Friday, 7 October 2022

शरद पूर्णिमा

शरद पूर्णिमा को वातावरण में प्रक्षेपित होने वाली तरंगों में चैतन्यता आनंद शांति का विशेष भाव रहता है। 

आज का दिन मां लक्ष्‍मी को प्रसन्‍न करने के लिए विशेष है.इस रात चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है।

🌏    वर्ष के बारह महीनों में ये पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, तो धन की देवी श्री लक्ष्मी तथा ऐरावत पर आरुढ इंद्र की पूजा रात्रि के समय की जाती है ।  नैवेद्य के रूप में चढ़ा हुआ नारियल, खीर अपने घर के उपस्थित सभी लोगों को देकर सूर्योदय से पहले ग्रहण किया जाता है। 

🌏    शरद पूर्णिमा का एक नाम *कोजागरी पूर्णिमा* भी है यानी लक्ष्मी जी पूछती हैं- कौन जाग रहा है? जो जागृत उसे ही अमृतप्राशन का लाभ प्राप्त होता है ! कोजागर = को ± ओज ± आगर । इस दिन चंद्र के किरणोंद्वारा सभी को आत्म शक्तिरूपी (ओज) आनंद, आत्मानंद, ब्रह्मानंद पूरीतरह से प्राप्त होता है। 
 

🌎    केवल शरद पूर्णिमा को ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण होता है और पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट भी। चंद्रमा की किरणों से इस पूर्णिमा को अमृत बरसता है।

🌙   लक्ष्मी प्राप्ति के लिए प्रत्येक पूर्णिमा की रात को एक लोटे में जल और उसमें थोड़ा दूध, गंगाजल, 11 चावल के दाने, मिश्री और पुष्प डालकर चंद्र देव का किसीे एक मंत्र:-  
१-ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः। 
२-ॐ सों सोमाय: नमः। 

पढ़ते हुए चंद्र देव को अर्पण करना है!

🌓  लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्य रात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।

🌏    आयुर्वेदाचार्य वर्ष भर इस पूर्णिमा की प्रतीक्षा करते हैं। जीवन दायिनी रोगनाशक जड़ी-बूटियों को वह शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं। अमृत से नहाई इन जड़ी बूटियों से जब दवा बनायी जाती है तो वह रोगी के ऊपर तुंरत असर करती है।श्वास रोग में रोगी को अपामार्ग के चावलों की खीर खिलाने से एवं रात भर जागरण करने से रोगी स्वस्थ हो जाता है। 

🌓   चंद्रमा को वेदं-पुराणों में मन के समान माना गया है- *चंद्रमा मनसो जात:।* वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक बताया गया है। प्राचीन ग्रंथों में चंद्रमा को औषधीश यानी औषधियों का स्वामी कहा गया है। 

🌏   ब्रह्मपुराण के अनुसार- सोम या चंद्रमा से जो सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरता है उसी से औषधियों की उत्पत्ति हुई और जब चंद्र 16 कला संपूर्ण हो तो अनुमान लगाइए उस दिन औषधियों को कितना बल मिलेगा।

🌏   शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है, शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी खीर खाने से पित्त बाहर निकलता है। 

🌓    लेकिन इस खीर को गाय के दूध में एक विशेष विधि से बनाया जाता है। इसमें केशर का प्रयोग नहीं करें इलायची डाल सकते हैं। पूरी रात चांदी के बर्तन में चांद की चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट यह खीर खाने से शरीर निरोगी होता है।

🌙 अश्विनी कुमार देवताओं के वैद्य हैं। जो भी इन्द्रियाँ शिथिल हो गयी हों, उनको पुष्ट करने के लिए चन्द्रमा की चाँदनी में खीर रखना और भगवान को भोग लगाकर अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करना कि ‘हमारी इन्द्रियों का बल-ओज बढ़ायें ।’ फिर वह खीर खा लेना ।

🌙 चन्द्रमा की चाँदनी गर्भवती महिला की नाभि पर पड़े तो गर्भ पुष्ट होता है । शरद पूनम की चाँदनी का अपना महत्त्व है लेकिन बारहों महीने चन्द्रमा की चाँदनी गर्भ को और औषधियों को पुष्ट करती है ।

🌙  इस रात को सब काम छोड़कर 15 मिनट चन्द्रमा को एकटक निहारना। एक आध मिनट आँखें पटपटाना। कम से कम 15 मिनट चन्द्रमा की किरणों का फायदा लेना, ज्यादा करो तो और अच्छा। इससे 32 प्रकार की पित्तसंबंधी बीमारियों में लाभ होगा, शांति होगी।

🌙  फिर छत पर या मैदान में विद्युत का कुचालक आसन बिछाकर लेटे-लेटे भी चंद्रमा को देख सकते हैं।

🌙   श्री लक्ष्मी रूपी इच्छा शक्तिके स्पंदन कार्यरत रहते हैं । इस दिन धनसंचय के संदर्भ में सकाम विचार धारणा पूर्णत्व की ओर ले जाती है । इस धारणा के स्पर्श से स्थूलदेह, साथ ही मनोदेह की शुद्धि  होने के लिए सहायता होती है एवं मन को प्रसन्न धारणा प्राप्तहोती है। इस दिन कार्य को विशेष धन संचयात्मक कार्यकारी बल प्राप्त होता है। 

🌙   इस रात्रि में लक्ष्मी साधना ध्यान भजन, सत्संग कीर्तन, चन्द्रदर्शन आदि शारीरिक व मानसिक आरोग्यता के लिए अत्यन्त लाभदायक हैं। तन मन प्रसन्न बुद्धि में बुद्धिदाता का प्रकाश आता है ।

🌏   शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं। स्वयं सोलह कला संपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है यह पूर्णिमा। इस रात को अपनी राधा रानी और अन्य सखियों के साथ श्रीकृष्ण महारास रचाते हैं। 

🌏   कहते हैं जब वृन्दावन में भगवान कृष्ण महारास रचा रहे थे तो चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना भाव-विभोर हुआ कि उसने अपनी शीतलता के साथ पृथ्वी पर अमृत की वर्षा आरंभ कर दी।

🌏 शरद पूर्णिमा ऐसे महीने में आती है, जब वर्षा ऋतु अंतिम समय पर होती है। शरद ऋतु अपने बाल्यकाल में होती है और हेमंत ऋतु आरंभ हो चुकी होती है और इसी पूर्णिमा से कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाता है।

🌙 पूर्णिमा और अमावस्या को चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है। जब चन्द्रमा इतने बड़े दिगम्बर समुद्र में उथल-पुथल कर विशेष कम्पायमान कर देता है तो हमारे शरीर में जो जलीय अंश है, सप्तधातुएँ हैं, सप्त रंग हैं, उन पर भी चन्द्रमा का प्रभाव पड़ता है । इन दिनों में अगर काम-विकार भोगा तो विकलांग संतान अथवा जानलेवा बीमारी हो जाती है। 

🌏   उडिशा में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। आदिदेव महादेव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म इसी पूर्णिमा को हुआ था। गौरवर्ण, आकर्षक, सुंदर कार्तिकेय की पूजा कुंवारी लड़कियां उनके जैसा पति पाने के लिए करती हैं। 

🌓  गुजरात में शरद पूर्णिमा को लोग रास रचाते हैं और गरबा खेलते हैं। मणिपुर में भी श्रीकृष्ण भक्त रास रचाते हैं। पश्चिम बंगाल और उडिसा में शरद पूर्णिमा की रात को महालक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस पूर्णिमा को जो महालक्ष्मी का पूजन करते हैं और रात भर जागते हैं, उनकी सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।

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