पंचानन शिव : अघोर
अघोरशिव वैदिक मंत्र -
अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यः घोरघोरतरेभ्यः
सर्वेभ्यः सर्वशर्वेभ्यो नमस्तेऽस्तु रुद्ररूपेभ्यः ॥
- यजुर्वेद
अर्थात् जो अघोर हैं एवं घोर हैं तथा घोरसे भी घोरतर हैं, जो सर्वसंहारक रुद्ररूप हैं, ऐसे शिव के उन सभी स्वरूपों को हम वंदन करते हैं।
अघोर का ध्यानवर्णन इस प्रकार से - त्रिनेत्र, श्याम वर्ण, भस्म विलेपित शरीर, नाग के आभूषण, कपालमाला परिधान किए हुए। त्रिशूल, डमरू तथा खड्ग एवं कपाल धारण किए हुए, अघोर स्वरूप शिव का उग्र रुप माना जाता है, जिसे रुद्र भी कहतें है।
शिव का यह अघोर रुप धर्म एवं काल (समय) का स्वामित्व दर्शाता है।
पंचानन शिव के इस अघोर स्वरूप का वर्ण श्यामल (काला) माना जाता है।
शरीर में अघोर के स्थान सूक्ष्मरुप से अनाहतचक्र एवं मणिपुर चक्र तथा स्थूलरुप से गले से लेकर नाभी तक का भाग माने जातें है।
पंचमहाभूतों में अघोर अग्नितत्व का प्रतीनिधीत्व करतें है।
दिशाओं में दक्षिण दिशा के स्वामी तथा पंचानन स्वरूप में दक्षिण दिशा की ओर इनका मुख होता है। यह मुख विकराल (उग्र रुप में) ऐसा उकेरा जाता है।
शिवलिंग में तथा शरीर में अघोर का न्यास करते समय 'मध्यमा' के माध्यम से उनका आवाहन करके उस तत्व को प्रवाहित करने का क्रम है।
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