Thursday, 18 August 2022

प्रश्न:--- गोघृत (गाय के दूध से बना घी)कभी ना मिले तो यज्ञ पूजन आदि कार्य कैसे किया जा सकता है?


घृतार्थे गो घृतं ग्राह्यं, तदभावे तु माहिषम्। 
आजं वा तदभावे तु साक्षात्तैलमपीष्यते।। 
तैलाभावे गृहृतव्यं तैलं जर्तिल संभवम्। 
तदभावे अतसि स्नेह: कौसुम्भा:सर्षपोद्भवा:।। 
वृक्षस्नेहोद्भवो ग्राह्य: पूर्वालाभे पर:पर:। 
तदभावे यवव्रीही: श्याम कान्यतमो भव:।। 

अर्थात्, 
           शास्त्रों में जहाँ कहीं भी घृत शब्द आया है वहाँ उससे गाय का घृत ही समझना चाहिए।
यज्ञ - पूजन कार्य में "गोघृत" यह मुख्य कल्प है। 
यदि गाय का घी सुलभ न हो तो भैंस का घी लेना चाहिए । 
यह भी न मिले तो बकरी या भेड़ का घी लेना चाहिए।
यदि ये न मिल सकें तो तिल के तेल का उपयोग करना चाहिए यज्ञ आदि में। 
इसके अभाव में तिसी का तेल उपयोगी है।
 तिसी का तेल न मिले तो फूल से उत्पन्न (सूरजमुखी आदि ) तेल ग्राह्य है।
 इसके अभाव में सरसो का तेल ग्राह्य है। 
सरसो का तेल भी यदि अलभ्य हो तो क्रमश: जौ, धान, साँवा और कोदो के भूसी से निकले तेल को ग्रहण करना चाहिए। 
एक बात ध्यान रहे,सबसे पहले यत्न पूर्वक गाय के घी का ही  ग्रहण करना चाहिए आलस्य , प्रमाद और वित्तशाठ्य(कंजूसी) छोड़कर यदि न मिले तो श्लोक में बताए गए क्रमानुसार प्रयोग करना चाहिए ।
🙏 साभार 🙏

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