Wednesday, 27 September 2023

#अनन्त #चतुर्दशी

#अनंतचतुर्दशी!! 
अनंतसूत्र के 14 गांठ का रहस्य
            
                ॐ श्रीं अनंताय नमः

अनंत चतुर्दशी व्रत कथा
बहुत समय पहले एक तपस्वी ब्राह्मण था, जिसका नाम सुमंत और पत्नी का नाम दीक्षा था। उनकी सुशीला नाम की एक सुंदर और धर्मपरायण कन्या थी। जब सुशीला कुछ बड़ी हुई तो उसकी मां दीक्षा की मृत्यु हो गई। तब उनके पिता सुमंत ने कर्कशा नाम की स्त्री से विवाह कर लिया। कुछ समय बाद ब्राह्मण सुमंत ने अपनी पुत्री सुशीला का विवाह ऋषि कौंडिण्य के साथ करा दिया। विवाह में कर्कशा ने विदाई के समय अपने जवांई को ईंट और पत्थर के टुकड़े बांध कर दे दिए। ऋषि कौडिण्य को ये व्यवहार बहुत बुरा लगा, वे दुखी मन के साथ अपनी सुशीला को विदा कराकर अपने साथ लेकर चल दिए, चलते-चलते रात्रि का समय हो गया।

तब सुशीला ने देखा कि संध्या के समय नदी के तट पर सुंदर वस्त्र धारण करके स्त्रियां किसी देवता का पूजन कर रही हैं। सुशीला ने जिज्ञाशावश उनसे पूछा तो उन्होंने अनंत व्रत की महत्ता सुनाई, तब सुशीला ने भी यह व्रत किया और पूजा करके चौदह गांठों वाला डोरा हाथ में बांध कर ऋषि कौंडिण्य के पास आकर सारी बात बताई। ऋषि ने उस धागे को तोड़ कर अग्नि में डाल दिया। इससे भगवान अनंत का अपमान हुआ। परिणामस्वरुप ऋषि कौंडिण्य दुखी रहने लगे। उनकी सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई और वे दरिद्र हो गए।
एक दिन उन्होंने अपनी पत्नी से कारण पूछा तो सुशीला ने दुख का कारण बताते हुए कहा कि आपने अनंत भगवान का डोरा जलाया है। इसके बाद ऋषि कौंडिण्य को बहुत पश्चाताप हुआ, वे अनंत डोरे को प्राप्त करने के लिए वन चले गए। वन में कई दिनों तक ऐसे ही भटकने के बाद वे एक दिन भूमि पर गिर पड़े। तब भगवान अनंत ने उन्हें दर्शन दिया और कहा कि तुमने मेरा अपमान किया, जिसके कारण तुम्हें इतना कष्ट उठाना पड़ा, लेकिन अब तुमने पश्चाताप कर लिया है, मैं प्रसन्न हूं तुम घर जाकर अनंत व्रत को विधि पूर्वक करो। चौदह वर्षों तक व्रत करने से तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जांएगे और तुम दोबारा संपन्न हो जाओगे। इस प्रकार ऋषि कौंडिण्य ने विधि पूर्वक व्रत किया और उन्हें सारें कष्टों से मुक्ति प्राप्त हुई।
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    अनंत चतुर्दशी के दिन पूजा के बाद बाजू में बांधे जाने वाले अनंत सूत्र में चौदह गांठ होती है. शास्त्रों के अनुसार, ये 14 गांठ वाले सूत्र को 14 लोकों ( भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक, ब्रह्मलोक, अतल, वितल, सतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल लोक) का प्रतीक माना जाता है. अनंत सूत्र के प्रत्येक गांठ प्रत्येक लोक का प्रतिनिधित्व करते हैं.
साथ ही इसे भगवान विष्णु के 14 रूपों (अनंत, ऋषिकेश, पद्मनाभ, माधव, वैकुण्ठ, श्रीधर, त्रिविक्रम, मधुसूदन, वामन, केशव, नारायण, दामोदर और गोविन्द) का भी प्रतीक माना गया है.
कहा जाता है कि,14 लोकों की रचना के बाद इनके संरक्षण व पालन के लिए भगवान 14 रूपों में प्रकट हुए थे और अनंत प्रतीत होने लगे थे. इसलिए अनंत को 14 लोक और भगवान विष्णु के 14 रूपों का प्रतीक माना गया है. 

इतना ही नहीं रेशम या कपास से बना यह सूत्र आपकी रक्षा भी करता है. इसलिए इसे रक्षाकवच कहा जाता है।पूजा के बाद इसे बाजू में बांधने से व्यक्ति को भय से मुक्ति मिलती है और पाप कर्म नष्ट हो जाते हैं. 

मान्यता है कि, जो व्यक्ति पूरे 14 वर्ष तक अनंत चतुर्दशी का व्रत करता है, पूजा-पाठ करता है और चौदह गांठ वाले इस अनंत सूत्र को बांधता है उसे भगवान विष्णु की कृपा से बैकुंठ की प्राप्ति होती है. 
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अनंत चतुर्दशी के उपाय

अनंत चतुर्दशी के दिन कलाई पर चौदह गांठ युक्त रेशमी धागा जरूर बांधें। इस धागे को अनंतसूत्र कहा जाता है।मान्यता है कि विधिवत पूजा करके कलाई पर धागा बांधने से आत्मविश्वास में वृद्धि और सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
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   लक्ष्मी प्राप्ति के लिए 21 कमल गट्टे को गाय के घी में डुबोकर पवित्र अग्नि में निम्न लिखित मंत्र से आहुति अवश्य दें। मंत्र:- ॐ श्रीं अनंताय नमः स्वाहा। 
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यदि आप मुसीबतों से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो अनंत चतुर्दशी के दिन 14 लौंग लगा हुआ लड्डू सत्यनारायण भगवान को चढ़ाएं। पूजा के बाद इसे किसी चौराहे पर रख दें। ऐसा करने से मुसीबतें आपसे दूर रहेंगी।
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यदि आप या आपके परिवार का कोई सदस्य किसी पुरानी बीमारी से ग्रसित है, तो अनंत चतुर्दशी के दिन अनार उसके सिर से वार कर भगवान सत्य नारायण के कलश पर चढ़ाएं और फिर इसे किसी गाय को खिला दें। ऐसा करने से पुराना से पुराना रोग जल्दी ही ठीक होगा।
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अनंत चतुर्दशी के दिन सत्यनारायण भगवान की पूजा करें। साथ ही कलश पर 14 जायफल रखें। पूजा समाप्त होने के बाद इन जायफल को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। ऐसा करने से पुराना से पुराना विवाद भी खत्म हो जाता है।
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Tuesday, 26 September 2023

#श्री #भुवनेश्वरी #सहस्त्रनाम #स्तोत्रं

॥ श्रीभुवनेश्वरी सहस्त्रनामस्तोत्रं ॥

     विनियोगः -अस्य श्रीभुवनेश्वर्या सहस्रनाम स्तोत्रस्य दक्षिणामूर्तिऋषिः पङ्क्तिश्छन्दः आद्या श्रीभुवनेश्वरी देवता, ह्रीं बीजं, श्रीं शक्तिः, क्लीं कीलकं, मम श्रीधर्मार्थकाममोक्षार्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादिन्यासः -
श्रीदक्षिणामूर्तिऋषये नमः शिरसि ।
पङ्क्तिश्छन्दसे नमः मुखे ।
आद्या श्रीभुवनेश्वरीदेवतायै नमः हृदि ।
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये ।
श्रीं शक्तये नमः नाभौ ।
क्लीं कीलकाय नमः पादयोः ।
धर्मार्थकाममोक्षार्थे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।

अथ सहस्रनामस्तोत्रम्

आद्या माया परा शक्तिः श्रीं ह्रीं क्लीं भुवनेश्वरी ।
आद्या कमलावाणी भुवनेश्वरी भवमोचनी।
भुवना भावना भव्या भवानी भवभाविनी॥१॥ 

रुद्राणी रुद्रभक्ता च तथा रुद्रप्रिया सती।
उमा कात्यायनी दुर्गा मङ्गला सर्वमङ्गला॥२।।
 
उमा कामेश्वरीत्रिपुरा परमेशानी त्रिपुरासुन्दरी प्रिया।
रमणा रमणी रामा रामकार्यकरी शुभा ॥ ३।।

ब्राह्मी नारायणी चण्डी चामुण्डा मुण्डनायिका।
माहेश्वरी च कौमारी वाराही चापराजिता॥४॥

महामाया मुक्तकेशी महात्रिपुरसुन्दरी ।
सुन्दरी शोभना रक्ता रक्तवस्त्रापिधायिनी॥ ५॥

रक्ताक्षी रक्तवस्त्रा च रक्तबीजातिसुन्दरी।
रक्तचन्दनसिक्ताङ्गी रक्तपुष्पसदाप्रिया॥ ६॥

कमला कामिनी कान्ता कामदेवसदाप्रिया।
लक्ष्मी लोला चञ्चलाक्षी चञ्चला चपला प्रिया॥७॥

भैरवी भयहर्त्री च महाभयविनाशिनी ।
भयङ्करी महाभीमा भयहा भयनाशिनी॥ ८॥

श्मशाने प्रान्तरे दुर्गे संस्मृता भयनाशिनी।
जया च विजया चैव जयपूर्णा जयप्रदा॥ ९॥

यमुना यामुना याम्या यामुनजा यमप्रिया।
सर्वेषां जनिका जन्या जनहा जनवर्धिनी॥ १०॥

काली कपालिनी कुल्ला कालिका कालरात्रिका।
महाकालहृदिस्था च कालभैरवरूपिणी॥ ११॥

कपालखट्वाङ्गधरा पाशाङ्कुशविधारिणी।
अभया च भया चैव तथा च भयनाशिनी॥१२॥

महाभयप्रदात्री च तथा च वरहस्तिनी।
गौरी गौराङ्गिनी गौरा गौरवर्णा जयप्रदा॥१३॥

उग्रा उग्रप्रभा शान्तिः शान्तिदाऽशान्तिनाशिनी।
उग्रतारा तथा चोग्रा नीला चैकजटा तथा॥१४॥

हां हां हूं हूं तथा तारा तथा च सिद्धिकालिका।
तारा नीला च वागीशी तथा नीलसरस्वती ॥ १५।।

गङ्गा काशी सती सत्या सर्वतीर्थमयी तथा।
तीर्थरूपा तीर्थपुण्या तीर्थदा तीर्थसेविका॥१६॥

पुण्यदा पुण्यरूपा च पुण्यकीर्तिप्रकाशिनी।
पुण्यकाला पुण्यसंस्था तथा पुण्यजनप्रिया॥१७॥

तुलसी तोतुलास्तोत्रा राधिका राधनप्रिया।
सत्या सत्यभामा रुक्मिणी कृष्णवल्लभा॥१८॥

देवकी कृष्णमाता च सुभद्रा भद्ररूपिणी।
मनोहरा तथा सौम्या श्यामाङ्गी समदर्शना॥१९॥

घोररूपा घोरतेजा घोरवत्प्रियदर्शना।
कुमारी बालिका क्षुद्रा कुमारीरूपधारिणी॥२०॥

युवती युवतीरूपा युवतीरसरञ्जका।
पीनस्तनी क्षूद्रमध्या प्रौढा मध्या जरातुरा॥२१॥

अतिवृद्धा स्थाणुरूपा चलाङ्गी चञ्चला चला।
देवमाता देवरूपा देवकार्यकरी शुभा॥२२॥

देवमाता दितिर्दक्षा सर्वमाता सनातनी।
पानप्रिया पायनी च पालना पालनप्रिया॥२३॥

मत्स्याशी मांसभक्ष्या च सुधाशी जनवल्लभा।
तपस्विनी तपी तप्या तपःसिद्धिप्रदायिनी॥२४॥

हविष्या च हविर्भोक्त्री हव्यकव्यनिवासिनी।
यजुर्वेदा वश्यकरी यज्ञाङ्गी यज्ञवल्लभा॥२५॥

दक्षा दाक्षायिणी दुर्गा दक्षयज्ञविनाशिनी।
पार्वती पर्वतप्रीता तथा पर्वतवासिनी॥२६॥

हैमी हर्म्या हेमरूपा मेना मान्या मनोरमा।
कैलासवासिनी मुक्ता शर्वक्रीडाविलासिनी॥२७॥

चार्वङ्गी चारुरूपा च सुवक्त्रा च शुभानना।
चलत्कुण्डलगण्डश्रीर्लसत्कुण्डलधारिणी॥२८॥

महासिंहासनस्था च हेमभूषणभूषिता।
हेमाङ्गदा हेमभूषा च सूर्यकोटिसमप्रभा॥२९॥

बालादित्यसमाकान्तिः सिन्दूरार्चितविग्रहा।
यवा यावकरूपा च रक्तचन्दनरूपधृक्॥३०॥

कोटरी कोटराक्षी च निर्लज्जा च दिगम्बरा।
पूतना बालमाता च शून्यालयनिवासिनी॥३१॥

श्मशानवासिनी शून्या हृद्या चतुरवासिनी।
मधुकैटभहन्त्री च महिषासुरघातिनी॥३२॥

निशुम्भशुम्भमथनी चण्डमुण्डविनाशिनी।
शिवाख्या शिवरूपा च शिवदूती शिवप्रिया॥३३॥

शिवदा शिववक्षःस्था शर्वाणी शिवकारिणी।
इन्द्राणी चेन्द्रकन्या च राजकन्या सुरप्रिया॥३४॥

लज्जाशीला साधुशीला कुलस्त्री कुलभूषिका।
महाकुलीना निष्कामा निर्लज्जा कुलभूषणा॥३५॥

कुलीना कुलकन्या च तथा च कुलभूषिता।
अनन्तानन्तरूपा च अनन्तासुरनाशिनी॥३६॥

हसन्ती शिवसङ्गेन वाञ्छितानन्ददायिनी ।
नागाङ्गी नागभूषा च नागहारविधारिणी ॥ ३७।।

धरिणी धारिणी धन्या महासिद्धिप्रदायिनी ।
डाकिनी शाकिनी चैव राकिनी हाकिनी तथा ॥ ३८।।

भूता प्रेता पिशाची च यक्षिणी धनदार्चिता ।
धृतिः कीर्तिः स्मृतिर्मेधा तुष्टिःपुष्टिरुमा रुषा ॥ ३९।।

शाङ्करी शाम्भवी मीना रतिः प्रीतिः स्मरातुरा ।
अनङ्गमदना देवी अनङ्गमदनातुरा ॥ ४०।।

भुवनेशी महामाया तथा भुवनपालिनी ।
ईश्वरी चेश्वरीप्रीता चन्द्रशेखरभूषणा ॥ ४१।।

चित्तानन्दकरी देवी चित्तसंस्था जनस्य च ।
अरूपा बहुरूपा च सर्वरूपा चिदात्मिका ॥ ४२।।

अनन्तरूपिणी नित्या तथानन्तप्रदायिनी ।
नन्दा चानन्दरूपा च तथाऽनन्दप्रकाशिनी ॥ ४३।।

सदानन्दा सदानित्या साधकानन्ददायिनी ।
वनिता तरुणी भव्या भविका च विभाविनी ॥ ४४।।

चन्द्रसूर्यसमा दीप्ता सूर्यवत्परिपालिनी ।
नारसिंही हयग्रीवा हिरण्याक्षविनाशिनी ॥ ४५।।

वैष्णवी विष्णुभक्ता च शालग्रामनिवासिनी ।
चतुर्भुजा चाष्टभुजा सहस्रभुजसंज्ञिता ॥ ४६।।

आद्या कात्यायनी नित्या सर्वाद्या सर्वदायिनी ।
सर्वचन्द्रमयी देवी सर्ववेदमयी शुभा ॥ ४७।।

सवदेवमयी देवी सर्वलोकमयी पुरा ।
सर्वसम्मोहिनी देवी सर्वलोकवशङ्करी ॥ ४८।।

राजिनी रञ्जिनी रागा देहलावण्यरञ्जिता ।
नटी नटप्रिया धूर्ता तथा धूर्तजनार्दिनी ॥ ४९।।

महामाया महामोहा महासत्त्वविमोहिता ।
बलिप्रिया मांसरुचिर्मधुमांसप्रिया सदा ॥ ५०।।

मधुमत्ता माधविका मधुमाधवरूपिका ।
दिवामयी रात्रिमयी सन्ध्या सन्धिस्वरूपिणी ॥ ५१।।

कालरूपा सूक्ष्मरूपा सूक्ष्मिणी चातिसूक्ष्मिणी ।
तिथिरूपा वाररूपा तथा नक्षत्ररूपिणी ॥ ५२।।

सर्वभूतमयी देवी पञ्चभूतनिवासिनी ।
शून्याकारा शून्यरूपा शून्यसंस्था च स्तम्भिनी ॥ ५३।।

आकाशगामिनी देवी ज्योतिश्चक्रनिवासिनी ।
ग्रहाणां स्थितिरूपा च रुद्राणी चक्रसम्भवा ॥ ५४।।

ऋषीणां ब्रह्मपुत्राणां तपःसिद्धिप्रदायिनी ।
अरुन्धती च गायत्री सावित्री सत्त्वरूपिणी ॥ ५५।।

चितासंस्था चितारूपा चित्तसिद्धिप्रदायिनी ।
शवस्था शवरूपा च शवशत्रुनिवासिनी ॥ ५६।।

योगिनी योगरूपा च योगिनां मलहारिणी ।
सुप्रसन्ना महादेवी यामुनी मुक्तिदायिनी ॥ ५७।।

निर्मला विमला शुद्धा शुद्धसत्वा जयप्रदा ।
महाविद्या महामाया मोहिनी विश्वमोहिनी ॥ ५८।।

कार्यसिद्धिकरी देवी सर्वकार्यनिवासिनी ।
कार्यकार्यकरी रौद्री महाप्रलयकारिणी ॥ ५९।।

स्त्रीपुंभेदाह्यभेद्या च भेदिनी भेदनाशिनी ।
सर्वरूपा सर्वमयी अद्वैतानन्दरूपिणी ॥ ६०।।

प्रचण्डा चण्डिका चण्डा चण्डासुरविनाशिनी ।
सुमस्ता बहुमस्ता च छिन्नमस्ताऽसुनाशिनी ॥ ६१।।

अरूपा च विरूपा च चित्ररूपा चिदात्मिका ।
बहुशस्त्रा अशस्त्रा च सर्वशस्त्रप्रहारिणी ॥ ६२।।

शास्त्रार्था शास्त्रवादा च नाना शास्त्रार्थवादिनी ।
काव्यशास्त्रप्रमोदा च काव्यालङ्कारवासिनी ॥ ६३।।

रसज्ञा रसना जिह्वा रसामोदा रसप्रिया ।
नानाकौतुकसंयुक्ता नानारसविलासिनी ॥ ६४।।

अरूपा च स्वरूपा च विरूपा च सुरूपिणी ।
रूपावस्या तथा जीवा वेश्याद्या वेशधारिणी ॥ ६५।।

नानावेशधरा देवी नानावेशेषु संस्थिता ।
कुरूपा कुटिला कृष्णा कृष्णारूपा च कालिका ॥ ६६।।

लक्ष्मीप्रदा महालक्ष्मीः सर्वलक्षणसंयुता ।
कुबेरगृहसंस्था च धनरूपा धनप्रदा ॥ ६७।।

नानारत्नप्रदा देवी रत्नखण्डेषु संस्थिता ।
वर्णसंस्था वर्णरूपा सर्ववर्णमयी सदा ॥ ६८।।

ओङ्काररूपिणी वाच्या आदित्यज्योतीरूपिणी ।
संसारमोचिनी देवी सङ्ग्रामे जयदायिनी ॥ ६९।।

जयरूपा जयाख्या च जयिनी जयदायिनी ।
मानिनी मानरूपा च मानभङ्गप्रणाशिनी ॥ ७०।।

मान्या मानप्रिया मेधा मानिनी मानदायिनी ।
साधकासाधकासाध्या साधिका साधनप्रिया ॥ ७१।।

स्थावरा जङ्गमा प्रोक्ता चपला चपलप्रिया ।
ऋद्धिदा ऋद्धिरूपा च सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ॥ ७२।।

क्षेमङ्करी शङ्करी च सर्वसम्मोहकारिणी ।
रञ्जिता रञ्जिनी या च सर्ववाञ्छाप्रदायिनी ॥ ७३।।

भगलिङ्गप्रमोदा च भगलिङ्गनिवासिनी ।
भगरूपा भगाभाग्या लिङ्गरूपा च लिङ्गिनी ॥ ७४।।

भगगीतिर्महाप्रीतिर्लिङ्गगीतिर्महासुखा ।
स्वयम्भूः कुसुमाराध्या स्वयम्भूः कुसुमाकुला ॥ ७५।।

स्वयम्भूः पुष्परूपा च स्वयम्भूः कुसुमप्रिया ।
शुक्रकूपा महाकूपा शुक्रासवनिवासिनी ॥ ७६।।

शुक्रस्था शुक्रिणी शुक्रा शुक्रपूजकपूजिता ।
कामाक्षा कामरूपा च योगिनी पीठवासिनी ॥ ७७।।

सर्वपीठमयी देवी पीठपूजानिवासिनी ।
अक्षमालाधरा देवी पानपात्रविधारिणी ॥ ७८।।

शूलिनी शूलहस्ता च पाशिनी पाशरूपिणी ।
खड्गिनी गदिनी चैव तथा सर्वास्त्रधारिणी ॥ ७९।।

भाव्या भव्या भवानी सा भवमुक्तिप्रदायिनी ।
चतुरा चतुरप्रीता चतुराननपूजिता ॥ ८०।।

देवस्तव्या देवपूज्या सर्वपूज्या सुरेश्वरी ।
जननी जनरूपा च जनानां चित्तहारिणी ॥ ८१।।

जटिला केशबद्धा च सुकेशी केशबद्धिका ।
अहिंसा द्वेषिका द्वेष्या सर्वद्वेषविनाशिनी ॥ ८२।।

उच्चाटिनी द्वेषिनी च मोहिनी मधुराक्षरा ।
क्रीडा क्रीडकलेखाङ्ककारणाकारकारिका ॥ ८३।।

सर्वज्ञा सर्वकार्या च सर्वभक्षा सुरारिहा ।
सर्वरूपा सर्वशान्ता सर्वेषां प्राणरूपिणी ॥ ८४।।

फलश्रुति

इति श्रीभुवनेश्वर्या नामानि कथितानि ते ।
सहस्राणि महादेवि फलं तेषां निगद्यते ॥ ,८५।।

यः पठेत् प्रातरुत्थाय चार्द्धरात्रे तथा प्रिये ।
प्रातःकाले तथा मध्ये सायाह्ने हरवल्लभे ॥ ८६।।

यत्र तत्र पठित्वा च भक्त्या सिद्धिर्न संशयः ।
पठेद् वा पाठयेद् वापि श‍ृणुयाच्छ्रावयेत्तथा ॥ ८७।।

तस्य सर्वं भवेत् सत्यं मनसा यच्च वाञ्छितम् ।
अष्टम्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां वा विशेषतः ॥ ८८।।

सर्वमङ्गलसंयुक्ते सङ्क्रातौ शनिभौमयोः ।
यः पठेत् परया भक्त्या देव्या नामसहस्रकम् ॥ ८९।।

तस्य देहे च संस्थानं कुरुते भुवनेश्वरी ।
तस्य कार्यं भवेद् देवि अन्यथा न कथञ्चन ॥ ९०।।

श्मशाने प्रान्तरे वापि शून्यागारे चतुष्पथे ।
चतुष्पथे चैकलिङ्गे मेरुदेशे तथैव च ॥ ९१।।

जलमध्ये वह्निमध्ये सङ्ग्रामे ग्रामशान्तये ।
जपत्वा मन्त्रसहस्रं तु पठेन्नामसहस्रकम् ॥ ९२।।

धूपदीपादिभिश्चैव बलिदानादिकैस्तथा ।
नानाविधैस्तथा देवि नैवेद्यैर्भुवनेश्वरीम् ॥ ९३।।

सम्पूज्य विधिवज्जप्त्वा स्तुत्वा नामसहस्रकैः ।
अचिरात् सिद्धिमाप्नोति साधको नात्र संशयः ॥ ९४।।

तस्य तुष्टा भवेद् देवी सर्वदा भुवनेश्वरी ।
भूर्जपत्रे समालिख्य कुङकुमाद् रक्तचन्दनैः ॥ ९५।।

तथा गोरोचनाद्यैश्च विलिख्य साधकोत्तमः ।
सुतिथौ शुभनक्षत्रे लिखित्वा दक्षिणे भुजे ॥ ९६।।

धारयेत् परया भक्त्या देवीरूपेण पार्वति ! ।
तस्य सिद्धिर्महेशानि अचिराच्च भविष्यति ॥ ९७।।

रणे राजकुले वाऽपि सर्वत्र विजयी भवेत् ।
देवता वशमायाति किं पुनर्मानवादयः ॥ ९८।।

विद्यास्तम्भं जलस्तम्भं करोत्येव न संशयः।
पठेद्वा पाठयेद् वाऽपि देवीभक्त्या च पार्वति॥९९॥

इह भुक्त्वा वरान् भोगान् कृत्वा काव्यार्थविस्तरान्।
अन्तेदेव्या गणत्वं च साधको मुक्तिमाप्नुयात्॥१००॥

प्राप्नोति देवदेवेशि सर्वार्थान्नात्र संशयः।
हीनाङ्गे चातिरिक्ताङ्गे शठाय परशिष्यके॥१०१॥

न दातव्यं महेशानि प्राणान्तेऽपि कदाचन।
शिष्याय मतिशुद्धाय विनीताय महेश्वरि॥१०२॥

दातव्यः स्तवराजश्च सर्वसिद्धिप्रदो भवेत्।
लिखित्वा धारयेद् देहे दुःखं तस्य न जायते॥१०३॥

य इदं भुवनेश्वर्याः स्तवराजं महेश्वरि।
इति ते कथितं देवि भुवनेश्याः सहस्रकम्॥१०४॥

यस्मै कस्मै न दातव्यं विना शिष्याय पार्वति।
सुरतरुवरकान्तं  सिद्धिसाध्यैकसेव्यं।
यदि पठति मनुष्यो नान्यचेताः सदैव।
इह हि सकलभोगान् प्राप्य चान्ते शिवाय।
व्रजति परसमीपं सर्वदा मुक्तिमन्ते॥१०५॥

॥ इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे भुवनेश्वरी सहस्रनामाख्यं स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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Monday, 25 September 2023

#श्री #वामन #स्तोत्रम् ।।

।।श्री वामन स्तोत्रम् ।।

अदितिरुवाच ।

नमस्ते देवदेवेश सर्वव्यापिञ्जनार्दन ।
सत्त्वादिगुणभेदेन लोकव्य़ापारकारणे ॥ १ ॥

नमस्ते बहुरूपाय अरूपाय नमो नमः ।
सर्वैकाद्भुतरूपाय निर्गुणाय गुणात्मने ॥ २ ॥

नमस्ते लोकनाथाय परमज्ञानरूपिणे ।
सद्भक्तजनवात्सल्यशीलिने मङ्गलात्मने ॥ ३ ॥

यस्यावताररूपाणि ह्यर्चयन्ति मुनीश्वराः ।
तमादिपुरुषं देवं नमामीष्टार्थसिद्धये ॥ ४ ॥

यं न जानन्ति श्रुतयो यं न जायन्ति सूरयः ।
तं नमामि जगद्धेतुं मायिनं तममायिनम् ॥ ५ ॥

यस्य़ावलोकनं चित्रं मायोपद्रववारणं ।
जगद्रूपं जगत्पालं तं वन्दे पद्मजाधवम् ॥ ६ ॥

यो देवस्त्यक्तसङ्गानां शान्तानां करुणार्णवः ।
करोति ह्यात्मना सङ्गं तं वन्दे सङ्गवर्जितम् ॥ ७ ॥

यत्पादाब्जजलक्लिन्नसेवारञ्जितमस्तकाः ।
अवापुः परमां सिद्धिं तं वन्दे सर्ववन्दितम् ॥ ८ ॥

यज्ञेश्वरं यज्ञभुजं यज्ञकर्मसुनिष्ठितं ।
नमामि यज्ञफलदं यज्ञकर्मप्रभोदकम् ॥ ९ ॥

अजामिलोऽपि पापात्मा यन्नामोच्चारणादनु ।
प्राप्तवान्परमं धाम तं वन्दे लोकसाक्षिणम् ॥ १० ॥

ब्रह्माद्या अपि ये देवा यन्मायापाशयन्त्रिताः ।
न जानन्ति परं भावं तं वन्दे सर्वनायकम् ॥ ११ ॥

हृत्पद्मनिलयोऽज्ञानां दूरस्थ इव भाति यः ।
प्रमाणातीतसद्भावं तं वन्दे ज्ञानसाक्षिणम् ॥ १२ ॥

यन्मुखाद्ब्राह्मणो जातो बाहुभ्य़ः क्षत्रियोऽजनि ।
तथैव ऊरुतो वैश्याः पद्भ्यां शूद्रो अजायत ॥ १३ ॥

मनसश्चन्द्रमा जातो जातः सूर्यश्च चक्षुषः ।
मुखादिन्द्रश्चाऽग्निश्च प्राणाद्वायुरजायत ॥ १४ ॥

त्वमिन्द्रः पवनः सोमस्त्वमीशानस्त्वमन्तकः ।
त्वमग्निर्निरृतिश्चैव वरुणस्त्वं दिवाकरः ॥ १५ ॥

देवाश्च स्थावराश्चैव पिशाचाश्चैव राक्षसाः ।
गिरयः सिद्धगन्धर्वा नद्यो भूमिश्च सागराः ॥ १६ ॥

त्वमेव जगतामीशो यन्नामास्ति परात्परः ।
त्वद्रूपमखिलं तस्मात्पुत्रान्मे पाहि श्रीहरे ॥ १७ ॥

इति स्तुत्वा देवधात्री देवं नत्वा पुनः पुनः ।
उवाच प्राञ्जलिर्भूत्वा हर्षाश्रुक्षालितस्तनी ॥ १८ ॥

अनुग्राह्यास्मि देवेश हरे सर्वादिकारण ।
अकण्टकश्रियं देहि मत्सुतानां दिवौकसाम् ॥ १९ ॥

अन्तर्यामिन् जगद्रूप सर्वभूत परेश्वर ।
तवाज्ञातं किमस्तीह किं मां मोहयसि प्रभो ॥ २० ॥

तथापि तव वक्ष्यामि यन्मे मनसि वर्तते ।
वृथापुत्रास्मि देवेश रक्षोभिः परिपीडिता ॥ २१ ॥

एतन्न हन्तुमिच्छामि मत्सुता दितिजा यतः ।
तानहत्वा श्रियं देहि मत्सुतानामुवाच सा ॥ २२ ॥

इत्युक्तो देवदेवस्तु पुनः प्रीतिमुपागतः ।
उवाच हर्षयन्साध्वीं कृपयाऽभि परिप्लुतः ॥ २३ ॥

श्री भगवानुवाच ।

प्रीतोऽस्मि देवि भद्रं ते भविष्यामि सुतस्तव ।
यतः सपत्नीतनयेष्वपि वात्सल्यशालिनी ॥ २४ ॥

त्वया च मे कृतं स्तोत्रं पठन्ति भुवि मानवाः ।
तेषां पुत्रो धनं सम्पन्न हीयन्ते कदाचन ॥ २५ ॥

अन्ते मत्पदमाप्नोति यद्विष्णोः परमं शुभं ।
|| इति श्रीपद्मपुराणे श्री वामन स्तोत्रं ||

Saturday, 23 September 2023

#श्री #गणेश #चालीसा

॥श्रीगणेश चालीसा॥
जय गणपति सद्‌गुण सदन,
कविवर बदन कृपाल। 
विघ्न हरण मंगल करण,
जय जय गिरिजा लाल॥
बुद्धि भरण अशरण शरण,
हरण अमंगल जाल।
सिद्धि- सदन करिवर वदन, 
जय-जय गिरिजा लाल॥
गहत चरण रज गज बदन, 
लहत परम पद लक्ष।
कटत अगन अघ तन अघट, 
रटत सकल भय भक्ष॥
जय जय जय गणपति गणराजू । 
मंगल भरण करण शुभ काजू॥
जय गजबदन सदन सुख दाता।
विश्व विनायक बुद्धि-विधाता॥
वक्रतुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन।
तिलक त्रिपुण्डभाल मन भावन॥
अर्द्धचन्द्र मस्तक पर सोहै।
छवि लखि सुर-नर मुनि मन मोहै॥
राजित मणि मुक्तन उर माला।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलम्।
मोदक भोग सुगन्धित फूलम्॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित।
चरणपादुका मुनि मन राजित॥
ऋद्धि-सिद्धि तव चँवर सुढारे।
मूषक वाहन सोहत द्वारे॥
कहौं जन्म शुभ कथा तुम्हारी।
एक समय गिरिराज कुमारी॥
बनयो बदन मैल की मूरति।
अति छविवन्त मोहिनी सूरति॥
सो द्वारे ड्योढ़ी पर लाई।
द्वारपाल करि तुमहिं बैठाई॥
असुर एक शिव रूप बनावै।
छल करनो हित घत लगावै॥
ताहि समय शंकर जी आयो।
बिनु पहिचान जान नहि पायौ॥
पूछहिं शिव तुम केहिके लाला।
बोलत भे तुम वचन रसाला॥
मैं गिरिजा सुत तुमहिं बतावत।
बिनु चीन्हें कोउ जान न पावत॥
भवन धरो जनि पांव उभारी।
अहै कौन पहिचान तुम्हारी॥
आवहिं मातु बूझि तब जाओ।
बालक से जानि रारि बढ़ाओ॥
धरयो शंभु जब पांव अगारी।
मच्यो तुरत सरवर तब भारी॥
तत्क्षण कछु शंका उर वाली।
शिव तिरशूल भूल बस मारी॥
सिरस फूल सम शिर कटि गयऊ।
चट उड़ि गगन लोप तहं भयऊ॥
शंभु गए जब भवन मंझारी।
बैठी जहं गिरी राजकुमारी॥
कहन लगे शिव मन सकुचाये।
कहो सति सुत कहं ते जाये॥
तुरतहिं कथा प्रगट ह्वै सारी।
करी सोच गिरिजा मन भारी॥
कियो न भल स्वामी तुम जाओ।
लाओ सुवन जहां से पाओ॥
चले तुरत सुनि शिव विज्ञानी।
चट एक हस्ती के सिर आनी॥
धड़ ऊपर थापित करि दीन्हें।
प्राण वायु संचालन कीन्हें॥
नाम गणेश शंभु तव कीन्हें।
बनहु बुद्धि निधि अब वर दीन्हें॥
प्रथम पूज्य तुम हो सुखदाता।
अति शुचि विद्या बुद्धि सुज्ञाता॥
नाम तुम्हार प्रथम लै कोई।
कारज करें सकल सिद्धि होती॥
तुम सुमिरत सुख संपति नाना।
तुम्हें विसारे नहीं कल्याना॥
तुम्हारो शाप आज जग अंकित।
चौथ मयंक भयो अकलंकित॥
बुद्धि परीक्षा तुहिं शिव कीन्हें।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥
चले षडानन भरमि भुलाई।
रचि बैठे तुम बुद्धि उपाई॥
राम नाम लिखि महि पर अंका।
सात भंवर दी करी न शंका॥
धनि गणेश कहि शिव मन हर्षे।
नभते सुरन सुमन बहु वर्षे॥
तुम्हरि महिमा बुद्धि बड़ाई।
शेष सहसमुख सके न गाई॥
मैं मति हीन मलीन दुखारी। 
करौं कौन विधि विनय तुम्हारी॥
भजत राम सुंदर प्रभु दासा।
लग प्रयाग ककरा दुर्वासा॥
अब प्रभु दया दीन पर कीजै।
अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजिए॥
श्री गणेश यह चालीसा,
पाठ करें धरि ध्यान।
नित नव मंगल गृह लहै,
मिलै जगत सनमान॥
दुई सहस्त्र दस विक्रमी,
कृष्ण भाद्र तिथि गंगा।
पूरण चालीसा भयो,
सुंदर भक्ति अभंग॥
॥इति श्री गणेश चालीसा॥





Friday, 22 September 2023

#सन्तान #लक्ष्मी

#श्रीसन्तान #लक्ष्मी नामावलिः॥

ध्यानम् -
अयि खगवाहिनी मोहिनि चक्रिणि रागविवर्धिनि ज्ञानमये ।
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि सप्तस्वर भूषित गाननुते ।
सकल सुरासुर देव मुनीश्वर मानव वन्दित पादयुते ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि सन्तानलक्ष्मि परिपालय माम् ।

(ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं लक्ष्मीनारायणाय नमः।) 

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सन्तानलक्ष्म्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लींअसुरघ्न्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लींअर्चितायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लींअमृतप्रसवे नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लींअकाररूपायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लींअयोध्यायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लींअश्विन्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लींअमरवल्लभायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लींअखण्डितायुषे नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं इन्दुनिभाननायै नमः १०

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं इज्यायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं इन्द्रादिस्तुतायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं उत्तमायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं उत्कृष्टवर्णायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं उर्व्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कमलस्रग्धरायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कामवरदायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कमठाकृत्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं काञ्चीकलापरम्यायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कमलासनसंस्तुतायै नमः । २०

ॐ ह्रीं श्रीं क्लींकम्बीजायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कौत्सवरदायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कामरूपनिवासिन्यै नमः।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं खड्गिन्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गुणरूपायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गुणोद्धतायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गोपालरूपिण्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गोप्त्र्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गहनायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गोधनप्रदायै नमः ।३०

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं चित्स्वरूपायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं चराचरायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं चित्रिण्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं चित्रायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गुरुतमायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गम्यायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गोदायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गुरुसुतप्रदायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ताम्रपर्ण्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं तीर्थमय्यै नमः । ४०

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं तापस्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं तापसप्रियायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लींत्र्यैलोक्यपूजितायै  नमः। 
ॐ ह्रीं श्रीं क्लींजनमोहिन्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लींजलमूर्त्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लींजगद्बीजायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लींजनन्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लींजन्मनाशिन्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लींजगद्धात्र्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लींजितेन्द्रियायै नमः ।५०

ॐ ह्रीं श्रीं क्लींज्योतिर्जायायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लींद्रौपद्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं देवमात्रे नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं दुर्धर्षायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं दीधितिप्रदायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं दशाननहरायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं डोलायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं द्युत्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लींदीप्तायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नुत्यै नमः । ६०
 
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं निषुम्भघ्न्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नर्मदायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नक्षत्राख्यायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नन्दिन्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं पद्मिन्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं पद्मकोशाक्ष्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं पुण्डलीकवरप्रदायै नमः।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं पुराणपरमायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं प्रीत्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भालनेत्रायै नमः ।७०

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भैरव्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भूतिदायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भ्रामर्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भ्रमायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भूर्भुवस्वः स्वरूपिण्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं मायायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं मृगाक्ष्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं मोहहन्त्र्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं मनस्विन्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महेप्सितप्रदायै नमः। ८०

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं मात्रमदहृतायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं मदिरेक्षणायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं युद्धज्ञायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं यदुवंशजायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं यादवार्तिहरायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं युक्तायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं यक्षिण्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं यवनार्दिन्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं लक्ष्म्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं लावण्यरूपायै नमः ।९०

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ललितायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं लोललोचनायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं लीलावत्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं लक्षरूपायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं विमलायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वसवे नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं व्यालरूपायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वैद्यविद्यायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वासिष्ठ्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वीर्यदायिन्यै नमः । १००

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं शबलायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं शान्तायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं शक्तायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं शोकविनाशिन्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं शत्रुमार्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं शत्रुरूपायै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सुश्रोण्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सुमुख्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं हावभूम्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं हास्यप्रियायै नमः । १११
॥ ॐ ॥
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संतान लक्ष्मी के १०८ नाम!! 
सन्तान की उन्नति और रक्षा के लिए मां संतान लक्ष्मी जी की उपासना की जाती है।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


Monday, 18 September 2023

गणेश स्तोत्र लिंक

गणेश स्तोत्र महात्म्य १
https://youtu.be/C6w5nuXHBdM?si=i-v9V4CNyNPm7DFf

गणेश स्तोत्र -
https://youtu.be/xOQ7OKGCPyU?si=ELpX3LgXuCRcA_4V

Ganesh Chaturthi worship #गणेश #चतुर्थी पूजा विधि

#गणेशचतुर्थी संक्षिप्त पूजन विधि।। 
।।पवित्रीकरण।।  
बायें हाथ में जल लेकर उसे दायें हाथ से ढक कर मंत्र पढ़ें एवं मंत्र पढ़ने के बाद इस जल को दाहिने हाथ से अपने सम्पूर्ण शरीर पर छिड़क लें। 

॥ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः॥ 

आचमन 
मन , वाणि एवं हृदय की शुद्धि के लिए आचमनी द्वारा जल लेकर तीन बार मंत्र के उच्चारण के साथ पिएं। 
ॐ केशवाय नमः।  
ॐ नारायणाय नमः। 
ॐ माधवाय नमः।  
ॐ हृषीकेशाय नमः।
इस मंत्र को बोलकर हाथ धो लें।

शिखा बंधन  
शिखा पर दाहिना हाथ रखकर दैवी शक्ति की स्थापना करें।                                                           

चिद्रुपिणि महामाये दिव्य तेजः समन्विते ,तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजो वृद्धिं कुरुष्व मे॥

मौली बांधने का मंत्र-  
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।  
तेन त्वामनुबध्नामि  रक्षे मा चल मा चल॥
  
तिलक लगाने का मंत्र-  
कान्तिं लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम्। 
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम्॥

यज्ञोपवीत मंत्र-  
ॐ यज्ञोपवीतम् परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं  बलमस्तु  तेज:।।

पुराना यगोपवीत त्यागने का मंत्र  

एतावद्दिनपर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया।  
जीर्णत्वात् त्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथासुखम्।
 ● 
न्यास:-  
संपूर्ण शरीर को साधना के लिये पुष्ट एवं सबल बनाने के लिए प्रत्येक मन्त्र के साथ संबन्धित अंग को दाहिने हाथ से स्पर्श करें।

ॐ वाङ्ग में आस्येस्तु  -  मुख को
ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु  -  नासिका के छिद्रों को
ॐ चक्षुर्में तेजोऽस्तु - दोनो नेत्रों को
ॐ कर्णयोमें श्रोत्रंमस्तु - दोनो कानों को
ॐ बह्वोर्मे  बलमस्तु  - दोनोें बाजुओं को
ॐ ऊवोर्में ओजोस्तु  -  दोनों जंघाओ  को
ॐ अरिष्टानि मे अङ्गानि सन्तु -   सम्पूर्ण शरीर को

आसन पूजन-   
अब अपने आसन के नीचे चन्दन या कुमकुम से त्रिकोण बनाकर उसपर अक्षत पुष्प समर्पित करें एवं मन्त्र बोलते हुए हाथ जोडकर प्रार्थना करें। 

ॐ पृथ्वि त्वया धृतालोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ 

दिग् बन्धन:-   
बायें हाथ में जल या चावल लेकर दाहिने हाथ से चारों दिशाओ में छिड़कें। 

 ॐ अपसर्पन्तु ये भूता ये भूताःभूमि संस्थिताः। 
ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया॥ 
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशम्। 
सर्वेषाम विरोधेन  पूजाकर्म समारम्भे ॥ 

 ।।गणेश स्मरण।।   
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः। 
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः॥ 

धुम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः।   
द्वादशैतानि नामानि  यः पठेच्छृणुयादपि॥ 

विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा। 
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते॥ 

।।श्री गुरु ध्यान।।  
अस्थि चर्म युक्त देह को हिं गुरु नहीं कहते अपितु इस देह में जो ज्ञान समाहित है उसे गुरु कहते हैं , इस ज्ञान की प्राप्ति के लिये उन्होने जो तप और त्याग किया है , हम उन्हें नमन करते हैं , गुरु हीं हमें दैहिक , भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करने का ज्ञान देतें हैं इसलिये शास्त्रों में गुरु का महत्व सभी देवताओं से ऊँचा माना गया है , ईश्वर से भी पहले गुरु का ध्यान एवं पूजन करना शास्त्र सम्मत कही गई है।

द्विदल कमलमध्ये  बद्ध  संवित्समुद्रं। धृतशिवमयगात्रं  साधकानुग्रहार्थम् ॥
श्रुतिशिरसि विभान्तं बोधमार्तण्ड मूर्तिं। शमित तिमिरशोकं श्री गुरुं भावयामि॥

ह्रिद्यंबुजे कर्णिक मध्यसंस्थं। 
सिंहासने संस्थित दिव्यमूर्तिम्॥
ध्यायेद् गुरुं चन्द्रशिला प्रकाशं।       
चित्पुस्तिकाभिष्टवरं दधानम्॥
श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः ध्यानं समर्पयामि।

॥ श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः प्रार्थनां समर्पयामि , श्री गुरुं मम हृदये आवाहयामि मम हृदये कमलमध्ये स्थापयामि नमः॥ 

।।गणेश पूजन।। 
                 ।।ध्यानम।।
खर्वं स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरं, प्रस्यन्दन्मदगन्ध लुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम्।  
दन्ताघातविदारितारिरुधिरैः    सिन्दुरशोभाकरं। वन्दे शैलसुता सुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम्॥
ॐ गं गणपतये नमः ध्यानं समर्पयामि।

              ।।आवाहन।।
ॐ गणानां त्वां गणपति ( गूं ) हवामहे प्रियाणां त्वां प्रियपति ( गूं ) हवामहे निधीनां त्वां निधिपति ( गूं ) हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्॥

एह्येहि हेरन्ब महेशपुत्र समस्त  विघ्नौघविनाशदक्ष।
माङ्गल्यपूजाप्रथमप्रधान गृहाण पूजां भगवन् नमस्ते॥
ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धि सहिताय गणपतये नमः। गणपतिमावाहयामि ,स्थापयामि पूजयामि। 

।।आसन।।
॥अनेकरत्नसंयुक्तं नानामणि गणान्वितम् कार्तस्वरमयं दिव्यमासनं परिगृह्यताम॥
ॐ गं गणपतये नमः आसनार्थे  पुष्पं समर्पयामि।

।।स्नान।।
॥मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपाप हरं शुभम्। तदिदं कल्पितं देव  स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ 

ॐ गं गणपतये नमः  पाद्यं , अर्ध्यं , आचमनीयं च  स्नानं समर्पयामि, पुनः आचमनीयं जलं समर्पयामि।(पांच आचमनी जल प्लेट में चढायें )

।।वस्त्र।।
॥ सर्वभुषादिके सौम्ये  लोके  लज्जानिवारणे , मयोपपादिते तुभ्यं गृह्यतां वसिसे शुभे ॥
ॐ गं गणपतये नमः वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि , आचमनीयं जलं समर्पयामि।

।।यज्ञोपवीत।।
ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं  पुरस्तात्।
आयुष्यमग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः॥
यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वा यज्ञोपवितेनोपनह्यामि।
नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं  त्रिगुणं   देवतामयम्।
उपवीतं मया दत्तं गृहाण    परमेश्वर॥
ॐ गं  गणपतये नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि,यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।

।।चन्दन।।
॥ॐ श्रीखण्डं  चन्दनं  दिव्यं  गन्धाढयं सुमनोहरं , विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ गं गणपतये नमः चन्दनं समर्पयामि।

।।अक्षत।।
॥अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुङ्कुमाक्ताः  सुशोभिताः मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर॥
ॐ गं गणपतये नमः अक्षतान् समर्पयामि।

।।पुष्प।।
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्तितः मयाऽऽ ह्रतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यतां॥ 
ॐ गं गणपतये नमः पुष्पं बिल्वपत्रं च समर्पयामि ।

।।दूर्वा।।
॥दूर्वाङ्कुरान् सुहरितानमृतान् मङ्गलप्रदान्,आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण गणनायक॥
ॐ गं गणपतये नमः दूर्वाङ्कुरान समर्पयामि।

।।सिन्दुर।।
॥ सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् ,शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ गं गणपतये नमः सिदूरं समर्पयामि।

।।धूप।।
॥ वनस्पति रसोद् भूतो    गन्धाढयो  सुमनोहरः,आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ गं गणपतये नमः धूपं आघ्रापयामि ।

।।दीप।।
॥ साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना  योजितं मया, दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम्॥ 
ॐ गं गणपतये नमः दीपं दर्शयामि।

।।नैवैद्य।।
॥शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीर घृतानि च , आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवैद्यं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ गं गणपतये नमः नैवैद्यं निवेदयामि नानाऋतुफलानि च समर्पयामि, आचमनीयं जलं समर्पयामि।

।।ताम्बूल।।
॥पूगीफलं महद्दिव्यम् नागवल्ली दलैर्युतम्  एलालवङ्ग संयुक्तं ताम्बूलं  प्रतिगृह्यताम्॥ 
ॐ गं गणपतये नमः ताम्बूलं समर्पयामि।

।।दक्षिणा।।
॥हिरण्यगर्भगर्भस्थं  हेमबीजं विभावसोः   अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं  प्रयच्छ मे॥
ॐ गं गणपतये नमः कृतायाः  पूजायाः सद् गुण्यार्थे द्रव्य दक्षिणां समर्पयामि।

               ।।आरती।।
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे,मूसे की सवारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

विघ्न विनाशक स्वामी सुख संपत्ति देवा।
सब काम सिद्ध करे श्री गणेश देवा।।
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

॥ कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम्,आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मां वरदोभव॥
ॐ गं गणपतये नमः आरार्तिकं समर्पयामि।

।।मन्त्रपुष्पाञ्जलि।।
॥नानासुगन्धिपुष्पाणि  यथाकालोद् भवानि च  पुष्पाञ्जलिर्मया दत्तो गृहान परमेश्वर॥

ॐ गं गणपतये नमः। मन्त्रपुष्पाञ्जलिम् समर्पयामि।

।।प्रदक्षिणा।।
॥ यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानिच,तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे॥
ॐ गं गणपतये नमः  प्रदक्षिणां समर्पयामि।

।।विशेषार्ध्य।।
रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्यरक्षक , भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात्। 
द्वैमातुर कृपासिन्धो  षाण्मातुराग्रज प्रभो, वरदस्त्वं वरं देहि वाञ्छितं वाञ्छितार्थद॥ 
अनेन सफलार्ध्येण वरदोऽस्तु सदामम॥
ॐ गं गणपतये नमः विशेषार्ध्य    समर्पयामि।

            ।।प्रार्थना।।
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय 
लम्बोदराय सकलाय जगध्दिताय
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय  
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते

भक्तार्तिनाशनपराय गणेश्वराय   
सर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय
विद्याधराय विकटाय च वामनाय  
भक्तप्रसन्नवरदाय नमो नमस्ते

नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नमः 
नमस्ते रुद्ररुपाय करिरुपाय ते नमः
विश्वरूपस्वरुपाय नमस्ते ब्रह्मचारिणे भक्तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक
त्वां विघ्नशत्रुदलनेति च सुन्दरेति  
भक्तप्रियेति सुखदेति फलप्रदेति

विद्याप्रदेत्यघहरेति च ये स्तुवन्ति 
तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव
त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या  
विश्वस्य बीजं परमासि माया
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्  
त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः। 

ॐ  गं  गणपतये नमः   प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान्  समर्पयामि। (साष्टाङ्ग  नमस्कार करें )
             ।।समर्पण।।
गणेशपूजने कर्म यन्न्यूनमधिकं कृतम्।
तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्नोऽस्तु सदा मम॥
अनया पूजया गणेशे प्रियेताम् न मम।
( ऐसा कहकार समस्त पूजनकर्म भगवान् को समर्पित कर दें ) तथा पुनः नमस्कार करें। गणेश जी से आशीर्वाद मांगें।आप चाहें तो गुरुप्रदत्त सर्वार्थ सिद्धि गणेश मंत्र और अथर्वशीर्ष का पाठ करें।
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