जय जय जय महिषासुर मर्दिनी
नवरात्रि के अवसर पर
भगवती मां जगदम्बा संसार की अधिष्ठात्री देवी है. जिसके पूजन-मनन से जीवन की समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है। नवरात्रि के पर्व तो विशेष रूप से मां का ही पर्व है। इन दिनों में जो साधक भक्त्ति भाव से सकाम या निष्काम किसी भी दृष्टि से साधना करता है. उसे अवश्य ही पूर्ण सफलता प्राप्त होती है।
दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ भगवती दुर्गा का सर्वाधिक प्रिय और महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसका एक-एक श्लोक एक-एक मन्त्र के बराबर है, और साधकों ने इसके किसी भी एक श्लोक का जप करके मनोनुकूल सफलताएं पाई हैं।
नीचे मैं दुर्गा सप्तशती से विविध कामनाओं की पूर्ति से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण मन्त्र दे रहा हूं। यदि साधक भक्तिपूर्वक मात्र इन मन्त्रों का जप नवरात्रि के अवसर पर सम्पन्न कर लेता है, तो उसे अवश्य ही फल प्राप्ति होती है।
1. सब प्रकार की विपत्तियों के नाश के लिए
शरणागतदीनार्थपरित्राण परायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमो ऽस्तुते ।।
मंत्र जप संख्या 5000, हवन सं. 1000, हवन सामग्री घृत।
2. सब प्रकार के मंगल के लिए
मंत्र जप संख्या 10,000, हवन संख्या 3100, हवन सामग्री घृत, कमलगट्टा।
सर्वमंगमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बकेगौरी नारायणि नमोऽस्तुते ।।
3. सम्पूर्ण बाधाओं से मुक्ति तथा धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिए
मंत्र जप संख्या 5,000, हवन संख्या 1100, हवन सामग्री- सरसों व घृत।
सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः । मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय।।
4. मोक्ष प्राप्ति के लिए
त्वं वैष्णवो शक्त्तिरनन्तवीर्या विश्वस्य बीजं परमासि माया।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत् त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्ति हेतुः ।।
मंत्र जप सं. 2100, हवन सं. 101, हवन सामग्री - घृत ।
5. विश्व की रक्षा के लिए
या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भुवनेशलक्ष्मीः।
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः ।
श्रद्धा सतांकुलजनप्रभवस्य लज्जा ।
ता त्वां नताः स्म परिपालय देव विश्वम् ।।
मन्त्र जप संख्या 5000, हवन संख्या 1000, हवन सामग्री घृत, मधु।
6. भक्त्ति की प्राप्ति के लिए
नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।
मंत्र जप सं. 5000, हवन संख्या 2100, हवन सामग्री - घृत, मधु।
7. समस्त रोगों की शांति के लिए
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुण्टा तु कामान सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति ।।
मंत्र जप संख्या 10,000, हवन संख्या 5000, हवन सामग्री सरसों, घृत काली मिर्च।
8. सम्पूर्ण शूलों को मिटाने के लिए
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड़गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन नः पाहिचापज्यानिस्वनेन च।।
मंत्र जप संख्या 2100, हवन संख्या 501, हवन समग्री घुल, सरसों ।
9. शत्रु विनाश के लिए
धृत। मंत्र जप संख्या 10,000, हवन संख्या 5000, हवन सामग्री काली मिर्च.
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरी । एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरी विनाशनम् ।।
10. महामारी की शांति के लिए
जयन्ती मंगलाकाली भद्रकालीकपालिनी।
दुर्गाक्षमा शिवाधात्री स्वाहास्वधा नमोऽस्तुते॥
मंत्र जप संख्या 2100, हवन संख्या 1000, हवन सामग्री घृत, चन्दन ।
11. भय नाश के लिए
सर्वस्वरूपे सर्वज्ञे सर्वशक्तिसमन्विते । भयैभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते ।।
मंत्र जप से 5000, हवन सं. 2100, हवन सामग्री घृत।
12. मनोनुकूल पत्नी की प्राप्ति के लिए
पत्नी मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्। तारिणी दुर्गसंसार सागरस्य कुलोद्भवाम् ।।
मंत्र जप सं. 3000, हवन सं. 1000, हवन सामग्री - घृत ।
उपर्युक्त मन्त्र दुर्गा सप्तशती से सम्बन्धित हैं, और नवरात्रि में या वर्ष के किन्हीं दिनों में इन मन्त्रों का जप कर जो सम्बन्धित हवन करता है. उसे अवश्य ही पूर्ण सफलता प्राप्त होती है।
दुर्गासप्तशती से सम्बन्धित कुछ विशेष तथ्य
दुर्गा सप्तशती का पाठ साधक पण्डित और सामान्य वर्ग करता आया है, परन्तु उन्हें कुछ विशेष तथ्यों का भली प्रकार से जान न होने की वजह से वे लाभ के स्थान पर हानि उठा लेते हैं।
नीचे उन बिन्दुओं को स्पष्ट किया जा रहा है, जो प्रत्येक साधक के लिए आवश्यक हैं।
1. दुर्गा सप्तशती के नित्यपाठ में अर्गला, कीलक और कवच का पाठ अवश्य ही करना चाहिए, क्योंकि बिना इन तीनों के पाठ किये मन्त्र जप या दुर्गा सप्तशती के पाठ से कोई फल नहीं मिलता।
2. यदि एक दिन में दुर्गा सप्तशती के कई पाठ करने हों तो कवच, अर्गला और कीलक का एक ही बार पाठ करना चाहिए।
3. दुर्गा सप्तशती के पाठ के अंत में रहस्य त्रय का पाठ अवश्य करना चाहिए।
4. दुर्गा पाठ प्रारम्भ करने से पूर्व और दुर्गा पाठ के अंत में नवार्ण मन्त्र का जप 108 बार करना जरूरी है। यदि दिन में एक से अधिक बार दुर्गा पाठ करना हो तब भी प्रत्येक पाठ के प्रारम्भ और अंत में 108 बार नर्वाण मन्त्र का जप आवश्यक है।
5. दुर्गा सप्तशती के प्रत्येक पाठ के प्रारम्भ में रात्रिसूक्त और अंत में देवीसूक्त का पाठ जरूरी है।
6. दुर्गा पाठ करते समय अध्याय के अंत में 'इति' कहने से लक्ष्मी का नाश. 'वध' कहने से सम्पूर्ण कुल का नाश और 'अध्याय' कहने से अपने प्राणों का नाश होता है। अतः केवल मार्कण्डेयपुराणे इत्यादि कहना चाहिए।
7. दुर्गा पाठ करते समय किसी भी अध्याय के मध्य में विराम नहीं करना चाहिए, और न आसन से उठना चाहिए। यदि ऐसा आवश्यक हो गया हो तो पुनः उस अध्याय का प्रारम्भ से पाठ करना चाहिए।
8. दुर्गा पाठ करने वाले को अपने हाथ में दुर्गा की पुस्तक रखकर पाठ नहीं करना चाहिए। न पाठ करते समय सिर हिलाना चाहिए, गाकर या जोर-जोर से भी पाठ करना वर्जित है।
9. पूरे दुर्गा पाठ में पहले अध्याय, चौथे अध्याय, दसवें अध्याय और तेरहवें अध्याय के अंत में ही पाठ करने वाला चाहे तो कुछ समय के लिए आसन छोड़कर इधर-उधर जा सकता है। यदि लघु शंका से निवृत्त हुआ हो तो हाथ-पैर धोकर बैठे. यदि दीर्घ शंका से निवृत्त हुआ हो तो साधक को पुनः स्नान कर बैठना चाहिए।
10. दुर्गा पाठ प्रारम्भ करते समय दुर्गा का पूजन कर पुस्तक को प्रणाम कर
पाठ प्रारम्भ करना चाहिए। इसी प्रकार पाठ की समाप्ति में भी दुर्गा की पुस्तक को प्रणाम करना चाहिए ।
11. मन-ही-मन दुर्गा पाठ करना वर्जित है।
12. शतचण्डी में नवरात्रि के दिनों में ही 101 पाठ पूरे कर लेने चाहिए ।
13. शतचण्डी या सहस्रचण्डी पाठ होने पर अंतिम दिन दुर्गा के 700 श्लोकों को पढ़कर प्रत्येक श्लोक के साथ आहुति देनी चाहिए अथवा दशांश हवन करना चाहिए।
14. नवार्ण मन्त्र का केवल घृत से हवन करना चाहिए।
15. दुर्गा हवन में तिल, जौ, घृत, शर्करा और अन्य हवनसामग्री का प्रयोग किया जा सकता है।
16. नवरात्रि में नवमी या अष्टमी को कुल परम्परा के अनुसार हवन करना चाहिए। कहीं-कहीं अष्टमी और नवमी के संधिकाल में भी हवन किया जाता है।
17. सम्पुटित पाठ करते समय दुर्गा के प्रत्येक मन्त्र के प्रारम्भ और अंत में सम्पुटित मन्त्र मन-ही-मन नहीं जपना चाहिए।
18. दुर्गा का विसर्जन दसवीं को ही प्रातःकाल किया जाना शास्त्रसम्मत है।
19. दुर्गा का मुख दक्षिण दिशा में करने से यह शुभ फल देने वाली है। पूर्व दिशा में करने से विजय प्रदान करने वाली और पश्चिम दिशा में करने से कार्य को सिद्ध करने वाली कही गई है। दुर्गा का मुंह उत्तर दिशा में नहीं होना चाहिए।
20. शतचण्डी और सहस्रचण्डी में कुमारी का पूजन आवश्यक माना गया है।
21. शतचण्डी या सहस्रचण्डी वर्ष में किसी भी समय की जा सकती है, इसके लिए उत्तरायण या दक्षिणायन अथवा गुरु चक्र के अस्त का विचार आवश्यक है।
22. यदि दुर्गा पाठ करते समय अखण्ड दीपक बुझ जाय तो नवार्ण मन्त्र का उच्चारण कर पुनः दीपक प्रज्वलित कर लेना चाहिए।
वस्तुतः दुर्गा सप्तशती का पाठ कलियुग में शीघ्र और शुभ फल देने वाला माना गया है। साधकों को चाहिए कि वे अपने जीवन में दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करे।
- रहस्यमय अज्ञात तंत्रों की खोज में
पुस्तक से
आशीर्वाद - पूज्य गुरुदेव द्वारा
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