रूप चतुर्दशी नरक चतुर्दशी में निहित अद्भुत तथ्य
रूप चतुर्दशी नरक चतुर्दशी में निहित तथ्य -
मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी थी। अतः भगवान के वामन अवतार की भी पूजा की जाती है। इसी दिन अंजनि पुत्र बजरंग बली श्री हनुमान जी का भी जन्म हुआ था। शास्त्रानुसार वैसे तो हनुमान जयंती चैत्र मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है लेकिन उत्तर भारत के कई भागों में हनुमान जी का जन्म कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात को हनुमान जी की जयंती के रूप में मनाने की परंपरा है।इसी कारण रात को हनुमान जी का पूजन एवं श्री सुंदर कांड का पाठ भी किया जाता है।
लोग दीपक जला कर छोटी दीवाली के रूप में यह पर्व मनाते हैं। चतुर्दशी की रात को तेल अथवा तिल के तेल के 14 दीपक अवश्य जलाएं, इससे समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में नरकासुर नाम के राक्षस ने अपनी शक्तियों से देवताओं और ऋषि-मुनियों के साथ 16 हजार एक सौ सुंदर राजकुमारियों को भी बंधक बना लिया था। इसके बाद नरकासुर के अत्याचारों से त्रस्त देवता और साधु-संत भगवान श्री कृष्ण की शरण में गए। नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था, इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया और उसकी कैद से 16 हजार एक सौ कन्याओं को स्वतंत्र कराया।
समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए श्री कृष्ण ने इन सभी कन्याओं से विवाह कर लिया।
नरकासुर से मुक्ति पाने की खुशी में देवगण व पृथ्वीवासी बहुत आनंदित हुए। माना जाता है कि तभी से इस पर्व को मनाए जाने की परंपरा शुरू हुई।
इस दिन मृत्यु के देवता यमराज, मां काली और श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है.
इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करके यम तर्पण निम्न मंत्र बोलते हुए करें --
1) यमाय नमः (2) धर्मराजाय नमः (3) मृत्यवे नमः (4) अनन्ताय नमः (5) वैवस्वताय नमः (6) कालाय नमः (7) सर्वभूतक्षयाम नमः (8) औदुम्बराय नमः (9) दघ्नाय नमः (10) नीलाय नमः (11) परमेष्ठिने नमः (12) वृकोदराय नमः (13) चित्राय नमः (14) चित्रगुप्ताय नमः।
और शाम के समय यम दीप दान करें।
नरक चतुर्दशी को दीपक जलाने से यमराज प्रसन्न होते हैं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है. अकाल मृत्यु से मुक्ति और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए नरक चतुर्दशी की पूजा की जाती है.
इस दिन सुबह भगवान कृष्ण की पूजा और शाम को यमराज के लिए दीपक जलाने से तमाम तरह की परेशानियों और पापों से छुटकारा मिल जाता है।
ये त्योहार लक्ष्मी जी की बड़ी बहन दरिद्रा से भी जुड़ा हुआ है।
दिवाली से पहले रूप चौदस के दिन यम के लिए दीपक जलाते हैं। साथ ही घर के बाहर कूड़े-कचरे के पास भी दीपक लगाया जाता है।
कूड़ा, कर्कट, गंदगी आदि दरिद्रा की निशानी हैं। तभी घर के बाहर कूड़ा फेंकने के स्थान पर दीपक लगाया जाता है। इससे दरिद्रा सम्मानपूर्वक घर से चली जाती है।
परंपरा के अनुसार रूप चौदस की रात घर का सबसे बुजुर्ग पूरे घर में एक दीया जलाकर घुमाता है और फिर उसे घर से बाहर कहीं दूर जाकर रख देता है। इस दीये को यम दीया कहा जाता है।
घर के बाकी सदस्य घर में ही रहते हैं।
ऐसा माना जाता है कि इस दीये को पूरे घर में घुमाकर बाहर ले जाने से सभी बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं।
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