#धन्वंतरि_साधना!
धनतेरस से दीपावली के 5 दिवसीय त्यौहार का आरम्भ होता है।
भगवान धन्वंतरि श्रीहरि विष्णु के अवतारों में से 12वें अवतार माने गए हैं.
पौराणिक कथा के अनुसार कार्तिक मास की त्रयोदशी के ही दिन समुद्रमंथन के समय चौदह प्रमुख रत्न निकले थे जिनमें चौदहवें रत्न के रूप में स्वयं भगवान धन्वन्तरि प्रकट हुए जिनके हाथ में अमृतलश था. चार भुजाधारी भगवान धन्वंतरि के एक हाथ में आयुर्वेद ग्रंथ, दूसरे में औषधि कलश, तीसरे में जड़ी बूटी और चौथे में शंख विद्यमान है.
समुद्र के मंथन से उत्पन्न विष का महारूद्र भगवान शंकर ने विषपान किया, धन्वन्तरि ने अमृत औषधि से उनको स्वस्थ किया।
धनतेरस पर कैसे करें भगवान धन्वंतरि की पूजा (Dhanvantari Puja Vidhi)
धनतेरस पर प्रदोष काल में पूजा का विधान है. इस दिन न सिर्फ धन बल्कि परिवार और अपने आरोग्य रूपी धन की कामना के लिए भगवान धन्वंतरि का पूजन करना चाहिए. अच्छा स्वास्थ ही मनुष्य की सबसे बड़ी पूंजी है. धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की पूजा से स्वास्थ्य लाभ मिलता है.
उत्तर-पूर्व दिशा में पूजा की चौकी लगाकर उसपे श्रीहरि विष्णु की मूर्ति या फिर धन्वंतरि देव की चित्र स्थापित करें.
यदि मूर्ति पूजन कर रहे हैं तो भगवान धन्वंतरि का स्मरण कर अभिषेक करें. षोडशोपचार विधि से पूजन करें.।
तत्पश्चात
धन्वंतरि स्तोत्र का पाठ सुनें, सम्भव है तो स्वयं करें।
धन्वंतरि स्तोत्र -
ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम.
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम.
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय
सर्व रोगनिवारणाय त्रिलोकपथाय
त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धन्वंतरि स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः.॥
इनका प्रिय धातु पीतल माना जाता है। इसीलिये धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परम्परा भी है।इस दिन सोने चांदी के साथ ही नई वस्तुओं को खरीदना सबसे शुभ माना जाता है।
कहते हैं इस दिन जो भी वस्तु खरीदी जाती है उसमें अनंत वृद्धि होती है। इस दिन भगवान कुबेर और मां लक्ष्मी की विधि विधान से पूजा की जाती है।
श्री धन्वन्तरि भगवान विष्णु के अवतार हैं जिन्होंने आयुर्वेद प्रवर्तन किया। इनका पृथ्वी लोक में अवतरण समुद्र मन्थन के समय हुआ था। शरद पूर्णिमा को चन्द्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वन्तरि[4], चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती महालक्ष्मी जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था। इसीलिये दीपावली के दो दिन पूर्व धनतेरस को भगवान धन्वन्तरि का अवतरण धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन इन्होंने आयुर्वेद का भी प्रादुर्भाव किया था।[5]
इसके साथ ही कुछ विशेष मंत्रों का जप भी करना चाहिए। आइए जानते हैं ये मंत्र…
भगवान श्रीधन्वंतरि गायत्री मंत्र —
1..ॐ वासुदेवाय विद्महे वैधराजाय धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||
2..ॐ तत्पुरुषाय विद्महे अमृत कलश
हस्ताय धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात्।
(आरोग्य प्राप्ति)
आरोग्यप्राप्ति करने के लिए भगवान श्री धन्वंतरि जी का मंत्र –
ॐ धन्वंतरये नमः॥
ध्यान -
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय धन्वन्तरये अमृत कलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय त्रिलोकनाथाय श्रीमहाविष्णवे नम:।
परम भगवान को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धन्वंतरि कहते हैं, जो अमृत कलश लिए हैं, सर्व भयनाशक हैं, सर्व रोग नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरि को सादर नमन है।
भगवान श्री धन्वंतरि मंत्र रोग बीमारी को दूर करने का लिए —
“ॐ रं रूद्र रोगनाशाय धन्वन्तर्ये फट्।।”
हाथ में अक्षत लेकर कम से कम 5 माला का जप करें।
ॐ धनवांतराय नमः
ॐ धनकुबेराय नमः, ऊं वित्तेश्वराय नमः
ॐ श्रीं श्रिये नमः
ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः
उत्तम स्वास्थ्य और रोगों के नाश की प्रार्थना कर
'ॐ नमो भगवते धन्वंतराय विष्णुरूपाय नमो नमः॥ का 108 बार जाप करें.
यमराज को समर्पित दीपक : इस दिन असामयिक मृत्यु से बचने के लिए यमराज के लिए घर के बाहर दीपक जलाया जाता है जिसे यम दीपम के नाम से जाना जाता है और इस धार्मिक संस्कार को त्रयोदशी तिथि के दिन किया जाता है।
कुबेर के मंत्र
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये
धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः॥
ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी
मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥
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