Sunday, 9 July 2023

#ब्रह्म - #शक्ति #स्तोत्र है _ विरह, विरोध और वेदना को मिटाने वाला

अपने #इष्ट-देवता या #भगवती #गौरी का #षोडषोपचार या #पञ्चोपचार आदि विविध उपचारों से पूजन करके ब्रह शक्ति स्तोत्र का पाठ करें। 
यह स्तोत्र देवों के द्वारा ब्रह्मा जी की की गई वंदना है, ऐसा वर्णन स्कंद पुराण में प्राप्त होता है।

ब्रह्मशक्ति स्तोत्र का पाठ किसे करना है:-
जिन व्यक्तियों ने किसी न किसी कारण से अपने प्रिय को खो दिया है और उसने विवाहेतर संबंध बना लिया है, उन्हें नियमित रूप से ब्रह्मशक्ति स्तोत्र का पाठ करना चाहिए
अभीष्ट-प्राप्ति के लिये एकाग्रता के साथ कातरता और समर्पण आवश्यक है।
#पारिवारिक #कलह, #रोग या #अकालमृत्यु आदि की सम्भावना होने पर इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिये।
  प्रणय सम्बन्धों में बाधाएँ या #पति-पत्नी के बीच सामन्जस्य का अभाव होने पर  इसका पाठ अभीष्ट फलदायक होगा।


        ।।श्री शिव उवाच।।  
ब्राह्मि ब्रह्मस्वरूपे त्वं, मां प्रसीद सनातनि। 
परमात्म स्वरूपे च, परमानन्द रूपिणि।। 

ॐ प्रकृत्यै नमो भद्रे, मां प्रसीद भवार्णवे। 
सर्वमंगलरूपे च, प्रसीद सर्वमंगले।। 

विजये शिवदे देवि मां प्रसीद जय-प्रदे। 
वेदवेदांग रूपे च वेदमातःप्रसीद मे।। 

शोकघ्ने ज्ञानरूपे च, प्रसीद भक्त वत्सले। 
सर्वसम्पत्प्रदे माये प्रसीद जगदम्बिके।। 

लक्ष्मीर्नारायण-क्रोडे, स्रष्टुर्वक्षसि भारती। 
मम क्रोडे महामाया, विष्णुमाये प्रसीद मे।। 

काल रूपे कार्य रूपे,प्रसीद दीनवत्सले। 
कृष्णस्य राधिके भद्रे प्रसीद कृष्ण पूजिते।। 

समस्त कामिनीरूपे, कलांशेन प्रसीद मे। 
सर्वसम्पत्स्वरूपे त्वं, प्रसीद सम्पदां प्रदे।। 

यशस्विभिः पूजिते त्वं, प्रसीद यशसां निधेः। 
चराचरस्वरूपे च, प्रसीद मम मा चिरम्।। 

मम योगप्रदे देवि प्रसीद सिद्ध योगिनि। 
सर्वसिद्धिस्वरूपे च, प्रसीद सिद्धिदायिनि।। 

अधुना रक्ष मामीशे, प्रदग्धं विरहाग्निना। 
स्वात्म दर्शनपुण्येन क्रीणीहि परमेश्वरि।।

 ।।फल-श्रुति।।

 एतत् पठेच्छृणुयाच्चन, वियोग-ज्वरो भवेत्। न भवेत् कामिनी भेदस्तस्य जन्मनि जन्मनि।। 

इस स्तोत्र का पाठ करने अथवा सुनने वाले को वियोग-पीड़ा नहीं होती और जन्म जन्मान्तर तक कामिनी-भेद नहीं होता।

ब्रह्मशक्ति स्तोत्र के लाभ:-
पारिवारिक कलह, बीमारी या अकाल मृत्यु आदि के लिए इसका पाठ करना चाहिए। रोमांस संबंधों में रुकावटें आने पर भी इसका पाठ लाभदायक रहेगा।
आज हमारे समाज में 100 में से 40 जोड़े ऐसे हैं जो अपने पारिवारिक जीवन के कारण किसी न किसी तरह से वैचारिक मतभेद या किसी तीसरे पक्ष से मतभेद रखते हैं। 
अनेक विषमताओं का शिकार हो रहा है, जिससे हर पल घुटन और अनिश्चितता के कारण अपना शारीरिक और मानसिक संतुलन खोता जा रहा है। और नतीजा यह है कि इन सभी कारणों से पारिवारिक सामाजिक और आर्थिक स्तर गिरता जा रहा है, हालांकि कुछ समय बाद लोगों को एहसास होता है कि उन्होंने गलत कदम उठाया है, लेकिन जब तक बात समझ में आती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
यह एक ऐसी गलती है जिसे नष्ट नहीं किया जा सकता। 
इस स्तोत्र को पढ़ने या सुनने से #प्रेम #वियोग का कष्ट नहीं होता और पत्नी का वियोग नहीं होता। 
छोटे-मोटे वैचारिक मतभेदों को अपने रिश्ते पर इतना हावी न होने दें कि वे आपके रिश्ते को ही खा जाएं और एक बात हमेशा ध्यान में रखें कि अवैध संबंधों की उम्र और विश्वसनीयता बहुत कम होती है चाहे वह महिला हो या पुरुष। 
आज अपने #पार्टनर को भूल कर किसी और की ओर आकर्षित हो, तो इसकी क्या गारंटी है कि कल किसी और से दूर नहीं भागेगा। 
इस प्रकार की परेशानी और उलझन में - यदि आप धार्मिक प्रवृत्ति के हैं, यदि आप ईश्वर पर भरोसा करते हैं तो - वैदिक पद्धति के ब्रह्मशक्ति स्तोत्र का पाठ करें, जिससे आपको राहत मिलेगी।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏

ब्रह्मशक्ति स्तोत्र/ब्रह्मशक्ति स्तोत्र
ब्राह्मी ब्रह्म-स्वरूपे त्वं, मां प्रसीद सनातनीपरमात्म-स्वरूपे च, परमानंद-रूपिणी।।

ॐ प्रकृत्यै नमो भद्रे, मां प्रसीद भवनवे। सर्व मंगल रूपे च, प्रसीद सर्व मंगले।।

विजये शिवदे देवी मां प्रसीद जय-प्रदे। वेद-वेदांग-रूपे च, वेद-मातः प्रसीद मे।।

शोकघ्ने ज्ञान-रूपे च, प्रसीद भक्त वत्सले। सर्व-सम्पत्-प्रदे माये, प्रसीद जगदम्बिके।।

लक्ष्मीनारायण-क्रोडे, स्त्रीस्तुर्वक्षसि भारती। मम क्रोधे महा-माया, विष्णु-माये प्रसीद मे।।

काल-रूपे कार्य-रूपे, प्रसीद दीन-वत्सले। कृष्णस्य राधाके भदेर, प्रसीद कृष्ण पूजिते।।

सर्वकामिनीरूपे, कलांशेन प्रसीद मे। सर्व-सम्पत्-स्वरूपे त्वं, प्रसीद सम्पदां प्रदे।।

यशस्विभिः पूजिते त्वं, प्रसीद यशसं निधेः। चराचर-स्वरूपे च, प्रसीद मम मा चिरम्।।

मम योग-प्रदे देवी ! प्रसीद सिद्ध-योगिनी। सर्वसिद्धिस्वरूपे च, प्रसीद सिद्धिदायिनी।।

अधुना रक्ष मामिषे, प्रदग्घं विरहाग्निना। स्वात्म-दर्शन-पुण्येन, क्रणीहि भगवानि।।

।।फल-श्रुति।।
।।एतत् पथेच्छृणुयाच्च्न, वियोग-ज्वरो भवेत्।। न भवेत् कामिनीभेदस्तस्य जन्मनि जन्मनि।।

इस स्तोत्र का पाठ करने या सुनने वाले को वियोग-पीड़ा नहीं होता और जन्म-जन्मान्तर तक कामिनी-भेद नहीं होता।

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