Sunday, 26 November 2023

#गुरु स्तवन #आह्वान

#गुरु #स्तवन #आह्वान #स्तोत्र
सावधान - मात्र परीक्षण के रुप में, किसी कौतूहल या किसी भी प्रकार से अगरिमा मय रुप में इस स्तवन का पाठ करना सर्वथा वर्जित है ।
            स्तोत्र स्वयं मे मंत्र स्वरुप होते है। किंतु मंत्रो की अपेक्षा एक अन्य विशिष्टता होती है किसी भी स्तोत्र में जहां मंत्र वर्णो का विशिष्ट संयोजन होता है वहीं किसी भी स्तोत्र में लयबद्वता भी होती है तथा इसी लयबद्वता के कारण यह सहज स्वाभाविक हो जाता है कि साधक के हृदय के भाव पूर्णता से प्रस्फुटित हो सकें ।
               इस स्तवन के पाठ अथवा श्रवण मात्र से गुरुदेव सूक्ष्म रुप में उपस्थित होते ही हैं, यह एक अनुभव जन्य प्रमाण है।
               मात्र स्तोत्र पाठ से ही जीवन मे कई प्रकार की अनुकूलताएं प्रप्त हो जाती है ।
                
प्रयोग विधि:-जब कभी भी इस स्तवन का पाठ करने का भाव मन में उमडे़ तब शुद्व वस्त्र धारण कर उत्तरमुख होकर आसन पर बैठें, 
    धूप अगरबत्ती के द्वारा  वातावरण को सुगंधमय कर लें तथा अपने सामने किसी बाजोट पर स्वच्छ वस्त्र बिछाकर गुरुदेव हेतु पुष्प की पंखुडियों को  आसन के रुप में अर्पित करें।
          
                   !!स्तोत्रम!!                  

  पूर्णं सतान्यै परिपूर्ण रुपं
  गुरुर्वै सतान्यं दीर्घो वदान्यम् ।
  आविर्वतां पूर्णं मदेव पुण्यं
  गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यम॥1॥
            त्वमेव माता च...............

न जानामि योगं न जानामि ध्यानं
न मंत्रं न तंत्रं योगं क्रियान्वै ।
न जानामि पूर्ण न देहं न पूर्वं
गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यम॥2॥
                 त्वमेव माता च................

अनाथो दरिद्रो जरा रोग युक्तो
महाक्षीण दीनं: सदा जाडय वक्त्र: ।
विपत्ति प्रविष्ट: सदाऽहं भजामि
गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यम्॥3॥
                   त्वमेव माता च..............

त्वं मातृ रुपं पितृ स्वरुपं
आत्म स्वरुपं प्राण स्वरुपं ।
चैतन्य रुपं देवं दिवन्त्रं
गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यम्॥4॥
                त्वमेव माता च................

त्वं नाथ पूर्णं त्वं देव पूर्णं
आत्म च पूर्णं ज्ञानं च पूर्णम् ।
अहं त्वां प्रपद्ये सदाऽहं भजामि
गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यम॥5॥
              त्वमेव माता च...................

मम अश्रु अर्घ्यं पुष्पं प्रसूनं
देहं च पुष्पं शरण्यं त्वमेवम् ।
जीवोऽवदां पूर्ण मदैव रुपं
गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यम॥6॥
              त्वमेव माता च...................

आवाहयामि आवाहयामि
शरण्यं शरण्यं सदाहं शरण्यं ।
त्वं नाथ मेवं प्रपद्ये प्रसन्नं
गुरुर्वै शरणयं गुरुर्वै शरण्यम॥7॥
                त्वमेव माता च................

न तातो न माता न वन्धुर्न भ्राता
न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता ।
न जाया न वित्तं न वृत्तिर्ममेवं
गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यम॥8॥
                  त्वमेव माता च ...........

आबद्ध रुपं अश्रु प्रवाहं
धियां प्रपद्ये हृदयं वदान्ये ।
देहं त्वमेवं शरण्यं त्वमेवं
गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यम॥9॥
                 त्वमेव माता च................

गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यं
गरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यम्।
एको हि नाथं एको ही शब्दं
गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यम्॥10॥
               त्वमेव माता च..................

कान्तां न पूर्व वदान्यै वदान्यं 
कोऽहं सदान्यै सदाहं वदामि ।
न पूर्व पतिर्वै पतिर्वै सदाऽहं
गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यम्॥11॥
              त्वमेव माता च ................

न प्राणो वदार्वै न देहं नवाऽहं
न नेत्रं न पूर्व सदाऽहं वदान्यै ।
तुच्छं वदां पूर्व मदैव तुल्यं
गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यम्॥12॥
               त्वमेव माता च ................

पूर्वो न पूर्वं न ज्ञानं न तुल्यं
न नारि नरं वै पतिर्वै न पत्न्यम् ।
को कत् कदा कुत्र कदैव तुल्यं
गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यम्॥13॥
              त्वमेव माता च...................

गुरुर्वै गतान्यं गुरुर्वै शतान्यं
गुरुर्वै वदान्यं गुरुर्वै कथान्यम् ।
गुरुमेव रुपं सदाऽहं भजामि
गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यम्॥14॥
               त्वमेव माता च..................

आत्रं वतां अश्रु वदैव रुपं
ज्ञानं वदान्यै परिपूर्ण नित्यम्
गुरुर्वै व्रजाहं गुरुर्वै भजाहं
गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यम॥15॥
              त्वमेव माता च.................

त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव वंधुश्च सखा त्वमेव् ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्व मम् देव देव॥16॥

#व्यक्तिगत अथवा #सामूहिक गुरुपूजन , गुरु साधना के अवसर पर इस #स्तोत्र का पाठ #गुरुदेव का यथोचित्त विधि से #पूजन करने के उपरान्त करें, मध्य में अथवा प्रारम्भ में नहीं- ऐसा #सिद्वाश्रम गुरु - पूजन क्रम में उल्लिखित है।
              

Friday, 10 November 2023

रूप चतुर्दशी नरक चतुर्दशी में निहित अद्भुत तथ्य

रूप चतुर्दशी नरक चतुर्दशी में निहित अद्भुत तथ्य 
रूप चतुर्दशी नरक चतुर्दशी में निहित तथ्य -
मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी थी। अतः भगवान के वामन अवतार की भी पूजा की जाती है।
 इसी दिन अंजनि पुत्र बजरंग बली श्री हनुमान जी का भी जन्म हुआ था। शास्त्रानुसार वैसे तो हनुमान जयंती चैत्र मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है लेकिन उत्तर भारत के कई भागों में हनुमान जी का जन्म कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात को हनुमान जी की जयंती के रूप में मनाने की परंपरा है।इसी कारण रात को हनुमान जी का पूजन एवं श्री सुंदर कांड का पाठ भी किया जाता है।
 लोग दीपक जला कर छोटी दीवाली के रूप में यह पर्व मनाते हैं। चतुर्दशी की रात को तेल अथवा तिल के तेल के 14 दीपक अवश्य जलाएं, इससे समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में नरकासुर नाम के राक्षस ने अपनी शक्तियों से देवताओं और ऋषि-मुनियों के साथ 16 हजार एक सौ सुंदर राजकुमारियों को भी बंधक बना लिया था। इसके बाद नरकासुर के अत्याचारों से त्रस्त देवता और साधु-संत भगवान श्री कृष्ण की शरण में गए। नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था, इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया और उसकी कैद से 16 हजार एक सौ कन्याओं को स्वतंत्र कराया। 
 समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए श्री कृष्ण ने इन सभी कन्याओं से विवाह कर लिया। 
नरकासुर से मुक्ति पाने की खुशी में देवगण व पृथ्वीवासी बहुत आनंदित हुए। माना जाता है कि तभी से इस पर्व को मनाए जाने की परंपरा शुरू हुई। 
इस दिन मृत्यु के देवता यमराज, मां काली और श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है.
 इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करके यम तर्पण निम्न मंत्र बोलते हुए करें --
1) यमाय नमः (2) धर्मराजाय नमः (3) मृत्यवे नमः (4) अनन्ताय नमः (5) वैवस्वताय नमः (6) कालाय नमः (7) सर्वभूतक्षयाम नमः (8) औदुम्बराय नमः (9) दघ्नाय नमः (10) नीलाय नमः (11) परमेष्ठिने नमः (12) वृकोदराय नमः (13) चित्राय नमः (14) चित्रगुप्ताय नमः। 
और शाम के समय यम दीप दान करें।
नरक चतुर्दशी को दीपक जलाने से यमराज प्रसन्न होते हैं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है. अकाल मृत्यु से मुक्ति और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए नरक चतुर्दशी की पूजा की जाती है.
इस दिन सुबह भगवान कृष्ण की पूजा और शाम को यमराज के लिए दीपक जलाने से तमाम तरह की परेशानियों और पापों से छुटकारा मिल जाता है।
 ये त्योहार लक्ष्मी जी की बड़ी बहन दरिद्रा से भी जुड़ा हुआ है।
दिवाली से पहले रूप चौदस के दिन यम के लिए दीपक जलाते हैं। साथ ही घर के बाहर कूड़े-कचरे के पास भी दीपक लगाया जाता है। 
 कूड़ा, कर्कट, गंदगी आदि दरिद्रा की निशानी हैं। तभी घर के बाहर कूड़ा फेंकने के स्थान पर दीपक लगाया जाता है। इससे दरिद्रा सम्मानपूर्वक घर से चली जाती है।
परंपरा के अनुसार रूप चौदस की रात घर का सबसे बुजुर्ग पूरे घर में एक दीया जलाकर घुमाता है और फिर उसे घर से बाहर कहीं दूर जाकर रख देता है। इस दीये को यम दीया कहा जाता है। 
 घर के बाकी सदस्य घर में ही रहते हैं।
ऐसा माना जाता है कि इस दीये को पूरे घर में घुमाकर बाहर ले जाने से सभी बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं। 
 

Thursday, 9 November 2023

धन्वंतरि_साधना

#धन्वंतरि_साधना!
धनतेरस से दीपावली के 5 दिवसीय त्‍यौहार का आरम्भ होता है।  
भगवान धन्वंतरि श्रीहरि विष्णु के अवतारों में से 12वें अवतार माने गए हैं. 
पौराणिक कथा के अनुसार कार्तिक मास की त्रयोदशी के ही दिन  समुद्रमंथन के समय चौदह प्रमुख रत्न निकले थे जिनमें चौदहवें रत्न के रूप में स्वयं भगवान धन्वन्तरि प्रकट हुए जिनके हाथ में अमृतलश था. चार भुजाधारी भगवान धन्वंतरि के एक हाथ में आयुर्वेद ग्रंथ, दूसरे में औषधि कलश, तीसरे में जड़ी बूटी और चौथे में शंख विद्यमान है.

समुद्र के मंथन से उत्पन्न विष का महारूद्र भगवान शंकर ने विषपान किया, धन्वन्तरि ने अमृत औषधि से उनको स्वस्थ किया।
धनतेरस पर कैसे करें भगवान धन्वंतरि की पूजा (Dhanvantari Puja Vidhi)

धनतेरस पर प्रदोष काल में पूजा का विधान है. इस दिन न सिर्फ धन बल्कि परिवार और अपने आरोग्य रूपी धन की कामना के लिए भगवान धन्वंतरि का पूजन करना चाहिए. अच्छा स्वास्थ ही मनुष्य की सबसे बड़ी पूंजी है. धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की पूजा से स्वास्थ्य लाभ मिलता है.

उत्तर-पूर्व दिशा में पूजा की चौकी लगाकर उसपे श्रीहरि विष्णु की मूर्ति या फिर धन्वंतरि देव की चित्र स्थापित करें.
यदि मूर्ति पूजन कर रहे हैं तो भगवान धन्वंतरि का स्मरण कर अभिषेक करें. षोडशोपचार विधि से पूजन करें.।
तत्पश्चात 
धन्‍वंतरि स्‍तोत्र का पाठ सुनें, सम्भव है तो स्वयं करें।
धन्वंतरि स्तोत्र -
ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम.
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम.
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय 
सर्व रोगनिवारणाय त्रिलोकपथाय 
त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धन्वं‍तरि स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः.॥

इनका प्रिय धातु पीतल माना जाता है। इसीलिये धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परम्परा भी है।इस दिन सोने चांदी के साथ ही नई वस्‍तुओं को खरीदना सबसे शुभ माना जाता है। 
कहते हैं इस दिन जो भी वस्‍तु खरीदी जाती है उसमें अनंत वृद्धि होती है। इस दिन भगवान कुबेर और मां लक्ष्‍मी की विधि विधान से पूजा की जाती है। 

श्री धन्वन्तरि  भगवान विष्णु के अवतार हैं जिन्होंने आयुर्वेद प्रवर्तन किया। इनका पृथ्वी लोक में अवतरण समुद्र मन्थन के समय हुआ था। शरद पूर्णिमा को चन्द्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वन्तरि[4], चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती महालक्ष्मी जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था। इसीलिये दीपावली के दो दिन पूर्व धनतेरस को भगवान धन्वन्तरि का अवतरण धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन इन्होंने आयुर्वेद का भी प्रादुर्भाव किया था।[5]

इसके साथ ही कुछ विशेष मंत्रों का जप भी करना चाहिए। आइए जानते हैं ये मंत्र…

भगवान श्रीधन्वंतरि गायत्री मंत्र —
1..ॐ वासुदेवाय विद्‍महे वैधराजाय धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||

2..ॐ तत्पुरुषाय विद्‍महे अमृत कलश 
हस्ताय धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात्।

 (आरोग्य प्राप्ति) 
आरोग्यप्राप्ति करने के लिए भगवान श्री धन्वंतरि जी का मंत्र – 
ॐ धन्वंतरये नमः॥
ध्यान -
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय धन्वन्तरये अमृत कलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय त्रिलोकनाथाय श्रीमहाविष्णवे नम:। 
   परम भगवान को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धन्वंतरि कहते हैं, जो अमृत कलश लिए हैं, सर्व भयनाशक हैं, सर्व रोग नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरि को सादर नमन है।

भगवान श्री धन्वंतरि मंत्र रोग बीमारी को दूर करने का लिए  —
“ॐ रं रूद्र रोगनाशाय धन्वन्तर्ये फट्।।”
हाथ में अक्षत लेकर कम से कम 5 माला का जप करें।


ॐ धनवांतराय नमः

ॐ धनकुबेराय नमः, ऊं वित्तेश्वराय नमः

ॐ श्रीं श्रिये नमः

ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः

उत्तम स्वास्थ्य और रोगों के नाश की प्रार्थना कर 
'ॐ नमो भगवते धन्वंतराय विष्णुरूपाय नमो नमः॥ का 108 बार जाप करें. 


यमराज को समर्पित दीपक : इस दिन असामयिक मृत्यु से बचने के लिए यमराज के लिए घर के बाहर दीपक जलाया जाता है जिसे यम दीपम के नाम से जाना जाता है और इस धार्मिक संस्कार को त्रयोदशी तिथि के दिन किया जाता है।

कुबेर के मंत्र

ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये

धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः॥
ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी 
मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥

#नवरात्रि (गुप्त/प्रकट) #विशिष्ट मंत्र प्रयोग #दुर्गा #सप्तशती # पाठ #विधि #सावधानियां

जय जय जय महिषासुर मर्दिनी नवरात्रि के अवसर पर भगवती मां जगदम्बा संसार की अधिष्ठात्री देवी है. जिसके पूजन-मनन से जीवन की समस्त कामनाओं की पूर...