Saturday, 22 October 2022

प्रिय तुम रामचरितमानस पढ़ना।।

प्रिय तुम रामचरितमानस पढ़ना।।.....

जीवन के अनुबंधों की,
तिलांजलि संबंधों की,
टूटे मन के तारो की,
फिर से नई कड़ी गढ़ना,
प्रिय तुम रामचरितमानस पढ़ना।।

बेटी को धर्म सिखाने को,
पत्नी का मर्म निभाने को,
भाई का प्रेम बताने को,
हर चौपाई दोहा सुनना,
प्रिय तुम रामचरितमानस पढ़ना।।

लक्ष्मण से सेवा त्याग सीखना,
श्री भरत से राज विराग सीखना,
प्रभु का सबसे अनुराग सीखना,
फिर माता सीता को गुनना,
प्रिय तुम रामचरितमानस पढ़ना।।

केवट की भक्ति भरी गगरी,
फल मीठे बेर लिए शबरी,
है धन्य अयोध्या की नगरी,
अवसादों में जब भी घिरना,
प्रिय तुम रामचरितमानस पढ़ना।।

न्याय नीति पर राम अड़े,
संग सखा वीर हनुमान खड़े,
पशु-पक्षी तक हैं युद्ध लड़े,
धन्य हुआ उनका तरना,
प्रिय तुम रामचरितमानस पढ़ना।।

जो राम नाम रघुराई  है,
जीवन की मूल दवाई है,
हर महामंत्र चौपाई है,
सियाराम नाम जपते रहना,
प्रिय तुम रामचरितमानस पढ़ना।।

जगती में मूल तत्व क्या है?
राम नाम का महत्व क्या है?
संघर्ष में राम रामत्व क्या है?
संकट में जब तुम फंसना,
प्रिय तुम रामचरितमानस पढ़ना।।

हर समाधान मिल जाता है,
कोई प्रश्न ठहर नहीं  पाता है,
बस राम ही राम सुहाता है
श्री राम है वाणी का गहना,
प्रिय तुम रामचरितमानस पढ़ना।।

         जय सियाराम
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
-साभार

Thursday, 20 October 2022

॥श्रीललितासहस्रनामस्तोत्रम्॥

अस्य श्रीललितासहस्रनामस्तोत्रमाला मन्त्रस्य वशिन्यादि वाग्देवता ऋषयः अनुष्टुप् छन्दः श्रीललितापरमेश्वरी देवता श्रीमद्वाग्भवकूटेति बीजम् मध्यकूटेति शक्तिः शक्तिकूटेति कीलकम् श्रीललिता महात्रिपुरसुन्दरी प्रसाद सिद्धि द्धारा चिन्तित फलावाप्त्यर्थे जपे विनियोगः-
लमित्यादिञ्चपूजां कुर्यात् ।

                     ।। ध्यानम् ।।
सिन्दूरारुणविग्रहां त्रिनयनां माणिक्य मौलिस्फुरत् तारानायकशेखरां स्मितमुखीमापीनवक्षोरुहाम्।
पाणिभ्यामलिपूर्णरत्नचषकं रक्तोफळं बिभ्रतीं सौम्या रत्नघटस्थरक्तचरणां ध्यायेत्पराम्बिकाम्।।

।।श्री ललितासहस्रनामस्तोत्रम्।। 

ॐ श्रीमाता श्रीमहाराज्ञी श्रीमत्सिंहासनेश्वरी 
चिदग्रि–कुण्ड–सम्भूता-देवकार्य -समुद्यता।।

उद्भानु -सहस्राभा -चर्तुबाहू -समन्विता ।
रागस्वरुप–पाशाढ्या- क्रोधाकारांक्कुशोज्ज्वाळा।।

मनोरुपेक्षु -कोदण्डा -पञ्चतन्मात्र -सायका ।
निजारुण -प्रभापूर -मज्जद्वह्याण्ड -मण्डला ।।

चम्पकाशोक–पुन्नाग–सौगन्धिक–लसत्कचा।
कुरुविन्द–मणि-श्रेणी –कनत्कोटीर – मण्डिता।।

अष्टमीचन्द्र – विभ्राज – दलिकस्थल – शोभिता ।
मुखचन्द्र – कलंक्काभ – मृगनाभि – विशेषका ।।

वदनस्मर – माङ्गळ्य – गृहतोरण – चिळ्लिका ।
वक्त्रलक्ष्मी – परिवाह- चलन्मीनाभ – लोचना ।।

नवचम्पक – पुष्पाभ- नासादण्ड – विराजिता ।
ताराकान्ति- तिरस्कारि – नासाभरण-भासुरा ।।

कदम्बमञ्जरी– क्लृप्त-कर्णपूर-मनोहरा।
ताटङ्क – युगली-भूत –तपनोडुप – मण्डला।।

पद्य्मरागशिलादर्श – परिभावि – कपोलभूः ।
नवविद्रुम – बिम्बश्री – न्यक्कारि – रदनच्छदा ।।

शुद्धविद्यांकुराकार – द्विजपंक्ति – द्वयोज्ज्वला ।
कर्पूरवीटिकामोद – समाकर्ष-द्विगन्तरा ।।

निज–सळ्लाप–माधुर्य– विनर्भिर्त्सित–कच्छपी।
मन्दस्मित–प्रभापूर– मज्ज्तकामेश – मानसा।।

अनाकालित – सादृश्य – चुबुकश्री – विराजिता।
कामेश – बद्ध-माङ्ग्ल्य-सूत्र-शोभित – कन्धरा।।

कनकाङ्ग्द – केयूर – कमनीय – भुजानविता।
रत्नग्रैवेय–चिन्ताक –लोल- मुक्ता- फलान्विता।।

कामेश्वर – प्रेमरत्न-मणि – प्रतिपण – स्तनी ।
न्याभ्यालवाल– रोमालि– लता-फल-कुचद्वयी।।

लक्ष्यरोम - लताधारता – समुन्नेय – मध्यमा ।।
स्तनभार – दलन्मध्य – पट्टबन्ध – वलित्रया ।।

अरुणारुणकौसुम्भ – वस्त्र–भास्वत्– कटीतटी।
रत्न–किङ्किणिका–रम्य–रशना–दाम–भूषिता।।

कामेश–ज्ञात–सौभाग्य–मार्दुवोरु– द्वयान्विता।
माण्यिकामुकुटाकार–जानुद्वय– विराजिता।।

इन्द्रगोप – परिक्षिप्तस्मरणतूनाभ – जंघिका ।
गूढगुळ्फा – कूर्मपृष्ठ- ययिष्णु – प्रपदान्विता।।

नख – दीधित – संछन्न – नमज्जन – तमोगुणा।
पदद्वय – प्रभाजाल– पराकृत – सरोरुहा ।।

सिञ्जान – मणिमञ्जीर मण्डित – श्री-पदाम्बुजा।
मराली-मन्दगमना – महालावण्य – शेवधिः।।

सर्वारुणाऽनवद्यांगी – सर्वाभरण – भूषिता ।
शिव कामेश्वराङ्कस्था–शिवा स्वाधीन–वल्लभा।।

सुमेरु – मध्य – शृङ्गत्था – श्रीमन्नगर- नायिका।
चिन्तामणि गृहान्तस्था पञ्च-ब्रह्मासन – स्थिता।।

महापद्य्माटवी – संस्था कदम्बवन – वासिनी ।
सुधासागर– मध्यस्था कामाक्षी कामदायिनी।।

देवर्षि- गण- संघात – स्तूयमानात्म – वैभवा।
भण्डासुर–वधोद्युक्त–शक्तिसेना– समान्विता।।

सम्पत्करी–समारुढ–सिन्धुर–वज्र– सेविता।
अश्र्वारुढाधिष्ठिताश्र–कोटि–कोटिभि –रावृता।।

चक्रराज – रथारुढ – सर्वायुध – परिष्कृता।
गेयचक्र– रथारुढ–मंत्रिणी– परिसेविता।।

किरिचक्र – रथारुढ – दण्डनाथा – पुरस्कृता ।
ज्वालामालिनिकाक्षिप्त–मह्निप्राकार– मध्यगा।।

भण्डसैन्य– वधोयुक्त–शक्ति–विक्रम – हर्षिता।
नित्या–पराक्रमाटोप–निरीक्षण- समुत्सुका।।

भण्डपुत्र–नन्दित वधोद्युक्त–बबाल– विक्रम–नन्दिता।
मन्त्रिण्यम्बा–विरचित –विषङ्ग–वध – तोषिता।।

विशुक्र – प्राणहरण – वाराही – वीर्य- नन्दिता।
कामेश्वर–मुखालोक–कल्पित– श्रीगणेश्वरा ।।

महागणेश – निभिन्न – विघ्नयन्त्र – प्रहर्षिता ।
भण्डासुरेन्द्र –निर्मुक्त –शस्त्र–प्रयस्र– वर्षिणी

कराङ्गुलि – नखोत्पन्न – नारायण-दशाकृतिः ।
महा – पाशुपतास्राग्रि-निर्दग्धासुर – सैनिका।।

कामेश्वरास्र – निर्दग्ध – सभण्डासुर – शून्यका ।
ब्रह्मोपेन्द्र – महेन्द्रादि – देव – संस्तुत – वैभवा ।।

हर- नेत्राग्रि–संदग्ध–काम– सञ्जीवनौषधिः।
श्रीमद्वाग्भव–कूटैक–स्वरुप–मुख– पंक्कजा।।

कण्ठाधः – कटि – पर्यन्त – मध्यकूट – स्वरुपिणी।
शक्तिकूटैकतापन्न–कट्यधोभाग– धारिणी।।

मूलमन्त्रात्मिका मूलकूटत्रय–कलेवरा ।
कुलामृतैक – रसिका – कुलसंकेत – पालिनी ।।

कुलाङ्गना कुलान्तस्था कौलिनी कुलयोगिनी।
अकुला समयान्तरस्था समयाचार – तत्परा।।

मूलाधारैक – निलया ब्रह्माग्रन्थि – विभेदिनी ।
मणिपूरान्तरुदिता विष्णुग्रन्थि विभेदनी।।

आज्ञाचक्रकान्तरालस्था रुद्रग्रन्थि– विभेदनी।
सहस्राम्बुजारुढा सुधासाराभिवर्षिणी।।

तडिलता समरुचिऋ षट्चक्रोपरि – संस्थिता ।
महाशक्तिः कुण्डलिनी बिसतन्तु – तनीयसी।।

भवानी भावनागम्या भवारण्य – कुठारिका ।
भद्रप्रिया भद्रमूर्ति–भक्त-सौभाग्य दायिनी।।

भक्तिप्रिया भक्तिगम्या भक्तिवश्या भयापहा ।
शाम्भवी शारदाराध्या शर्वाणी शर्मदायिनी।।

शाक्करी श्रीकरी साध्वी शरचन्द्र– निभानना।
शातोदरी शान्तिमती निराधारा निरञ्जना।।

निर्लेपा निर्मला नित्या निराकारा निराकुला ।
निर्गुणा निष्कला शान्ता निष्कामा निरुपप्लवा ।।

नित्यमुक्ता निर्विकारा निष्प्रपञ्जा निराश्रया ।
नित्यशुद्धा नित्यबुद्धा निरवद्या निरन्तरा।।

निष्कारणा निष्कलङ्का निरुपाधि – र्निरीश्वरा ।
नीरागा रागथनी निर्मदा मदनाशिनी ।।

निश्रिन्ता निरहङ्कारा निर्मोहा मोहनाशिनी।
निमर्मा ममताहन्त्री निष्पापा पापनाशिनी।।

निष्क्रोधा क्रोधशमनी निर्लोभा लोभ नाषिनी।
निःसंशया संशयघ्नी निर्भवा भवनाषिनी।।

निर्विकल्पा निराबाधा निर्भेदा भेदनाशिनी ।
निर्नाशा मृत्युमथनी निष्क्रिया निष्परिग्रहा।।

निस्तुला नीलचिकुरा निरपाया निरत्यया। 
दुर्लभा दुर्गमा दुर्गा दुःखहन्त्री सुखप्रदा।।

दुष्टदूरा दुराचारशमनी दोष-वर्जिता ।
सर्वज्ञा सान्द्रकरुणा समानाधिक– वर्जिता।।

सर्वशक्तिमयी सर्वमाङ्ग्ला सद्गति – प्रदा ।
सर्वेश्वरी सर्वमयी सर्वमन्त्र सर्वरुपिणी।।

सर्व – यन्त्रात्मिका सर्व – तन्त्ररुपा मनोन्मनी।
माहेश्वरी महादेवी महालक्ष्मी–मृडप्रिया ।।

महारुपा महापूज्या महा – पातक-नाशिनी ।
महामाया महासत्वा महाशक्ति – र्मकारतिः ।।

महाभोगा महैश्वर्या महावीर्या महाबला ।
महाबुद्धि–महासिद्धि– र्महायोगेश्वरेश्वरी ।।

महातन्त्रा – महामन्त्रा महायन्त्रा महासना।
महायाग–महाक्रमाराध्या–महाभैरव– पूजिता।

महेश्वर – महाकल्प –महाताण्डव – साक्षिणी।
महाकामेश–महिषी महारात्रिपुरसुन्दरी ।।

चतुष्टषष्ट्युपचाराढ्या चतुष्टषष्ट कलामयी। 
महाचतुःषष्टकोटि –योगिनी – गणसेवीता ।।

मनुविद्या चन्द्रविद्या चन्द्रमण्डल मध्यगा। 
चारुरुपा चारुहासा चारुचन्द्र – कलाधरा।।

चराचर – जगन्नाथा चक्ररात – निकेतना ।
पार्वती पद्य्मनयना पद्य्मराग – समप्रभा।।

पञ्चप्रेतासनासीना पञ्चब्रब्मस्वरुपिणी ।
चिरमयी परमानन्दा विज्ञानज्ञन स्वरुपिणी।।

ध्यान – ध्यातृ – ध्येयरुपा धर्माधर्म विवर्जिता ।
विश्वरुपा जागरणी स्वपन्ती तैजसात्मिका।।

सुप्ता प्राज्ञात्मिका तुर्या सर्वावस्था – विवर्जिता ।
सृष्टिकर्त्री ब्रह्मरुपा गोप्त्री गोविन्द रुपिणी।।

संहारिणी रुद्ररुपा तिरोधानकरीश्वरी ।
सदाशिवाऽनुग्रहदा पञ्चकृत्यपरायणा।।

भानुमण्डल – मध्यस्था भैरवी भगमालिनी।
पद्य्मासना भगवती पद्य्मनाभ – सहोदरी।।

उन्मेष – निमिषोत्पन्न – विपन्न – भुवनावलिः ।
सहस्रशीर्षवदना सहस्राक्षी सहस्रपात् ।।

आब्रह्मकीटजननी वर्णाश्रम विधायनी ।
निजाज्ञारुप –निगमा पुण्यापुण्य – फलप्रदा।।

श्रुति सिमन्त सिन्दुरी – कृत –पादाब्ज धूलिका ।
सकलागम सन्दोह – सूक्ति – सम्पुट – मौक्तिका ।।

पुरुषार्थ प्रदा पूर्णा भोगिनी भुवनेश्वरी ।
अम्बिकाऽनादि– निधना हरिब्रह्मेनदु सेविता।।

नारायणी नादरुपा नामरुप – विवर्जिता। 
ह्रीं कारी ह्रीमती ह्रया हेयोपादेय वर्जिता ।।

राजराजार्चिता राज्ञी रम्या राजीव लोचना ।
रञ्जनी रमणी रस्या रणत्किङ्किणी – मेखला ।।

रमा राकेन्दु – वदना रतिरुपा रतिप्रिया। 
रक्षाकरी राक्षसघ्नी रामा रमणलम्पटा।।

काम्या कामकलारुपा कदम्ब-कुसुम-प्रिया।
कल्याणी जगती – कन्दा करुणा रस सागरा ।।

कलावती कलालापा कान्ता कादम्बरी – प्रिया ।
वरदा वामनयना वारुणी–मद– विह्वला।।

विश्वाशिका वेदवेद्या विन्ध्याचल – निवासनी ।
विधात्री वेदजननी विष्णुमाया विलासनी ।।

क्षेत्रस्वरुपा क्षेत्रेशी क्षेत्र – क्षेत्र्यज्ञ – पालिनी ।
क्षयवृद्धि – विर्निमुक्ता क्षेत्रपाल – समर्जिता ।।

विजया विमला वन्ध्या वन्दारु –जन-वत्सला ।
वाग्वादिनी वामकेशी वह्मिमण्डल वासिनी ।।

भक्तिमय कल्पलतिका पशुपाश – विमोचनी ।
संह्रताशेष – पाषण्डा सदाचार – प्रवर्तिका ।।

तापत्रयाग्रि – सन्तप्त – समाह्वदन – चन्द्रिका ।
तरुणी तापसा राध्या तनुमध्या तमोऽपहा ।।

चिति – स्ततपद – लक्ष्यार्थी चिदेकरस – रुपिणी ।
स्वात्मानन्द लयाभूत – ब्रह्माद्यानन्द – सन्तति ।।

परा प्रत्यक चित्तरुपा पश्यन्ती परदेवता ।
मध्यमा वैखरी रुपा भक्तृमानस – हंसिका ।।

कामेश्वर – प्राणनाडी कृतज्ञा कामपूजिता ।
श्रृंगार रस- सम्पूर्णा जया जालन्धर स्थिता ।।

ओड्यपाण-पीठ – विलया बिन्दु – माण्डलवासिनी ।
रहायोग – क्रमाराध्या रहस्तपर्ण – तर्पिता ।।

सद्यः प्रसादिनी विश्वसाक्षिणी साक्षिवर्जिता ।
षडङ्गदेवता – युक्ता षाड्गुण्य – परिपूरिता ।।

नित्या – क्लिन्ना निरुपमा निर्वाण सुख दायिनी ।
नित्याषोडशिका – रुपा श्रीकण्ठार्ध – शरीरिणी ।।

प्रभावती प्रभारुपा प्रसिद्धा परमेश्वरी ।
मूलप्रकृति – रव्यक्ता व्यक्ताव्यक्त – स्वरुपिणी ।।

व्यापिनी विविधाकारा विद्याऽविद्या – स्वरुपिणी ।
महाकामेश नयन-कुमुदाह्वाद – कौमुदी ।।

'भक्त –हार्द – तमो – भेद – मद्भानु संततिः ।
शिवदूती शिवराध्या शिवमूर्तिः शिवक्करि ।।

शिवप्रिया शिवपरा शिष्टेष्टा शिष्टपूजिता। 
अप्रमेया स्वप्रकाशा मनो-वाचामगोचरा ।।

च्छिछक्ति – श्चेतना – रुपा जडशक्ति – र्जडात्मिका ।
गायत्री – व्याह्रती संध्या द्विजबृन्द – निषेविता ।।

तत्वासना तत्तवमयी पञ्चकोशान्तर – स्थिता ।
निःसीम – महिमा नित्य – यौवना मदशालिनी ।।

मद्घूर्णित रक्ताक्षी मदपाट्ल-गण्डभूः ।
चन्दन – द्रव – दिग्धाङ्की चाम्पेय –कुसुम – प्रिया ।।

कुशला कोमलाकारा कुरुकुल्ला कुलेश्वरी ।
कुलकुण्डलया कौलमार्ग – तत्पर – सेविता ।।

कुमार – गणनाशाम्बा तुष्टिः पुष्टि-र्मति-धृतिः ।
शान्तिः स्वस्तिमयी कान्ति-र्नन्दिनी विघ्ननाशिनी।।

तेजोवती त्रिनयना लोलाक्षी – कामरुपिणी ।
मालिनी हंसिनी माता मलयाचल – वासिनी ।।

सुमुखी नलिनी सुभ्रूः शोभना सुरनायिका ।
कालकण्ठी कान्तिमयी क्षोभिणी सूक्ष्मरुपिणी ।।

वज्रेश्वरी वामदेवी वयोवस्था – विवर्जिता ।
सिद्धेश्वरी सिद्धविद्या सिद्धमाता यशस्वनी ।।

विशुद्धि – चक्र – निलया - ऽऽरक्तवर्णा त्रिलोचना ।
खट्वाङ्गदि – प्रहरणा वदवैक – समन्विता ।।

पायसान्न प्रिया त्वकस्था पशुलोक भयंक्करी ।
अमृतादि – महाशक्ति –संवृता डाकिनीश्वरी ।।

अनाहाताब्ज – निलया श्यामाभा वदनद्वया ।
दंष्ट्रोज्ज्वलाक्षमालादि – धरा रुधिर – संस्थिता ।।

कालरात्र्यादि – शक्त्यौघ – वृता स्न्गिधौदन – प्रिया ।
महावीरेन्द्र वरदा राकिण्यम्बा – स्वरुपिणी ।।

मणिपूराब्ज निलया वदहत्रय – संयुता। 
वज्राधिकायुधोपेता डामर्यादिभि – रावृता।।

रक्तिवर्णा मांसनिष्ठा गुडान्न – प्रीत – मानसा ।
समस्तभक्त – सुखदा लाकिन्यम्बा – स्वरुपिणी ।।

स्वाधिष्ठानाम्बुजकता चर्तुवक्त्र – मनोहरा ।
शूलाद्यायुद्ध – सम्पन्ना पीतवर्णाऽति गर्विता ।।

मेदो निष्ठा मधुप्रीता बन्धिन्यादि – समन्विता ।
दध्यन्नासक्त – ह्रदया काकिनी – रुप – धारिणी ।।

मूलाधाराम्बुजारुढा पञ्चवक्त्रास्थि – संस्थिता ।
अङ्कुशादि –प्रहरणा वरदादि – निषेविता ।।

मुद्गौदनासक्त – चित्ता साकिन्यम्बा – स्वरुपिणी ।
आज्ञा – चक्राब्ज – निलया शुक्लवर्णा षडानना ।।

मज्जा – संस्था हंसवती – मुख्य – शक्ति – समान्विता ।
हरिद्रान्नैक – रसिका हाकिनी – रुप – धारिणी ।।

सहस्रदल – पद्य्मस्था सर्व – वर्णोप – शोभिता ।
सर्वायुध – धरा शुक्ल – संस्थिता सर्वतोमुखी ।।

सर्वौदन- प्रीतचित्ता याकिन्यम्बा – स्वरुपिणी ।
स्वाहा स्वधाऽमति – र्मेधा श्रुति- स्मृति- रन्नुमत्ता ।।

पुण्यकीर्तिः पुण्यलभ्या पुण्यश्रवण – कीर्तिना ।
पुलोमजार्चिता बन्धमोचनी बन्धुरालका ।।

विमर्शरुपिणी विद्या वियदादि – जगत्प्रसूः ।
सर्वव्याधि – प्रशमनी सर्वमृत्यु – निवारणी ।।

अग्रगण्या - ऽचिन्त्यरुपा कलिकल्मष – नाशिनी ।
कात्यायनी कालहन्त्री कमलाक्ष – निषेविता ।।

ताम्बूल–पूरित–मुखी दाडिमी–कुसुम – प्रभा।
मृगाक्षी मोहिनी मुख्या मृडानी मित्ररुपिणी।।

नित्य – तृप्ता भक्तिनिधि – र्नियन्त्री निखिलेश्वरी ।
मैत्र्यादि – वासनालभ्या महा-प्रलय साक्षिणी ।।

पराशक्तिः परानिष्ठा प्रज्ञानघन – रुपिणी ।
माध्वीपानालसा मत्ता मातृका – वर्ण-रुपिणी ।।

महाकैलास-निलया – मृणाल-मृदु-दोर्लता ।
महनीया दयामूर्ति – र्महासाम्राज्य-शालिनी ।।

आत्मविद्या महाविद्या श्रीविद्या कामसेविता।
श्रीषोडाशाक्षरीविद्या त्रिकुटा कामकोटिका।।

कटाक्ष – किंक्करी-भूत – कमला – कोटि–सेविता।
शिरःस्थिता चन्द्रनिभा भालस्थेन्द्रु – धनुः प्रभा।।

ह्दयास्था रविप्रख्या त्रिकोणान्तर – दीपिका ।
दाक्षायणी दैन्त्यहन्त्री दक्षयज्ञविनाशनी।।

दरान्दोलित दीर्घाक्षी दरहासोज्ज्वलमुखी ।
गुरु-मूर्ति-गुण-निधि-र्गोमाता गुहजन्म – भूः ।।

देवेशी दण्डनीतिस्था दहराकाश – रुपिणी ।
प्रतिपन्मुख्य – राकान्त –तिथि-मण्डल – पूजिता ।।

कलात्मिका कलानाथा काव्यालाप – विनोदनी ।
सचामर – रमा – वाणी – सव्य – दक्षिण – सेविता ।।

आदिशक्ति - रमेयाऽऽत्मा परमा पावनाकृतिः ।
अनेक –कोटि-ब्रह्माण्ड-जननी दिव्य-विग्रहा ।।

क्लीं कारी केवला गुह्या कैवल्य-पद-दायिनी ।
त्रिपुरा त्रिजगद्वन्द्या त्रिमूर्ति- स्रिदशेश्वरी।।

त्र्यक्षरी दिव्य–गन्धाढ्या सिन्दुर-तिलकाञ्जिता।
उमा शैलेन्द्रतनया गौरी गन्धर्व–सेविता।।

विश्वगर्भा स्वर्णगर्भा - ऽवरदा वागधीश्वरी ।
ध्यानगम्या - ऽपरिच्छेद्या ज्ञानदा ज्ञानविग्रहा ।।

सर्व-वेदान्त-सम्यवेद्या सत्यानन्द स्वरुपिणी ।
लोपामुदार्चिता लीलाक्लृप्त – ब्रह्माण्ड-मण्डला ।।

अदृश्या दृश्यरहिता विज्ञात्री वैद्य-वर्जिता। 
योगिनी योगदा योग्या योगानन्दा युगन्धरा ।।

इच्छाशक्ति-ज्ञानशक्ति-क्रियाशक्ति-स्वरुपिणी ।
सर्वाधारा सुप्रतिष्ठा सदसद्रूप धारिणी ।।

अष्टमूर्ति – रजाजैत्री लोकयात्रा विधायिनी ।
एकाकिनी भूमरुपा निर्द्वैता – द्वैतवर्जिता ।।

अन्नदा वसुदा वृद्वा ब्रह्मात्मैक्य – स्वरुपिणी ।
बृहती ब्राह्मणी ब्राह्मी ब्रह्मानन्दा बलिप्रिया ।।

भाषारुपा बृहत्सेना भावाभाव – विवर्जिता ।
सुखाराध्या शुभकरी शोभना सुलभागतिः।।

राजराजेश्वरी राज्यदायिनी राज्यवल्लभा। 
राजत्कृपा राजपीठ – निवेशित-निजाश्रिता ।।

राज्यलक्ष्मीः कोशनाथा चतुपङ्ग – बलेश्वरी ।
साम्राज्य – दायिनी सत्यसन्धा सागर मेखला।।

दीक्षिता दैत्यशमनी सर्वलोकवशंक्करी। 
सर्वार्थदात्री सावित्री सच्चिदानन्द- रुपिणी।।

देशकालापरिच्छिन्ना सर्वगा सर्वमोहिनी। 
सरस्वती शास्रमयी गुहाम्बा गुह्यारुपिणी।।

सर्वोपाधि – विर्निमुक्ता सदाशिव – पतिव्रता ।
सम्प्रदायेश्वरी साध्वी गुरुमण्डल – रुपिणी ।।

कुलोत्तीर्णा भगाराध्या माया मधुमती मही ।
गणाम्बा गुह्यकाराध्या कोमलांगी गुरुप्रिया ।।

स्वतन्त्रा सर्वतन्त्रेशी दक्षिणामूर्ति – रुपिणी ।
सनकादि – समाराध्या शिवज्ञान – प्रदायिनी ।।

चित्कलाऽऽनन्द – कलिका प्रेमरुपा प्रियंक्करी ।
नामपारायण – प्रीता नन्दिविद्या नटेश्वरी ।।

मिथ्या – जगदधिष्ठाना मुक्तिदा मुक्तिरुपिणी ।
लास्यप्रिया लयकरी लज्जा रम्भादि वन्दिता ।।

भवदाव – सुधावृष्टिः पापारण्य – दवानला ।
दौर्भाग्य–तूलवातुला जराध्वान्तर विप्रभा ।।

भाग्याब्धि–चन्द्रिका भक्त-चित्त- केकि-घनाघना।
रोगपर्वत–दम्भोलि-र्मृत्युदारुकुठारिका।।

महेश्वरी महाकाली महाग्रासा महाशना ।
अपर्णा चण्डिका चण्डमुण्डासुर – निषूदनी ।।

क्षराक्षरात्मिका सर्वलोकेशी विश्वधारिणी ।
त्रिवर्गदात्री सुभगा त्र्यम्बका त्रिगुणात्मिका ।।

स्वर्गापवर्गदा शुद्धा जपापुष्प – निभाकृतिः ।
ओजोवती द्युतिधरा यज्ञरुपा प्रियव्रता।।

दुराराध्या दुराधर्षा पाटली – कुसुम-प्रिया ।
महती मेरुनिलया मन्दार-कुसुम-प्रिया।।

वीराराध्या विराड्रुपा विरजा विश्वतोमुखी। 
प्रत्यग् – रुपा पराकाशा प्राणदा प्राण रुपिणी।।

मार्ताण्ड – भैरवाराध्या मन्त्रिणी-न्यस्त- राज्यधूः।
त्रिपुरेशी जयत्सेना निस्रैगुण्या परापरा।।

सत्यज्ञानान्द – रुपा सामरस्य – परायणा ।
कपर्दिनी कलामाला कामधु-क्काम-रुपिणी।।

कलानिधिः काव्यकला रसज्ञा रसशेवधिः ।
पुष्टा पुरातना पूज्या पुष्करा पुष्करेक्षणा ।।

परञ्ज्योतिः परन्धाम परमाणुः परात्परा। 
पाशहत्सा पाशहन्त्री परमन्त्र – विभेदनी ।।

मूर्ताऽमूर्ता नित्यतृप्ता मुनिमानस – हंसिका ।
सत्यव्रता सत्यरुपा सर्वान्तर्यामिनी सती ।।

ब्रह्माणी ब्रह्मजननी बहुरुपा बुधार्चिता ।
प्रसवित्री प्रचण्डाऽऽज्ञा प्रतिष्ठा प्रकटाकृतिः ।।

प्राणेश्वरी प्राणदात्री पञ्चाशत्पीठ – रुपिणी ।
विश्वृंखला विवित्तस्था वीरमाता वियत्सप्रसुः ।।

मुकुन्दा मक्तिनिलया मूलविग्रह-रुपिणी। 
भावज्ञा भवरोगघ्नी भवचक्र-प्रवर्तिनी ।।

छन्दः सारा शास्रसारा मन्त्रसारा तलोदरी ।
उदारकीर्ति – रुद्दामवैभवा वर्णरुपिणी।।

जन्ममृत्यु–जरातप्त-जन- विश्रांति- दायिनी।
सर्वोप्निष-दुद्घुष्टा शान्त्यतीत – कलात्मिका।।

गम्भीरा गगनान्तस्था गर्विता गानलोलुपा।
कल्पना–रहिता काष्ठाऽकान्ता कान्तार्ध – विग्रहा।।

कार्यकारण – निर्मुक्ता कामकेलि – तरङ्गिता ।
कनत्कनक –ताटंक्का लीला-विग्रह -धारिणी।।

अजा क्षयविर्निर्मुक्ता मुग्धा क्षिप्र-प्रसादिनी ।
अन्तर्मुख – समाराध्या बहिर्मुख – सुदुर्लभा ।।

त्रयी त्रिवर्ग- निलया त्रिस्था त्रिपुर – मालिनी ।
निरामया निरालम्बा स्वात्मारामा सुधासृतिः ।।

संसारपङ्क – निमर्ग्र – समुद्धरण – पण्डिता ।
यज्ञप्रिया यज्ञकर्त्री यजमान – स्वरुपिणी ।।

धर्माधारा धनाध्यक्षा धनधान्य – विवार्धिनी ।
विप्रप्रिया विप्ररुपा विश्वभ्रमण – कारिणी ।।

विश्वग्रासा विद्रुमाभा वैष्णवी विष्णुरुपिणी ।
अयोनि –र्योनि-निलया कूटस्था कुलरुपिणी ।।

वीरगोष्ठी – प्रिया वीरा नैष्कर्म्या नादरुपिणी ।
विज्ञानकलना कल्या विदग्धा बैन्दवासना ।।

तत्तवाधिका तत्वमयी त्तत्वमर्थ – स्वरुपिणी ।
सामगन – प्रिया सोम्या सदाशिव – कुटुम्बिनी ।।

सव्यापसव्य– मार्गस्था सर्वापद्धि निवारिणी ।
स्वस्था स्वभावमधुरा धीरा धीरसमर्चिता ।।

चैतन्यार्ध्य–समाराध्या चैतन्य-कुसुम -प्रिया ।
सदोदिता सदातुष्टा तरुणादित्य – पाटला।।

दक्षिणा–दक्षिणाराध्या दरस्मेर- मुखाम्बुजा।
कौलिनी - केवऽनर्घ्य – केवल्य पद- दायिनी।।

स्तोत्र-प्रिया स्तुतिमती श्रुति-संस्तुत- वैभवा ।
मन्स्विनी मानवती महेशी मंङ्ग्लाकृतिः।।

विश्वमाता जगद्धात्री विशालाक्षी विरागिणी ।
प्रगल्भा परमोदारा परामोदा मनोमयी।।

व्योमकेशी विमानस्था वज्रिणी वामकेश्वरी ।
पञ्चयज्ञ प्रिया पञ्चप्रेत- मञ्चाधिशायिनी ।।

पञ्चमी पञ्चभूतेशी पञ्चसंख्यो पचारिणी ।
शाश्वती शाश्वतैश्वर्या शर्मदा शम्भुमोहिनी ।।

धरा धरसुता धन्या धर्मिणी धर्मवर्धिनी ।
लोकातीता गुणातीता सर्वातीता शमात्मिका ।।

बन्धुक-कुसुम-प्रख्या बाला लीला-विनोदिनी ।
सुमङ्गली सुखकरी सवेषाढ्या सुवासिनी ।।

सुवासिन्यर्चन-प्रीताऽऽशोभना शुद्ध-मानसा।।
बिन्दु-तर्पण-सन्तुष्टा पूर्वजा त्रिपुराम्बिका।।

दशमुद्रा-समाराध्या त्रिपुराश्रीवशंक्करी। 
ज्ञानमुद्रा ज्ञानगम्या ज्ञान-ज्ञेय-स्वरुपिणी।।

योनिमुद्रा त्रिखण्डेशी त्रिगुणाम्बा त्रिकोणगा ।
अनघाऽद्भुत- चारिता वाञ्छितार्थ – प्रदायिनी ।।

अभ्यासातिशय – ज्ञाता षडध्वातीत – रुपिणी ।
अव्याज-करुणा-मूर्ति-रज्ञान-ध्वान्त-दीपिका ।।

आबाल गोप-विदिता सर्वानुल्लंघ्य शासना।
श्रीचक्रराज निलया श्रीमत् त्रिपुरसुन्दरी ।।

श्री शिवा शिव शक्त्यैक्य-रुपिणी ललिताम्बिका ।
एवं श्रीललितादेव्या नाम्नां साहस्रकं जगुः ।।

।।इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे उत्तरखण्डे श्रीहयग्रीव अगस्त्य संवादे श्रीललिता सहस्रनाम स्तोत्रं सम्पूर्णम्।।
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Thursday, 13 October 2022

करवाचौथ पर कथा

करवा चौथ की कहानी है कि, देवी करवा अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के पास रहती थीं। एक दिन करवा के पति नदी में स्नान करने गए तो एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया और नदी में खिंचने लगा। मृत्यु करीब देखकर करवा के पति करवा को पुकारने लगे। करवा दौड़कर नदी के पास पहुंचीं और पति को मृत्यु के मुंह में ले जाते मगर को देखा। करवा ने तुरंत एक कच्चा धागा लेकर मगरमच्छ को एक पेड़ से बांध दिया। करवा के सतीत्व के कारण मगरमच्छा कच्चे धागे में ऐसा बंधा की टस से मस नहीं हो पा रहा था। करवा के पति और मगरमच्छ दोनों के प्राण संकट में फंसे थे।
करवा ने यमराज को पुकारा और अपने पति को जीवनदान देने और मगरमच्छ को मृत्युदंड देने के लिए कहा। यमराज ने कहा मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि अभी मगरमच्छ की आयु शेष है और तुम्हारे पति की आयु पूरी हो चुकी है। क्रोधित होकर करवा ने यमराज से कहा, अगर आपने ऐसा नहीं किया तो मैं आपको शाप दे दूंगी। सती के शाप से भयभीत होकर यमराज ने तुरंत मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और करवा के पति को जीवनदान दिया। इसलिए करवाचौथ के व्रत में सुहागन स्त्रियां करवा माता से प्रार्थना करती हैं कि हे करवा माता जैसे आपने अपने पति को मृत्यु के मुंह से वापस निकाल लिया वैसे ही मेरे सुहाग की भी रक्षा करना।
जय हो 🙏

Friday, 7 October 2022

शरद पूर्णिमा

शरद पूर्णिमा को वातावरण में प्रक्षेपित होने वाली तरंगों में चैतन्यता आनंद शांति का विशेष भाव रहता है। 

आज का दिन मां लक्ष्‍मी को प्रसन्‍न करने के लिए विशेष है.इस रात चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है।

🌏    वर्ष के बारह महीनों में ये पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, तो धन की देवी श्री लक्ष्मी तथा ऐरावत पर आरुढ इंद्र की पूजा रात्रि के समय की जाती है ।  नैवेद्य के रूप में चढ़ा हुआ नारियल, खीर अपने घर के उपस्थित सभी लोगों को देकर सूर्योदय से पहले ग्रहण किया जाता है। 

🌏    शरद पूर्णिमा का एक नाम *कोजागरी पूर्णिमा* भी है यानी लक्ष्मी जी पूछती हैं- कौन जाग रहा है? जो जागृत उसे ही अमृतप्राशन का लाभ प्राप्त होता है ! कोजागर = को ± ओज ± आगर । इस दिन चंद्र के किरणोंद्वारा सभी को आत्म शक्तिरूपी (ओज) आनंद, आत्मानंद, ब्रह्मानंद पूरीतरह से प्राप्त होता है। 
 

🌎    केवल शरद पूर्णिमा को ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण होता है और पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट भी। चंद्रमा की किरणों से इस पूर्णिमा को अमृत बरसता है।

🌙   लक्ष्मी प्राप्ति के लिए प्रत्येक पूर्णिमा की रात को एक लोटे में जल और उसमें थोड़ा दूध, गंगाजल, 11 चावल के दाने, मिश्री और पुष्प डालकर चंद्र देव का किसीे एक मंत्र:-  
१-ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः। 
२-ॐ सों सोमाय: नमः। 

पढ़ते हुए चंद्र देव को अर्पण करना है!

🌓  लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्य रात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।

🌏    आयुर्वेदाचार्य वर्ष भर इस पूर्णिमा की प्रतीक्षा करते हैं। जीवन दायिनी रोगनाशक जड़ी-बूटियों को वह शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं। अमृत से नहाई इन जड़ी बूटियों से जब दवा बनायी जाती है तो वह रोगी के ऊपर तुंरत असर करती है।श्वास रोग में रोगी को अपामार्ग के चावलों की खीर खिलाने से एवं रात भर जागरण करने से रोगी स्वस्थ हो जाता है। 

🌓   चंद्रमा को वेदं-पुराणों में मन के समान माना गया है- *चंद्रमा मनसो जात:।* वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक बताया गया है। प्राचीन ग्रंथों में चंद्रमा को औषधीश यानी औषधियों का स्वामी कहा गया है। 

🌏   ब्रह्मपुराण के अनुसार- सोम या चंद्रमा से जो सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरता है उसी से औषधियों की उत्पत्ति हुई और जब चंद्र 16 कला संपूर्ण हो तो अनुमान लगाइए उस दिन औषधियों को कितना बल मिलेगा।

🌏   शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है, शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी खीर खाने से पित्त बाहर निकलता है। 

🌓    लेकिन इस खीर को गाय के दूध में एक विशेष विधि से बनाया जाता है। इसमें केशर का प्रयोग नहीं करें इलायची डाल सकते हैं। पूरी रात चांदी के बर्तन में चांद की चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट यह खीर खाने से शरीर निरोगी होता है।

🌙 अश्विनी कुमार देवताओं के वैद्य हैं। जो भी इन्द्रियाँ शिथिल हो गयी हों, उनको पुष्ट करने के लिए चन्द्रमा की चाँदनी में खीर रखना और भगवान को भोग लगाकर अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करना कि ‘हमारी इन्द्रियों का बल-ओज बढ़ायें ।’ फिर वह खीर खा लेना ।

🌙 चन्द्रमा की चाँदनी गर्भवती महिला की नाभि पर पड़े तो गर्भ पुष्ट होता है । शरद पूनम की चाँदनी का अपना महत्त्व है लेकिन बारहों महीने चन्द्रमा की चाँदनी गर्भ को और औषधियों को पुष्ट करती है ।

🌙  इस रात को सब काम छोड़कर 15 मिनट चन्द्रमा को एकटक निहारना। एक आध मिनट आँखें पटपटाना। कम से कम 15 मिनट चन्द्रमा की किरणों का फायदा लेना, ज्यादा करो तो और अच्छा। इससे 32 प्रकार की पित्तसंबंधी बीमारियों में लाभ होगा, शांति होगी।

🌙  फिर छत पर या मैदान में विद्युत का कुचालक आसन बिछाकर लेटे-लेटे भी चंद्रमा को देख सकते हैं।

🌙   श्री लक्ष्मी रूपी इच्छा शक्तिके स्पंदन कार्यरत रहते हैं । इस दिन धनसंचय के संदर्भ में सकाम विचार धारणा पूर्णत्व की ओर ले जाती है । इस धारणा के स्पर्श से स्थूलदेह, साथ ही मनोदेह की शुद्धि  होने के लिए सहायता होती है एवं मन को प्रसन्न धारणा प्राप्तहोती है। इस दिन कार्य को विशेष धन संचयात्मक कार्यकारी बल प्राप्त होता है। 

🌙   इस रात्रि में लक्ष्मी साधना ध्यान भजन, सत्संग कीर्तन, चन्द्रदर्शन आदि शारीरिक व मानसिक आरोग्यता के लिए अत्यन्त लाभदायक हैं। तन मन प्रसन्न बुद्धि में बुद्धिदाता का प्रकाश आता है ।

🌏   शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं। स्वयं सोलह कला संपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है यह पूर्णिमा। इस रात को अपनी राधा रानी और अन्य सखियों के साथ श्रीकृष्ण महारास रचाते हैं। 

🌏   कहते हैं जब वृन्दावन में भगवान कृष्ण महारास रचा रहे थे तो चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना भाव-विभोर हुआ कि उसने अपनी शीतलता के साथ पृथ्वी पर अमृत की वर्षा आरंभ कर दी।

🌏 शरद पूर्णिमा ऐसे महीने में आती है, जब वर्षा ऋतु अंतिम समय पर होती है। शरद ऋतु अपने बाल्यकाल में होती है और हेमंत ऋतु आरंभ हो चुकी होती है और इसी पूर्णिमा से कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाता है।

🌙 पूर्णिमा और अमावस्या को चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है। जब चन्द्रमा इतने बड़े दिगम्बर समुद्र में उथल-पुथल कर विशेष कम्पायमान कर देता है तो हमारे शरीर में जो जलीय अंश है, सप्तधातुएँ हैं, सप्त रंग हैं, उन पर भी चन्द्रमा का प्रभाव पड़ता है । इन दिनों में अगर काम-विकार भोगा तो विकलांग संतान अथवा जानलेवा बीमारी हो जाती है। 

🌏   उडिशा में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। आदिदेव महादेव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म इसी पूर्णिमा को हुआ था। गौरवर्ण, आकर्षक, सुंदर कार्तिकेय की पूजा कुंवारी लड़कियां उनके जैसा पति पाने के लिए करती हैं। 

🌓  गुजरात में शरद पूर्णिमा को लोग रास रचाते हैं और गरबा खेलते हैं। मणिपुर में भी श्रीकृष्ण भक्त रास रचाते हैं। पश्चिम बंगाल और उडिसा में शरद पूर्णिमा की रात को महालक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस पूर्णिमा को जो महालक्ष्मी का पूजन करते हैं और रात भर जागते हैं, उनकी सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।

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जय जय जय महिषासुर मर्दिनी नवरात्रि के अवसर पर भगवती मां जगदम्बा संसार की अधिष्ठात्री देवी है. जिसके पूजन-मनन से जीवन की समस्त कामनाओं की पूर...