Wednesday, 15 June 2022

सुनहरे पल

 

                    यादें .…

   "डॉ, नारायण दत्त श्रीमाली परमहंस स्वामी श्री निखिलेश्वरानन्द जी"

आज से एक नई श्रृंखला प्रारंभ की जा रही है ।यह श्रृंखला है उन सुनहरे पलों की, जो कि "डॉ नारायण दत्त श्रीमाली परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी" के सानिध्य में उपस्थित शिष्य और शिष्याओं को प्राप्त हुआ।

 गुरुदेव ने अपने संक्षिप्त प्रवचनों में अनेक गूढ़ और दुर्लभ रहस्यों को उजागर किया है।जिसका थोड़ा-बहुत संकलन सुरक्षित है। उसे ही यहां प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा है।

 उम्मीद है कि यह प्रयास आप सभी लोगों के जीवन में संभवतः कुछ सार्थकता ले आए, कुछ नए अनुभव, कुछ नए विचार लेकर के आए।

🙏धन्यवाद🙏

Friday, 10 June 2022

तुलसीदास जी रचित गंगा स्तुति


तुलसीदास जी रचित गंगा स्तुति
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जय जय भगीरथ नंदिनी , मुनि  चय चकोर – चंदनी ,

नर – नाग – विबुध – बंदिनी , जय जन्हू बालिका ।

विष्णु – पद सरोजरासी , ईस – सीस पर बिभासि ,

त्रिपथगासि पुण्यराशि , पाप – छालिका ॥१॥

अर्थ : हे भगीरथ नंदिनी , तुम्हारी जय हो , जय हो । तुम मुनियों के समूह रूपी चकोरों के लिए चंद्रिका रूप हो । मनुष्य , नाग और देवता तुम्हारी वंदना करते हैं । हे जन्हू की पुत्री , तुम्हारी जय हो ।

तुम भगवान विष्णु के चरण कमल से उत्पन्न हुई हो , शिवजी के मस्तक पर शोभा पाती हो । स्वर्ग , भूमि और पाताल इन तीनों मार्गों से तीन धाराओं में होकर बहती ही । पुण्यों की राशि और पापों को धोने वाली हो ।


विमल विपुल बहसि बारी , शीतल त्रयताप – हारी ,

भँवर बर बिभंगतर , तरंग – मालिका ।

पुरजन पूजोपहार , शोभित शशि धवलधार ,

भंजन – भव – भार , भक्ति – कल्पथालिका ॥२॥

अर्थ : तुम अगाध निर्मल जल धारण किए हो , वह जल शीतल है और तीनों तापों को हरने वाला है । तुम सुंदर भँवर और अति चंचल तरंगों की माला धारण किए हो ।

नगर वासियों ने पूजा के समय उपहार चढ़ाये उनसे चंद्रमा के समान तुम्हारी धवल धारा शोभित हो रही है । यह धारा संसार के जन्म मरण रूप भार का नाश करने वाली तथा भक्ति रूपी कल्पवृक्ष की रक्षा के लिए थाल्हा रूप है ।


निज तटबासी बिहंग , जल – थर – चर पशु – पतंग

कीट , जटिल तापस , सब सरिस पालिका ।

तुलसी तब तीर तीर , सुमिरत रघुवंश बीर ,

बिचरत मति देहि , मोह – महिष – कालिका ॥३॥

अर्थ : तुम अपने तीर पर रहने वाले पक्षी , जलचर , पशु ,न पतंग , कीट और जटाधारी तपस्वी आदि सबका समान भाव से पालन करती हो ।

हे मोह रूपी महिषासुर को मारने के लिए कालिका रूप गंगाजी , मुझ तुलसीदास को ऐसी बुद्धि दो जिससे वह श्री रघुनाथ जी का स्मरण करते हुए तुम्हारे तीर पर विचरा करे ।

Monday, 6 June 2022

अनुशासन का पालन क्यों.…

                  अनुशासित जीवन ही सफलता का आधार🙄😊               

 अनुशासन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लाभप्रद है, चाहे वह छात्र जीवन हो, परिवार जीवन हो, समाज जीवन हो या राष्ट्र जीवन । 

अनुशासन जीवन के हर क्षेत्र का प्राण है । जीवन में अनुशासन पालन न केवल आवश्यक ही है, अपितु अनिवार्य भी है । 

अनुशासित रूप में चलने पर ही जीवन की सफलता आधारित है । जहां अनुशासन नहीं, वहाँ सफलता नहीं, समृद्धि नहीं, विकास नहीं । 

तभी तो महाभारत युद्ध से पूर्व अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से कहा था - 

 🙏‘शाधि  मां त्वां प्रपन्तम् ।’ 

🙏 प्रभो! मैं आपकी शरण में हूँ , मुझे अनुशासित कीजिए ।  

जहां शील - संयम , सदाचार, मर्यादाओं का अनुपालन और जीवन की व्यवहारिक सीमाओं का सम्मान है, 

वहाँ देव - अनुग्रह और प्राकृतिक अनुकूलताएँ सहज साकार होने लगती हैं ।😊


🙏आज इतना ही🙏

🙏 धन्यवाद 🙏

Friday, 3 June 2022

अनुष्ठान में सिद्धि क्यों नहीं मिलती है?



श्रद्धा है या विश्वास करते हैं?

👉 साधना अनुष्ठान में ,पूजा पाठ करने से, व्रत उपवास करने से मेरी अभीष्ट की सिद्धि क्यों नहीं होती है? 

यह प्रश्न लेकर के लोग अपने गुरुजनों से या अपने वरिष्ठ गुरु भाई बहनों से पूछते रहते हैं कि, मैंने इतना सारा मंत्र जप किया, इतने लाख मंत्र जप किया... 

😐लेकिन मुझे सिद्धि क्यों नहीं मिली ? यह मंत्र मुझे सिद्ध क्यों नहीं हुआ?

 इसका उत्तर स्वयं आपके पास में है-

👉 हां! इसका उत्तर तो आपके ही पास में है।

 अब आप पूछेंगे कि हमारे पास उत्तर है तो हमें क्यों नहीं पता है…🤔

🙏 तो इसके लिए आप स्वयं से पूछिए कि - आप जो भी मंत्र-अनुष्ठान कर रहे हैं, पूजा-पाठ, व्रत-उपवास कर रहे हैं, उस पर आप "श्रद्धा रखते हैं या विश्वास करते हैं?"

👉 निश्चित रूप से आप श्रद्धा रखते हैं परन्तु विश्वास  नहीं करते हैं ...

👉क्योंकि जो भी आराधक विश्वास करता है, उसके मन में ऐसा प्रश्न उठ ही नहीं सकता है । 

👉श्रद्धा रखने वाले के मन में यह भाव होता है कि, हम इस भगवान की पूजा करेंगे , यह मंत्र अनुष्ठान करेंगे तो, हमारे समस्याओं का समाधान मिलेगा, हमें धन की प्राप्ति होगी, हमारे बिगड़े काम बन जायेंगे और न जाने क्या-क्या चीजें … भौतिक रूप से यही बात - यही भाव लेकर के व्यक्ति पूजा पाठ मंत्र अनुष्ठान आदि करते हैं | प्रायः ऐसा ही सुनने में आता है।

👉और आध्यात्मिक क्षेत्र में लोग अपने आत्मोन्नति के लिए मंत्र जप करते हैं, अनुष्ठान करते हैं, ध्यान की क्रिया इत्यादि करते हैं , लेकिन उनके -----  बहुत सारे लोगों के मन में इस प्रकार का प्रश्न उठता ही है।

उत्तर है क्या ¿ -

उत्तर है - एक नन्हा सा छोटा सा अबोधबालक

 वह बच्चा जो कि अपने माता पिता पर अपने बड़े भाई बहनों पर विश्वास करता है और उसी विश्वास के बल से वह निश्चिंत रहता है … जब उसके माता-पिता उसके बड़े भाई-बहन उसको हवा में जोर से उछाल देते हैं तो 
…पल भर के लिए भी, क्षण मात्र के लिए भी उस बच्चे के मन में यह भाव नहीं आता है कि ===> ऊपर उछल तो गया ==> नीचे कहीं ऐसा तो नहीं कि... जमीन पर गिर जाऊंगा, मुझे चोट लग जाएगी…

 ऐसी सोच उस बच्चे की नहीं होती है😊 

क्योंकि उसे विश्वास है कि मेरे पिता मेरे अभिभावक जो मुझे हवा में इतनी जोरों से उछाले हैं , वह मुझे गिरने देंगे ही नहीं, चोट लगने देंगे ही नहीं और वो खिलखिलाता हुआ हवा में ऊपर उछलता है और खिलखिलाते हुआ वापस नीचे अभिभावक के अपने प्रियजनों के बाहों में आ जाता है, गोद में आ जाता है…

 😊 यह है विश्वास 😊


👉जरा आप अपने आप पर विचार कीजिए🤔

➡️ क्या आप भी यही विश्वास लेकर मंत्र अनुष्ठान पूजा पाठ व्रत उपवास इत्यादि करते हैं ⁉️

🌈 उत्तर आपको स्वयं प्राप्त हो जाएगा🔔

 
🙏आज इतना ही
धन्यवाद🙏

Thursday, 2 June 2022

अपने गुरु को कैसे पहचाने ?

Dr. Narayan Dutt Shrimali Shri Nikhileshwaranand

बहुत सारे लोगों का यह प्रश्न है कि - अध्यात्म पथ पर चलने के लिए, किसी साधना को संपन्न करने के लिए, किसी मंत्र की सिद्धि के लिए क्या किसी गुरु का होना अनिवार्य है? ऐसा कौन सा व्यक्ति है, व्यक्तित्व है, जिसे हम अपना गुरु बनाएं? कैसे पहचानें कि यही व्यक्ति हमारा गुरु बन सकते हैं ?

ठीक यही प्रश्न एक बार मैंने भी अपने गुरु डॉ नारायण दत्त श्रीमाली श्री निखिलेश्वरानंद जी से किया था

प्रभु गुरुदेव ने कहा-  पूर्व निर्धारित होता है कि कौन व्यक्ति किस गुरु का शिष्य बनेगा! जब किसी व्यक्ति विशेष के अंदर यह प्रकार भावना जागृत होती है कि मुझे गुरु दीक्षा लेनी है, तो स्वत: प्रकृति उसका मार्गदर्शन करना प्रारंभ कर देती है।

व्यक्ति जब अपने गुरु के निकट, उस व्यक्तित्व के निकट पहुंचता है, जो कि उसका गुरु बन सकते हैं या बनेंगे, तो उस व्यक्ति विशेष के हृदय में एक अजीब सी बेचैनी - छटपटाहट सी होने लगती है।

 उसे लगता है कि जैसे कि वर्षों-वर्षों पहले बिछड़े थे ...और आज इनको मिल लिए ... अनायास ही मन में आनंद उत्पन्न होने लगता है… आंखों से अश्रु धारा प्रवाहित होने लग जाती है, उसकी एक झलक पाने के लिए मन बेचैन होजाता है।  वह दिख जाएं, तो मन को बहुत ही आनंद होता है, आनंद की प्राप्ति होती है और यदि उनसे दूर जाना पड़ जाए तो बहुत पीड़ा होती है, इतना कष्ट होता है कि जैसे अगर अब दूर चले गए तो पता नहीं फिर कौन से जीवन में दोबारा मिलन संभव हो पाएगा या नहीं!

 जब ऐसी पीड़ा, ऐसी छटपटाहट व्यक्ति के हृदय में किसी व्यक्ति विशेष को देख कर के जगती है तो,

 समझ जाइए वही आपके साधना पथ का, आपके आध्यात्मिक जीवन का गुरु बन सकते हैं।

आज इतना ही 🙏

धन्यवाद 🙏



#नवरात्रि (गुप्त/प्रकट) #विशिष्ट मंत्र प्रयोग #दुर्गा #सप्तशती # पाठ #विधि #सावधानियां

जय जय जय महिषासुर मर्दिनी नवरात्रि के अवसर पर भगवती मां जगदम्बा संसार की अधिष्ठात्री देवी है. जिसके पूजन-मनन से जीवन की समस्त कामनाओं की पूर...