Friday, 27 January 2023

॥ #नवग्रह #स्तोत्र ॥

अथ #नवग्रह #स्तोत्र। श्री गणेशाय नमः।


जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महदद्युतिम्।
तमोरिंसर्वपापघ्नं प्रणतोSस्मि दिवाकरम्॥१॥

दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम्।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणम्॥२॥

धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम्॥३॥

प्रियंगुकलिकाश्यामं रुपेणाप्रतिमं बुधम्।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम्॥४॥

देवानांच ऋषीनांच गुरूं कांचन सन्निभम्।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्॥५॥

हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरूम्।
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम्॥६॥

नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥७॥

अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनम्।
सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्॥८॥

पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रह मस्तकम्।
रौद्रंरौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्॥९॥

इति श्रीव्यासमुखोग्दीतम् यः पठेत् सुसमाहितः।
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्न शांतिर्भविष्यति॥१०॥

नरनारी नृपाणांच भवेत् दुःस्वप्ननाशनम्।
ऐश्वर्यमतुलं तेषां आरोग्यं पुष्टिवर्धनम्॥११॥

ग्रहनक्षत्रजाः पीडास्तस्कराग्निसमुभ्दवाः।
ता सर्वाःप्रशमं यान्ति व्यासोब्रुते न संशयः॥१२॥

॥इति श्री वेदव्यास विरचितम् आदित्यादी नवग्रह स्तोत्रं संपूर्णं॥

Saturday, 21 January 2023

महर्षि काकभुशुण्डि,,,

महर्षि काकभुशुण्डि,,,

जितना अज्ञानमूलक व्यवहार हमने अपने पूर्वजों,अपने इतिहास के साथ किया है उतना किसी सभ्यता या राष्ट्र ने नहीं किया,,वे अपने कंकड़ को भी पहाड़ बताते हैं और हम अपने ब्रह्मवेत्ता ऋषियों को भी #काग,,कौवा बताने कहने से नहीं चूकते,,#एथेंस की कुल आबादी ही उस समय पांच हज़ार थी जब सुकरात चौराहों पर खड़ा होकर कुछ बोलता था,, पांच दस सुनने वाले रहते थे,, फिर भी उन्होंने सुकरात को दर्शनशास्त्र का पिता बना दिया,,

हमने क्या किया??,,झूठी गप्पों कथाओं के माध्यम से ब्रह्मवेत्ता,महाबलशाली,आदित्य ब्रह्मचारी,,संगीत शास्त्र के तीन महान आचार्यों में से एक,,श्रीराम भक्त #हनुमान को बंदर बना लिया,, महर्षि काकभुषुण्डि को कौवा मान लिया,,,

महर्षि #श्रृंगी कहते हैं कि वे अंगिरस गोत्रीय महर्षि #रेणुकेतु प्रवाहण के पुत्र थे,, बचपन में जब वे महर्षि श्रुति के आश्रम में पढ़ते थे तब उनका नाम था ब्रह्मचारी #सोजनी,, लेकिन कागा नाम पड़ने के पीछे एक मधुर कथा है,, जब वे बालक थे तब अपने भोजन के पात्र के अलावा माता और पिताजी के पात्रों को भी #झूठा कर देते थे चखकर,, हंसी हंसी में माता ने कहा जैसे कागा पेट भरा होने पर भी कई जगह चोंच मारता है ऐसे ही यह नटखट बालक है,,तो वे बालक को कागा बुलाने लगी,,

जब वे सोजनी ब्रह्मचारी #श्रुति ऋषि के आश्रम में वेदाध्ययन कर रहे थे तब किसी भी बात का जवाब एकदम सटीक और तुरन्त देते थे,, आजकल जिसको #प्रत्युतपन्न मति हाज़िर जवाबी या top आई क्यू बोलते हैं,,
सामान्य #संस्कृत का परिचय रहने वाला भी जानता है कि संस्कृत में #बंदूक को भुशुण्डि बोलते हैं,, तो उनके जो सहपाठी ब्रह्मचारी थे महर्षि लोमश वे उन्हें उनकी प्रत्युतपन्न मेधा के कारण गोली की तरह जवाब देने वाला यानी कहते हैं न कि एकदम फायर करता है,, भुशुण्डि कहने लगे,,

महर्षि काकभुशुण्डि #आयुर्वेदाचार्य तो थे ही,,वर्णन आता है कि जब वे प्रभु श्रीराम से मिले उस समय उनकी उम्र 684 वर्ष थी,, महाराजा राम ने जब कहा कि हे महर्षि आप तो आयुर्वेद के बारे में सबकुछ जानते हैं,, इतना आपने कैसे जाना??,,तब महर्षि #काकभुशुण्डि ने कहा कि हे राम,, मैंने 400 वर्ष आयुर्वेद के अध्धयन और औषधियों की खोज में लगाए हैं,, फिर भी मैं बहुत कम ही जानता हूँ,,
आयुर्वेद पर एक महान ग्रन्थ--#चन्द्रयाणकृत पोथी की रचना की उन ऋषि ने,,

बाद में विज्ञान में रुचि और शोध बुद्धि के चलते ब्रह्मांडो और गलेक्सीयों की गणना और खोज पर एक #सविता नामक महान ग्रन्थ रचा,,
आजकल #हॉलीवुड फिल्मों में देखते हैं कि एक ऐसी मिसाइल छोड़ते हैं जो टारगेट के पीछे लगी रहती है,, टारगेट कितना भी मुड़ तुड़ जाए एकदम दिशा बदलकर उल्टा घूम जाए वह पीछे ही लगी रहती है,, महर्षि श्रृंगी कहते हैं कि महर्षि काकभुशुण्डि ने उस समय एक ऐसे ही यंत्र का आविष्कार किया था जिसका नाम--#कागाम #चथवेतु यंत्र था,, जिसको बनाने की प्रेरणा उन्हें कौवे को ऐसे उल जलूल उड़ते देखकर मिली,,,

ऋषियों का एक मत यह भी है कि उस कागाम चथवेतु यंत्र के कारण ही इनका नाम काग पड़ा,, #भुशुण्डि तीव्र मेधा के चलते,,

पता नहीं कैसी #पामर बुद्धि होती है जो अपने पूर्वजों को कौवे बंदर बनाने पर तुल जाती है,, और मजा ये कि हम मान भी बैठते हैं,, वामपंथियों के लिखे कूड़े कर्कट से बाहर निकलकर अपने पराक्रमी पूर्वजों,#ब्रह्मवेत्ता ऋषियों को जानें,, उनका व्यापक अध्धयन करें,

साभार : स्वामी सूर्यदेव जी

Sunday, 15 January 2023

#मकर संक्रांति— गंगा अवतरण की पौराणिक कथा

मकर संक्रांति की पौराणिक कथा के अनुसार— 

राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान किया और अपने अश्व को विश्व –विजय के लिये छोड़ दिया. इंद्र देव ने उस अश्व को छल से कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया . 
जब कपिल मुनि के आश्रम में राजासगर के साठ हजार पुत्र युद्ध के लिये पहुंचे और उनको अपशब्द कहा ,तब कपिल मुनि ने श्राप देकर उन सबको भस्म कर दिया. 
राजकुमार अंशुमान, राजा सगर के पोते, ने कपिल मुनि के आश्रम में जाकर उनकी विनती की और अपने बंधुओं के उद्धार का मार्ग पूछा. तब कपिल मुनि ने बाताया कि इनके उद्धार के लिये गंगा जी को धरती पर लाना होगा.

राजकुमार अंशुमान ने प्रतिज्ञा की कि उनके वंश का कोई भी राजा चैन से नहीं रहेगा जब तक गंगा जी को धरती पर ना ले आये. उनकी प्रतिज्ञा सुनकर कपिल मुनि ने उन्हें आशीर्वाद दिया. राजकुमार अंशुमान ने कठिन तप किया और उसी में अपनी जान दे दी. 
भागीरथ राजा दिलीप के पुत्र और अंशुमान के पौत्र थे.
राजा भागीरथ ने कठिन तप करके गंगा जी को प्रसन्न किया और उन्हें धरती पर लाने के लिये मना लिया. 
उसके पश्चात, भागीरथ ने भगवान शिव की तपस्या की जिससे कि महादेव गंगा जी को अपने जटा में रख कर, वहां से धीरे-धीरे गंगा के जल को धरती पर प्रवाहित करें. भागीरथ के कठिन तपस्या से महादेव प्रसन्न हुए और उन्हें इच्छित वर दिया. इसके बाद गंगा जी महादेव के जटा में समाहित होकर धरती के लिये प्रवाहित हुई. 
भागीरथ ने गंगा जी को रास्ता दिखाते हुए कपिल मुनि के आश्रम गये, जहां पर उनके पूर्वजों की राख उद्धार के लिये प्रतीक्षारत थी.
गंगा जी के पावन जल से भागीरथ के पूर्वजों का उद्धार हुआ. उसके बाद गंगा जी सागर में मिल गयी. जिस दिन गंगा जी कपिल मुनि के आश्रम पहुंची उस दिन मकर संक्रांति का दिन था. इस कारण से मकर संक्रांति के दिन श्रद्धालु गंगासागर में स्नान और कपिल मुनि की आश्रम के दर्शन के लिये एकत्रित होते हैं.
मकर संक्रांति के दिन हीं भगवान विष्णु ने असुरों का अंत किया था एवं उन असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था. इस तरह से यह मकर संक्रांति का दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन कहा गया है.

इसी दिन भगवान सूर्यदेव धनु राशि से निकल कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं. मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं. इसलिये यह कहा जाता है कि मकर में प्रवेश कर सूर्यदेव अपने पुत्र से मिलने जाते हैं.

Friday, 13 January 2023

मकर संक्रांति का महत्व


हिंदू धर्म ने माह को दो भागों में बाँटा है- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष।
इसी तरह वर्ष को भी दो भागों में बाँट रखा है। पहला
उत्तरायण और दूसरा दक्षिणायन। उक्त दो अयन को मिलाकर एक वर्ष होता है।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करने
की दिशा बदलते हुए थोड़ा उत्तर की ओर ढलता जाता है,
इसलिए इस काल को उत्तरायण कहते हैं।
सूर्य पर आधारित हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का बहुत महत्व माना गया है। वेद
और पुराणों में भी इस दिन का विशेष उल्लेख मिलता है। होली,
दीपावली, दुर्गोत्सव, शिवरात्रि और अन्य कई त्योहार जहाँ
विशेष कथा पर आधारित हैं, वहीं मकर संक्रांति खगोलीय
घटना है, जिससे जड़ और चेतन की दशा और दिशा तय होती
है। मकर संक्रांति का महत्व हिंदू धर्मावलंबियों के लिए वैसा ही है
जैसे वृक्षों में पीपल, हाथियों में ऐरावत और पहाड़ों में हिमालय।
सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश को उत्तरायण माना जाता है। इस राशि
परिवर्तन के समय को ही मकर संक्रांति कहते हैं। यही
एकमात्र पर्व है जिसे समूचे भारत में मनाया जाता है, चाहे इसका नाम प्रत्येक
प्रांत में अलग-अलग हो और इसे मनाने के तरीके भी भिन्न
हों, किंतु यह बहुत ही महत्व का पर्व है।
इसी दिन से हमारी धरती एक नए वर्ष में और
सूर्य एक नई गति में प्रवेश करता है। वैसे वैज्ञानिक कहते हैं कि 21 मार्च को
धरती सूर्य का एक चक्कर पूर्ण कर लेती है तो इस मान
ने नववर्ष तभी मनाया जाना चाहिए। इसी 21 मार्च के
आसपास ही विक्रम संवत का नववर्ष शुरू होता है और
गुड़ी पड़वा मनाया जाता है, किंतु 14 जनवरी ऐसा दिन है,
जबकि धरती पर अच्छे दिन की शुरुआत होती
है। ऐसा इसलिए कि सूर्य दक्षिण के बजाय अब उत्तर को गमन करने लग जाता
है। जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करता है तब तक
उसकी किरणों का असर खराब माना गया है, लेकिन जब वह पूर्व से
उत्तर की ओर गमन करते लगता है तब उसकी किरणें
सेहत और शांति को बढ़ाती हैं।
मकर संक्रांति के दिन ही
पवित्र गंगा नदी का
धरती पर अवतरण हुआ
था। महाभारत में पितामह
भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण
होने पर ही स्वेच्छा से
शरीर का परित्याग किया था,
कारण कि उत्तरायण में देह छोड़ने
वाली आत्माएँ या तो कुछ काल
के लिए देवलोक में चली
जाती हैं या पुनर्जन्म के
चक्र से उन्हें छुटकारा मिल जाता है। दक्षिणायन में देह छोड़ने पर बहुत काल
तक आत्मा को अंधकार का सामना करना पड़ सकता है। सब कुछ प्रकृति के नियम
के तहत है, इसलिए सभी कुछ प्रकृति से बद्ध है। पौधा प्रकाश में
अच्छे से खिलता है, अंधकार में सिकुड़ भी सकता है।
इसीलिए मृत्यु हो तो प्रकाश में हो ताकि साफ-साफ दिखाई दे कि
हमारी गति और स्थिति क्या है। क्या हम इसमें सुधार कर सकते हैं?
क्या हमारे लिए उपयुक्त चयन का मौका है?
स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते
हुए गीता में कहा है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब
सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती
है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म
नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त हैं। इसके विपरीत
सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है
और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है
-साभार अनिल कुमार भटनागर 🙏
https://youtu.be/lmwmoKjLeEA

Thursday, 12 January 2023

विश्व की सबसे ज्यादा समृद्ध भाषा कौनसी है , क्या आप जानते हैं ??

विश्व की सबसे ज्यादा समृद्ध भाषा कौनसी है , क्या आप जानते हैं ??

अंग्रेजी में 'THE QUICK BROWN FOX JUMPS OVER A LAZY DOG' एक प्रसिद्ध वाक्य है। जिसमें अंग्रेजी वर्णमाला के सभी अक्षर समाहित कर लिए गए हैं। मज़ेदार बात यह है की अंग्रेज़ी वर्णमाला में कुल 26 अक्षर ही उप्लब्ध हैं जबकि इस वाक्य में 33 अक्षरों का प्रयोग किया गया है। जिसमें चार बार O और A, E, U तथा R अक्षर का प्रयोग क्रमशः 2 बार किया गया है। इसके अलावा इस वाक्य में अक्षरों का क्रम भी सही नहीं है। जहां वाक्य T से शुरु होता है वहीं G से खत्म हो रहा है।

अब ज़रा संस्कृत के इस श्लोक को पढिये।-
👇
क:खगीघाङ्चिच्छौजाझाञ्ज्ञोSटौठीडढण:।
तथोदधीन पफर्बाभीर्मयोSरिल्वाशिषां सह।।

अर्थात: पक्षियों का प्रेम, शुद्ध बुद्धि का, दूसरे का बल अपहरण करने में पारंगत, शत्रु-संहारकों में अग्रणी, मन से निश्चल तथा निडर और महासागर का सर्जन करनार कौन ?? राजा मय ! जिसको शत्रुओं के भी आशीर्वाद मिले हैं।

श्लोक को ध्यान से पढ़ने पर आप पाते हैं की संस्कृत वर्णमाला के सभी 33 व्यंजन इस श्लोक में दिखाई दे रहे हैं वो भी क्रमानुसार। यह खूबसूरती केवल और केवल संस्कृत जैसी समृद्ध भाषा में ही देखने को मिल सकती है!

पूरे विश्व में केवल एक संस्कृत ही ऐसी भाषा है जिसमें केवल *एक अक्षर* से ही पूरा वाक्य लिखा जा सकता है।

किरातार्जुनीयम् काव्य संग्रह में केवल “न” व्यंजन से अद्भुत श्लोक बनाया है और गजब का कौशल्य प्रयोग करके भारवि नामक महाकवि ने थोडे में बहुत कहा है-👇

न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना ननु।
नुन्नोऽनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्ननुत्॥

अर्थात: जो मनुष्य युद्ध में अपने से दुर्बल मनुष्य के हाथों घायल हुआ है वह सच्चा मनुष्य नहीं है। ऐसे ही अपने से दुर्बल को घायल करता है वो भी मनुष्य नहीं है। घायल मनुष्य का स्वामी यदि घायल न हुआ हो तो ऐसे मनुष्य को घायल नहीं कहते और घायल मनुष्य को घायल करें वो भी मनुष्य नहीं है। वंदेसंस्कृतम्!

एक और उदहारण है-👇

दाददो दुद्द्दुद्दादि दादादो दुददीददोः
दुद्दादं दददे दुद्दे ददादददोऽददः

अर्थात: दान देने वाले, खलों को उपताप देने वाले, शुद्धि देने वाले, दुष्ट्मर्दक भुजाओं वाले, दानी तथा अदानी दोनों को दान देने वाले, राक्षसों का खंडन करने वाले ने, शत्रु के विरुद्ध शस्त्र को उठाया।

है ना खूबसूरत।।

-साभार सीमा प्रतीक 

Tuesday, 10 January 2023

श्री लक्ष्मी प्रदाता गणपति स्तोत्रम्

सम्पूर्ण सौख्य प्रदान करनेवाले सच्चिदानन्दस्वरुप विघ्नराज गणेशको नमस्कार है। 
जो दुष्ट-अरिष्टका नाश करनेवाले परात्पर परमात्मा है । 
जो महापराक्रमी, लम्बोदर, सर्पमय यज्ञोपवीतसे सुशोभित, अर्धन्द्रधारी और विघ्न समूहका विनाश करनेवाले हैं, उन गणपतिदेवकी मैं वन्दना करता हूँ। 
ॐ हृॉं हृीं ह्रूँ हृैं हृौं हृः हेरम्बको नमस्कार है । 
भगवन् आप सब सिद्धियोंके दाता हैं, आप हमारे लिये सिद्धि-बुद्धिदायक हों । 
आपको सदा ही मोदक प्रिय हैं । 
आप मनके द्वारा चिन्तित अर्थको देनेवाले हैं । सिन्दूर और लाल वस्त्रसे पूजित होकर आप सदा वर प्रदान करते हैं । 
जो मनुष्य भक्तिभावसे युक्त हो इस गणपति स्तोत्रका पाठ करता है, स्वयं लक्ष्मी उसके देह-गेहको नहीं छोड़ती ।      

गुरु मंत्र का एक माला जप करें तत्पश्चात
ॐ ऐं हुं चतुर्थ स्वाहा!! 1 माला करें। 
अब इस श्रीलक्ष्मीप्रद श्रीगणपति स्तोत्र का अपनी सामर्थ्य के अनुसार 1 से 108 बार तक पाठ करें-
                     ।।स्तोत्र।। 
ॐ नमो विघ्नराजाय सर्वसौख्य प्रदायिने।
दुष्टारिष्टविनाशाय पराय परमात्मने॥१॥

लम्बोदरं महावीर्यं नागयज्ञोपशोभितम् ।
अर्धचन्द्रधरं देवं विघ्नव्यूहविनाशनम्॥२॥  

ॐ हृॉं हृीं ह्रूँ हृैं हृौं हृः हेरम्बाय नमो नमः।
सर्वसिद्धिप्रदोऽसि त्वं सिद्धिबुद्धिप्रदो भव ॥३॥ 

चिन्तितार्थप्रदस्त्वं हि सततं मोदकप्रियः।
सिन्दूरारुणवस्त्रैश्र्च पूजितो वरदायकः ॥४॥

इदं गणपतिस्तोत्रं यः पठेद् भक्तिमान् नरः।
तस्य देहं च गेहं च स्वयं लक्ष्मीर्न मुञ्चति ॥५॥

॥ इति श्रीलक्ष्मीप्रद श्रीगणपति स्तोत्रं संपूर्णम् ॥

https://youtube.com/shorts/Tv3cuEB-v7g?feature=share

#नवरात्रि (गुप्त/प्रकट) #विशिष्ट मंत्र प्रयोग #दुर्गा #सप्तशती # पाठ #विधि #सावधानियां

जय जय जय महिषासुर मर्दिनी नवरात्रि के अवसर पर भगवती मां जगदम्बा संसार की अधिष्ठात्री देवी है. जिसके पूजन-मनन से जीवन की समस्त कामनाओं की पूर...