Monday, 18 September 2023

Ganesh Chaturthi worship #गणेश #चतुर्थी पूजा विधि

#गणेशचतुर्थी संक्षिप्त पूजन विधि।। 
।।पवित्रीकरण।।  
बायें हाथ में जल लेकर उसे दायें हाथ से ढक कर मंत्र पढ़ें एवं मंत्र पढ़ने के बाद इस जल को दाहिने हाथ से अपने सम्पूर्ण शरीर पर छिड़क लें। 

॥ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः॥ 

आचमन 
मन , वाणि एवं हृदय की शुद्धि के लिए आचमनी द्वारा जल लेकर तीन बार मंत्र के उच्चारण के साथ पिएं। 
ॐ केशवाय नमः।  
ॐ नारायणाय नमः। 
ॐ माधवाय नमः।  
ॐ हृषीकेशाय नमः।
इस मंत्र को बोलकर हाथ धो लें।

शिखा बंधन  
शिखा पर दाहिना हाथ रखकर दैवी शक्ति की स्थापना करें।                                                           

चिद्रुपिणि महामाये दिव्य तेजः समन्विते ,तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजो वृद्धिं कुरुष्व मे॥

मौली बांधने का मंत्र-  
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।  
तेन त्वामनुबध्नामि  रक्षे मा चल मा चल॥
  
तिलक लगाने का मंत्र-  
कान्तिं लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम्। 
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम्॥

यज्ञोपवीत मंत्र-  
ॐ यज्ञोपवीतम् परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं  बलमस्तु  तेज:।।

पुराना यगोपवीत त्यागने का मंत्र  

एतावद्दिनपर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया।  
जीर्णत्वात् त्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथासुखम्।
 ● 
न्यास:-  
संपूर्ण शरीर को साधना के लिये पुष्ट एवं सबल बनाने के लिए प्रत्येक मन्त्र के साथ संबन्धित अंग को दाहिने हाथ से स्पर्श करें।

ॐ वाङ्ग में आस्येस्तु  -  मुख को
ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु  -  नासिका के छिद्रों को
ॐ चक्षुर्में तेजोऽस्तु - दोनो नेत्रों को
ॐ कर्णयोमें श्रोत्रंमस्तु - दोनो कानों को
ॐ बह्वोर्मे  बलमस्तु  - दोनोें बाजुओं को
ॐ ऊवोर्में ओजोस्तु  -  दोनों जंघाओ  को
ॐ अरिष्टानि मे अङ्गानि सन्तु -   सम्पूर्ण शरीर को

आसन पूजन-   
अब अपने आसन के नीचे चन्दन या कुमकुम से त्रिकोण बनाकर उसपर अक्षत पुष्प समर्पित करें एवं मन्त्र बोलते हुए हाथ जोडकर प्रार्थना करें। 

ॐ पृथ्वि त्वया धृतालोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ 

दिग् बन्धन:-   
बायें हाथ में जल या चावल लेकर दाहिने हाथ से चारों दिशाओ में छिड़कें। 

 ॐ अपसर्पन्तु ये भूता ये भूताःभूमि संस्थिताः। 
ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया॥ 
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशम्। 
सर्वेषाम विरोधेन  पूजाकर्म समारम्भे ॥ 

 ।।गणेश स्मरण।।   
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः। 
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः॥ 

धुम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः।   
द्वादशैतानि नामानि  यः पठेच्छृणुयादपि॥ 

विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा। 
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते॥ 

।।श्री गुरु ध्यान।।  
अस्थि चर्म युक्त देह को हिं गुरु नहीं कहते अपितु इस देह में जो ज्ञान समाहित है उसे गुरु कहते हैं , इस ज्ञान की प्राप्ति के लिये उन्होने जो तप और त्याग किया है , हम उन्हें नमन करते हैं , गुरु हीं हमें दैहिक , भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करने का ज्ञान देतें हैं इसलिये शास्त्रों में गुरु का महत्व सभी देवताओं से ऊँचा माना गया है , ईश्वर से भी पहले गुरु का ध्यान एवं पूजन करना शास्त्र सम्मत कही गई है।

द्विदल कमलमध्ये  बद्ध  संवित्समुद्रं। धृतशिवमयगात्रं  साधकानुग्रहार्थम् ॥
श्रुतिशिरसि विभान्तं बोधमार्तण्ड मूर्तिं। शमित तिमिरशोकं श्री गुरुं भावयामि॥

ह्रिद्यंबुजे कर्णिक मध्यसंस्थं। 
सिंहासने संस्थित दिव्यमूर्तिम्॥
ध्यायेद् गुरुं चन्द्रशिला प्रकाशं।       
चित्पुस्तिकाभिष्टवरं दधानम्॥
श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः ध्यानं समर्पयामि।

॥ श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः प्रार्थनां समर्पयामि , श्री गुरुं मम हृदये आवाहयामि मम हृदये कमलमध्ये स्थापयामि नमः॥ 

।।गणेश पूजन।। 
                 ।।ध्यानम।।
खर्वं स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरं, प्रस्यन्दन्मदगन्ध लुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम्।  
दन्ताघातविदारितारिरुधिरैः    सिन्दुरशोभाकरं। वन्दे शैलसुता सुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम्॥
ॐ गं गणपतये नमः ध्यानं समर्पयामि।

              ।।आवाहन।।
ॐ गणानां त्वां गणपति ( गूं ) हवामहे प्रियाणां त्वां प्रियपति ( गूं ) हवामहे निधीनां त्वां निधिपति ( गूं ) हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्॥

एह्येहि हेरन्ब महेशपुत्र समस्त  विघ्नौघविनाशदक्ष।
माङ्गल्यपूजाप्रथमप्रधान गृहाण पूजां भगवन् नमस्ते॥
ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धि सहिताय गणपतये नमः। गणपतिमावाहयामि ,स्थापयामि पूजयामि। 

।।आसन।।
॥अनेकरत्नसंयुक्तं नानामणि गणान्वितम् कार्तस्वरमयं दिव्यमासनं परिगृह्यताम॥
ॐ गं गणपतये नमः आसनार्थे  पुष्पं समर्पयामि।

।।स्नान।।
॥मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपाप हरं शुभम्। तदिदं कल्पितं देव  स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ 

ॐ गं गणपतये नमः  पाद्यं , अर्ध्यं , आचमनीयं च  स्नानं समर्पयामि, पुनः आचमनीयं जलं समर्पयामि।(पांच आचमनी जल प्लेट में चढायें )

।।वस्त्र।।
॥ सर्वभुषादिके सौम्ये  लोके  लज्जानिवारणे , मयोपपादिते तुभ्यं गृह्यतां वसिसे शुभे ॥
ॐ गं गणपतये नमः वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि , आचमनीयं जलं समर्पयामि।

।।यज्ञोपवीत।।
ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं  पुरस्तात्।
आयुष्यमग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः॥
यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वा यज्ञोपवितेनोपनह्यामि।
नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं  त्रिगुणं   देवतामयम्।
उपवीतं मया दत्तं गृहाण    परमेश्वर॥
ॐ गं  गणपतये नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि,यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।

।।चन्दन।।
॥ॐ श्रीखण्डं  चन्दनं  दिव्यं  गन्धाढयं सुमनोहरं , विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ गं गणपतये नमः चन्दनं समर्पयामि।

।।अक्षत।।
॥अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुङ्कुमाक्ताः  सुशोभिताः मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर॥
ॐ गं गणपतये नमः अक्षतान् समर्पयामि।

।।पुष्प।।
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्तितः मयाऽऽ ह्रतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यतां॥ 
ॐ गं गणपतये नमः पुष्पं बिल्वपत्रं च समर्पयामि ।

।।दूर्वा।।
॥दूर्वाङ्कुरान् सुहरितानमृतान् मङ्गलप्रदान्,आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण गणनायक॥
ॐ गं गणपतये नमः दूर्वाङ्कुरान समर्पयामि।

।।सिन्दुर।।
॥ सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् ,शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ गं गणपतये नमः सिदूरं समर्पयामि।

।।धूप।।
॥ वनस्पति रसोद् भूतो    गन्धाढयो  सुमनोहरः,आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ गं गणपतये नमः धूपं आघ्रापयामि ।

।।दीप।।
॥ साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना  योजितं मया, दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम्॥ 
ॐ गं गणपतये नमः दीपं दर्शयामि।

।।नैवैद्य।।
॥शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीर घृतानि च , आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवैद्यं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ गं गणपतये नमः नैवैद्यं निवेदयामि नानाऋतुफलानि च समर्पयामि, आचमनीयं जलं समर्पयामि।

।।ताम्बूल।।
॥पूगीफलं महद्दिव्यम् नागवल्ली दलैर्युतम्  एलालवङ्ग संयुक्तं ताम्बूलं  प्रतिगृह्यताम्॥ 
ॐ गं गणपतये नमः ताम्बूलं समर्पयामि।

।।दक्षिणा।।
॥हिरण्यगर्भगर्भस्थं  हेमबीजं विभावसोः   अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं  प्रयच्छ मे॥
ॐ गं गणपतये नमः कृतायाः  पूजायाः सद् गुण्यार्थे द्रव्य दक्षिणां समर्पयामि।

               ।।आरती।।
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे,मूसे की सवारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

विघ्न विनाशक स्वामी सुख संपत्ति देवा।
सब काम सिद्ध करे श्री गणेश देवा।।
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

॥ कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम्,आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मां वरदोभव॥
ॐ गं गणपतये नमः आरार्तिकं समर्पयामि।

।।मन्त्रपुष्पाञ्जलि।।
॥नानासुगन्धिपुष्पाणि  यथाकालोद् भवानि च  पुष्पाञ्जलिर्मया दत्तो गृहान परमेश्वर॥

ॐ गं गणपतये नमः। मन्त्रपुष्पाञ्जलिम् समर्पयामि।

।।प्रदक्षिणा।।
॥ यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानिच,तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे॥
ॐ गं गणपतये नमः  प्रदक्षिणां समर्पयामि।

।।विशेषार्ध्य।।
रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्यरक्षक , भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात्। 
द्वैमातुर कृपासिन्धो  षाण्मातुराग्रज प्रभो, वरदस्त्वं वरं देहि वाञ्छितं वाञ्छितार्थद॥ 
अनेन सफलार्ध्येण वरदोऽस्तु सदामम॥
ॐ गं गणपतये नमः विशेषार्ध्य    समर्पयामि।

            ।।प्रार्थना।।
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय 
लम्बोदराय सकलाय जगध्दिताय
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय  
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते

भक्तार्तिनाशनपराय गणेश्वराय   
सर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय
विद्याधराय विकटाय च वामनाय  
भक्तप्रसन्नवरदाय नमो नमस्ते

नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नमः 
नमस्ते रुद्ररुपाय करिरुपाय ते नमः
विश्वरूपस्वरुपाय नमस्ते ब्रह्मचारिणे भक्तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक
त्वां विघ्नशत्रुदलनेति च सुन्दरेति  
भक्तप्रियेति सुखदेति फलप्रदेति

विद्याप्रदेत्यघहरेति च ये स्तुवन्ति 
तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव
त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या  
विश्वस्य बीजं परमासि माया
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्  
त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः। 

ॐ  गं  गणपतये नमः   प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान्  समर्पयामि। (साष्टाङ्ग  नमस्कार करें )
             ।।समर्पण।।
गणेशपूजने कर्म यन्न्यूनमधिकं कृतम्।
तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्नोऽस्तु सदा मम॥
अनया पूजया गणेशे प्रियेताम् न मम।
( ऐसा कहकार समस्त पूजनकर्म भगवान् को समर्पित कर दें ) तथा पुनः नमस्कार करें। गणेश जी से आशीर्वाद मांगें।आप चाहें तो गुरुप्रदत्त सर्वार्थ सिद्धि गणेश मंत्र और अथर्वशीर्ष का पाठ करें।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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