मांब्रह्मचारिणी
।। कवच।।
त्रिपुरा मे हृदयंपातु ललाटेपातु शंकर भामिनी।
अर्पणा सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पंचदशी कण्ठे पातु मध्यदेशे पातु महेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।
।।ध्यान मंत्र।।
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृत शेखराम्।
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्म चारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥
परम वदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावण्यम् ,
स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
।। मंत्र।।
रुद्राक्ष माला से निम्नलिखित एक मंत्र की ५ या ११ माला जप करें-
१-ॐ ब्रं ब्रह्मचारिणे नमः।
२-ॐ ब्रां ब्रीं ब्रूं ब्रह्मचारिण्यै नम:।
॥नमस्कार मंत्र॥
दधानां करपद्याभ्यामक्षमाला कमण्डलु।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्माचारिण्यनुत्तमा॥
।।स्तोत्र।।
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
मां ब्रह्मचारिणी का पूजन करने के लिए निम्न नियमों का पालन करना फलदायक होता है-
१- पहले सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहन लें।
२- मां को पीला रंग अत्यंत प्रिय है। अत: पीले रंग के वस्त्रादि का प्रयोग कर मां की आराधना करना शुभ होता है।
३- अब ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए उनका यंत्र चित्र या मूर्ति पूजा स्थान पर स्थापित करें।
४- माता के यंत्र चित्र या मूर्ति पर कुमकुम अक्षत,फूल चढ़ाकर धूप दीपक जलाएं रेशमी डोरी और नैवेद्य अर्पण करें।
५- मां को नैवेद्य में चीनी शक्कर और मिश्री पंचामृत का भोग चढ़ाएं। माता को दूध से बने व्यंजन भी अतिप्रिय हैं।
६- इनका भोग लगाने से ज्ञान वैराग्य आयु में बढ़ोतरी होती है।
७- साधना के बाद मीठे फल दान करें। आप चाहें तो त्रिपुर सुंदरी साधना भी कर सकते हैं।
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