सम्पूर्ण सौख्य प्रदान करनेवाले सच्चिदानन्दस्वरुप विघ्नराज गणेशको नमस्कार है।
जो दुष्ट-अरिष्टका नाश करनेवाले परात्पर परमात्मा है ।
जो महापराक्रमी, लम्बोदर, सर्पमय यज्ञोपवीतसे सुशोभित, अर्धन्द्रधारी और विघ्न समूहका विनाश करनेवाले हैं, उन गणपतिदेवकी मैं वन्दना करता हूँ।
ॐ हृॉं हृीं ह्रूँ हृैं हृौं हृः हेरम्बको नमस्कार है ।
भगवन् आप सब सिद्धियोंके दाता हैं, आप हमारे लिये सिद्धि-बुद्धिदायक हों ।
आपको सदा ही मोदक प्रिय हैं ।
आप मनके द्वारा चिन्तित अर्थको देनेवाले हैं । सिन्दूर और लाल वस्त्रसे पूजित होकर आप सदा वर प्रदान करते हैं ।
जो मनुष्य भक्तिभावसे युक्त हो इस गणपति स्तोत्रका पाठ करता है, स्वयं लक्ष्मी उसके देह-गेहको नहीं छोड़ती ।
गुरु मंत्र का एक माला जप करें तत्पश्चात
ॐ ऐं हुं चतुर्थ स्वाहा!! 1 माला करें।
अब इस श्रीलक्ष्मीप्रद श्रीगणपति स्तोत्र का अपनी सामर्थ्य के अनुसार 1 से 108 बार तक पाठ करें-
।।स्तोत्र।।
ॐ नमो विघ्नराजाय सर्वसौख्य प्रदायिने।
दुष्टारिष्टविनाशाय पराय परमात्मने॥१॥
लम्बोदरं महावीर्यं नागयज्ञोपशोभितम् ।
अर्धचन्द्रधरं देवं विघ्नव्यूहविनाशनम्॥२॥
ॐ हृॉं हृीं ह्रूँ हृैं हृौं हृः हेरम्बाय नमो नमः।
सर्वसिद्धिप्रदोऽसि त्वं सिद्धिबुद्धिप्रदो भव ॥३॥
चिन्तितार्थप्रदस्त्वं हि सततं मोदकप्रियः।
सिन्दूरारुणवस्त्रैश्र्च पूजितो वरदायकः ॥४॥
इदं गणपतिस्तोत्रं यः पठेद् भक्तिमान् नरः।
तस्य देहं च गेहं च स्वयं लक्ष्मीर्न मुञ्चति ॥५॥
॥ इति श्रीलक्ष्मीप्रद श्रीगणपति स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
https://youtube.com/shorts/Tv3cuEB-v7g?feature=share
No comments:
Post a Comment