान विष्णु का प्रमुख आयुध है,जिसके माहात्म्य की कथाएँ पुराणों में स्थान स्थान पर दिखाई देती हैं।
मत्स्य पुराण ’ के अनुसार एक दिन दिवाकर भगवान् ने विश्व कर्मा जी से निवेदन किया कि ‘कृपया मेरे प्रखर तेज को कुछ कम कर दें, क्योंकि अत्यधिक उग्र तेज के कारण प्रायः सभी प्राणी सन्तप्त हो जाते हैं। 
विश्वकर्मा जी ने सूर्य को चक्र भूमि पर चढ़ा कर उनका तेज कम कर दिया।उस समय सूर्य से निकले हुए तेज पुञ्जों को ब्रह्माजी ने एकत्रित कर भगवान् विष्णुके सुदर्शन चक्र के रुप में भगवान् शिव के त्रिशूल′ रुप में तथा इन्द्र के वज्र के रुप में परिणत कर दिया।‘
पद्म पुराण के अनुसार भिन्न-भिन्न देवताओं के तेज से युक्त सुदर्शन चक्र को भगवान् शिव ने श्रीकृष्ण को दिया था।  
वामनपुराण के अनुसार दामासुर नामक भयंकर असुरको मारने के लिए भगवानशंकर ने विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया।
एक बार भगवान् विष्णु ने देवताओं से कहा था कि आप लोगों के पास जो अस्त्र हैं , उनसेअसुरों का वध नहीं किया जा सकता। आप सब अपना अपना तेज दें। इस पर सभी देवताओं नेअपना अपना तेज दिया। सब तेज एकत्र होने पर भगवान विष्णु ने भी अपना तेजदिया। फिर महादेव शंकर नेइस एकत्रित तेज के द्वारा अत्युत्तम शस्त्र बनाया और उसका नाम सुदर्शनचक्र रखा।
भगवान् शिव ने सुदर्शन चक्र को दुष्टों का संहारकरने तथासाधुओं की रक्षा करने के लिएविष्णु को प्रदान किया।
हरिभक्ति विलास में लिखा है कि सुदर्शन चक्र बहुत पूज्य है। वैष्णव लोग इसे चिह्न के रुप में धारण करें। 
गरुड़ पुराण में भी सुदर्शन चक्र का महत्त्व बताया गया है औरइसकी पूजा विधि दी गई है।श्रीमद्भागवत में सुदर्शन चक्र की स्तुति इस प्रकार की गई है--
 हे सुदर्शन!आपका आकार चक्र की तरह है। आपके किनारे का भाग प्रलय कालीन अग्नि के समान अत्यन्त तीव्र है।आप भगवान् विष्णुकी प्रेरणा से सभी ओर घूमते हैं। जिस प्रकार अग्नि वायु की सहायता से शुष्क तृण को जला डालती है ,उसी प्रकार आप हमारी शत्रु सेना को तत्काल जला दीजिए।
 
।।वल्लभाचार्यकृत सुदर्शनकवच।।

वैष्णवानां हि रक्षार्थं श्रीवल्लभः निरुपितः।सुदर्शन महामन्त्रो वैष्णवानां हितावहः।।
मन्त्रामध्ये निरुप्यन्ते चक्राकारं च लिख्यते।उत्तरा गर्भरक्षां च परीक्षित हिते- रतः।।
ब्रह्मास्त्र वारणं चैव भक्तानां भय भञ्जनः। वधंच दुष्ट खण्डं खण्डं च कारयेत्।।
वैष्णवानां हितार्थाय चक्रंधारयते हरिः।पीताम्बरो परब्रह्म वनमाली गदा धरः।।
कोटिकन्दर्प लावण्यो गोपिका प्राण वल्लभः। श्रीवल्लभः कृपानाथो गिरिधरः शत्रुमर्दनः।।
दावाग्नि -दर्पहर्ता च गोपीनां भय नाशनः।गोपालो गोपकन्याभिः समावृत्तो ऽधि तिष्ठते।।
वृजमण्डल- प्रकाशी चकालिन्दी विरहानलः।स्वरुपानन्द-दानार् थं,तापनोत्तर भावनः।।
निकुञ्जविहार भावाग्ने देहिमे निजदर्शनम्। गोगोपिका श्रुताकीर्णो वेणुवादन तत्परः।।
कामरुपी कलावांश्च कामिन्यां कामदो विभुः।
मन्मथो मथुरानाथो माधवो मकर ध्वजः।।
श्रीधरः श्रीकरश्चैव श्रीनिवासः सतां गतिः।
मुक्तिदो भुक्तिदोविष्णुः भूधरो भूतभावनः।।
सर्वदुःख हरोवीरो दुष्टदानव नाशकः।
श्रीनृसिंहो महाविष्णुःश्रीनिवासः सतां गतिः।।
चिदानन्द मयो नित्यः पूर्णब्रह्म सनातनः। 
कोटिभानु प्रकाशीच कोटिलीला प्रकाशवान्।।
भक्त प्रियः पद्मनेत्रो भक्तानां वाञ्छित प्रदः।हृदिकृष्णो मुखेकृष्णोनेत्रेकृष्णश्च कर्णयोः।।
भक्तिप्रियश्च श्रीकृष्णः सर्वं कृष्ण मयं जगत्।कालंमृत्युं यमंदूतं भूतंप्रेतं च प्रपूयते।।
ॐ नमो भगवते महाप्रतापाय महा विभूति पतये वज्र देह वज्र काम वज्रतुण्ड वज्रनख वज्रमुख वज्रबाहु वज्रनेत्र वज्रदन्त वज्र कर कमठ भूमात्म कराय श्री मकर पिंगलाक्ष उग्र प्रलय कालाग्नि रौद्र वीर भद्रावतार पूर्ण ब्रह्म परमात्मने ऋषिमुनि वन्द्य शिवास्त्र ब्रह्मास्त्र वैष्णवास्त्र नारायणास्त्र काल- शक्ति दण्ड कालपाश अघोरास्त्र निवारणाय पाशुपातास्त्र मृडास्त्र सर्वशक्ति-परास्त कराय परविद्या निवारण अग्नि दीप्ताय अथर्ववेद ऋग्वेद सामवेद यजुर्वेद सिद्धि कराय निराहाराय वायु वेग मनोवेग श्रीबाल कृष्णः प्रतिषठानन्द करः स्थल जलाग्नि गमे मतोद् भेदि सर्वशत्रु छेदि छेदि मम बैरीन् खादयोत्खादय सञ्जीवन पर्वतोच्चाटय डाकिनी शाकिनी विध्वंस कराय महा प्रतापाय निज लीला प्रदर्शकाय निष्कलंकृत नन्द कुमार बटुक ब्रह्मचारी निकुञ्जस्थ-भक्तस्नेह कराय दुष्ट जन स्तम्भनाय सर्व पापग्रह कुमार्ग ग्रहान् छेदय छेदय भिन्दि भिन्दि, खादय, कण्टकान् ताडय ताडय मारय मारय शोषय शोषय ज्वालय ज्वालय संहारय संहारय (देवदत्तं) नाशय नाशय अति शोषय शोषय मम सर्वत्र रक्ष रक्ष महा पुरुषाय सर्व दुःख विनाश नाय ग्रह मण्डल भूतमण्डल प्रेत मण्डल पिशाचमण्डल उच्चाटन उच्चाटनाय अन्तर भवादिक ज्वर माहेश्वर ज्वर वैष्णव ज्वर-ब्रह्मज्वर विषमज्वर शीतज्वर वात ज्वर कफज्वर-एकाहिक -द्वाहिक त्र्याहिक- चातुर्थिक- अर्द्ध मासिक मासिक षाण्मासिक सम्वत्सरादि- कर भ्रमि भ्रमि छेदय छेदय भिन्दि भिन्दि, महाबल पराक्रमाय महा विपत्ति-निवारणाय भक्र -जन- कल्पना कल्पद्रुमाय दुष्टजन मनोरथ स्तम्भनाय क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजन वल्लभाय नमः।।
पिशाचान् राक्षसान् चैव, हृदिरोगांश्च दारुणान् भूचरान्खेचरान् सर्वे डाकिनी शाकिनी तथा।।
नाटकं चेटकं चैव, छल -छिद्रंन दृश्यते। अकाले मरणंतस्य, शोकदोषो न लभ्यते।।
सर्वविघ्न- क्षयं यान्ति रक्ष मे गोपिका प्रियः। 
भयं दावाग्नि च चौराणां विग्रहेराज संकटे।।

।।फल -श्रुति।।

व्याल व्याघ्र महाशत्रु वैरिबन्धो न लभ्यते।
 आधिव्याधि-हरश्चैव ग्रह पीडा विनाशने।।
संग्राम -जयदस्तस्माद् ध्याये देवं सुदर्शनम्।
सप्तादश इमे श्लोका यन्त्र मध्येच लिख्यते।।
वैष्णवानां इदं यन्त्रं,अन्येभ्श्च न दीयते। 
वंशवृद्धि र्भवेत्तस्य,श्रोता चफलमाप्नुयात्।।
सुदर्शन महा मन्त्रो लभते जय मंगलम्।।
सर्व दुःख हरश्चेदं अंगशूल अक्ष -शूल उदरशूल गुदशूल कुक्षि शूल जानु शूल जंघशूल -हस्त शूलपाद-शूल वायु-शूल स्तन शूल सर्व शूलान् निर्मूलय दानव दैत्य- कामिनि वेताल ब्रहम् राक्षस -कालाहल अनन्त वासुकी तक्षककर्कोट तक्षक कालीय स्थलरोग जलरोग- नाग पाश- काल पाश- विषं निर्विषं कृष्ण! त्वामहं शरणागतः।
वैष्णवार्थं कृतं यत्र श्रीवल्लभ निरुपितम्।। 

इसका नित्य प्रातःऔर रात्रि में सोते समय पांच –पांच बार पाठ करने / श्रवण मात्र से ही समस्त शत्रुओं का नाश होता है और शत्रुअपनी शत्रुता छोड़ कर मित्रता का व्यवहार करने लगते हैं।शुभमस्तु!🙏 आज इतना ही 🙏

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