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Dr. Narayan Dutt Shrimali Shri Nikhileshwaranand |
बहुत सारे लोगों का यह प्रश्न है कि - अध्यात्म पथ पर चलने के लिए, किसी साधना को संपन्न करने के लिए, किसी मंत्र की सिद्धि के लिए क्या किसी गुरु का होना अनिवार्य है? ऐसा कौन सा व्यक्ति है, व्यक्तित्व है, जिसे हम अपना गुरु बनाएं? कैसे पहचानें कि यही व्यक्ति हमारा गुरु बन सकते हैं ?
ठीक यही प्रश्न एक बार मैंने भी अपने गुरु डॉ नारायण दत्त श्रीमाली श्री निखिलेश्वरानंद जी से किया था।
प्रभु गुरुदेव ने कहा- पूर्व निर्धारित होता है कि कौन व्यक्ति किस गुरु का शिष्य बनेगा! जब किसी व्यक्ति विशेष के अंदर यह प्रकार भावना जागृत होती है कि मुझे गुरु दीक्षा लेनी है, तो स्वत: प्रकृति उसका मार्गदर्शन करना प्रारंभ कर देती है।
व्यक्ति जब अपने गुरु के निकट, उस व्यक्तित्व के निकट पहुंचता है, जो कि उसका गुरु बन सकते हैं या बनेंगे, तो उस व्यक्ति विशेष के हृदय में एक अजीब सी बेचैनी - छटपटाहट सी होने लगती है।
उसे लगता है कि जैसे कि वर्षों-वर्षों पहले बिछड़े थे ...और आज इनको मिल लिए ... अनायास ही मन में आनंद उत्पन्न होने लगता है… आंखों से अश्रु धारा प्रवाहित होने लग जाती है, उसकी एक झलक पाने के लिए मन बेचैन होजाता है। वह दिख जाएं, तो मन को बहुत ही आनंद होता है, आनंद की प्राप्ति होती है और यदि उनसे दूर जाना पड़ जाए तो बहुत पीड़ा होती है, इतना कष्ट होता है कि जैसे अगर अब दूर चले गए तो पता नहीं फिर कौन से जीवन में दोबारा मिलन संभव हो पाएगा या नहीं!
जब ऐसी पीड़ा, ऐसी छटपटाहट व्यक्ति के हृदय में किसी व्यक्ति विशेष को देख कर के जगती है तो,
समझ जाइए वही आपके साधना पथ का, आपके आध्यात्मिक जीवन का गुरु बन सकते हैं।
आज इतना ही 🙏
धन्यवाद 🙏
Niceee
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