Wednesday, 25 June 2025

#भवान्याष्टकम्

#भवान्यष्टकम् 
 The stotra is from Devi Mahatmya. Bhavani Ashtakam is a famous melody on Goddess Bhavani, who is understood for her guardian and forgiving nature.
#Bhavani #Ashtakam #Stotram is a stotra in which the seeker begs forgiveness from the mother for all his good and bad karmas.

Bhavani Ashtakam is a famous melody on Goddess Bhavani, who is understood for her guardian and forgiving nature.

Bhavani Ashtakam is a wonderful hymn composed by Sri Adi Shankaracharya. 
The Vocals of this hymn have an in-depth intention that defines, I don’t have anyone or anything other than you, the divine mother Bhavani to protect in all challenging situations.

Bhavani Ashtakam Stotram is a stotra in which the seeker begs forgiveness from the mother for all his good and bad karmas. The stotra is from Devi Mahatmya.

There is no such divine stotra of Goddess Durga like Bhavani Ashtakam. This Stotra aligns a seeker with the divine and unfailing grace of Goddess Durga.

One should always practice this Durga stotra after worshipping the Goddess Durga. The sadhak who practices this stotra feels a difference in the quality of their lives.

Bhavani Ashtakam wit Meaning in Hindi & English
 
भवान्यष्टकम् 

    न तातो न माता न बन्धुर्न दाता
        न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता ।
          न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥१॥

 na tātō na mātā na bandhurna dātā
          na putrō na putrī na bhr̥tyō na bhartā .
    na jāyā na vidyā na vr̥ttirmamaiva
          gatistvaṁ gatistvaṁ tvamēkā bhavāni .. 1..

हे भवानि ! पिता, माता, भाई, दाता, पुत्र, पुत्री, भृत्य, स्वामी, स्त्री, विद्या और वृत्ति—इनमेंसे कोई भी मेरा नहीं है, हे देवि ! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो ॥ १ ॥

Neither the mother nor the father,
Neither the relation nor the friend,
Neither the son nor the daughter,
Neither the servant nor the husband,
Neither the wife nor the knowledge,
And neither my sole occupation,
Are my refuges that I can depend, Oh, Bhavani.
So you are my refuge and my only refuge, Bhavani.

    भवाब्धावपारे महादुःखभीरु
          प्रपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः ।
          कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥२॥

   bhavābdhāvapārē mahāduḥkhabhīru
          prapāta prakāmī pralōbhī pramattaḥ .
    kusaṁsārapāśaprabaddhaḥ sadāhaṁ  
          gatistvaṁ gatistvaṁ tvamēkā bhavāni .. 2..

मैं अपार भवसागरमें पड़ा हुआ हूँ, महान् दुःखोंसे भयभीत हूँ; कामी, लोभी, मतवाला तथा घृणायोग्य संसारके बन्धनोंमें बँधा हुआ हूँ, हे भवानि ! अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो ॥ २ ॥

I am in this ocean of birth and death,
I am a coward, who dares not face sorrow,
I am filled with lust and sin,
I am filled with greed and desire,
And tied I am, by this useless life that I lead,
So you are my refuge and my only refuge, Bhavani.

    न जानामि दानं न च ध्यानयोगं
    न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम्।
    न जानामि पूजां न च न्यासयोगं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥३॥

  na jānāmi dānaṁ na ca dhyānayōgaṁ
          na jānāmi tantraṁ na ca stōtramantram .
    na jānāmi pūjāṁ na ca nyāsayōgaṁ
          gatistvaṁ gatistvaṁ tvamēkā bhavāni .. 3..

हे देवि ! मैं न तो दान देना जानता हूँ और न ध्यानमार्गका ही मुझे पता है, तन्त्र और स्तोत्र-मन्त्रोंका भी मुझे ज्ञान नहीं है, पूजा तथा न्यास आदिकी क्रियाओंसे तो मैं एकदम कोरा हूँ, अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो ॥ ३ ॥

Neither do I know how to give,
Nor do I know how to meditate,
Neither do I know tantra,
Nor do I know stanzas of prayer,
Neither do I know how to worship,
Nor do I know the art of yoga,
So you are my refuge and my only refuge, Bhavani.

    न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं
    न जानामि मुक्तिं लयं वाकदाचित् 
      न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातर्-
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥४॥

   na jānāmi puṇyaṁ na jānāmi tīrthaṁ
          na jānāmi muktiṁ layaṁ vā kadācit .
    na jānāmi bhaktiṁ vrataṁ vāpi mātar-
          gatistvaṁ gatistvaṁ tvamēkā bhavāni .. 4..

न पुण्य जानता हूँ न तीर्थ, न मुक्तिका पता है न लयका | हे मातः ! भक्ति और व्रत भी मुझे ज्ञात नहीं है, हे भवानि ! अब केवल तुम्हीं मेरा सहारा हो ॥ ४ ॥

Know I not how to be righteous,
Know I not the way to the places sacred,
Know I not methods of salvation,
Know I not how to merge my mind with God,
Know I not the art of devotion,
Know I not how to practice austerities, Oh, mother,
So you are my refuge and my only refuge, Bhavani.

    कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः
          कुलाचारहीनः कदाचारलीनः ।
          कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥५॥

    kukarmī kusaṅgī kubuddhiḥ kudāsaḥ
          kulācārahīnaḥ kadācāralīnaḥ .
    kudr̥ṣṭiḥ kuvākyaprabandhaḥ sadāhaṁ
          gatistvaṁ gatistvaṁ tvamēkā bhavāni .. 5..

मैं कुकर्मी, बुरी संगतिमें रहनेवाला, दुर्बुद्धि, दुष्टदास, कुलोचित सदाचारसे हीन, दुराचारपरायण, कुत्सित दृष्टि रखनेवाला और सदा दुर्वचन बोलनेवाला हूँ, हे भवानि ! मुझ | अधमकी एकमात्र तुम्हीं गति हो ॥ ५ ॥

Perform I bad actions,
Keep I company of bad ones,
Think I bad and sinful thoughts,
Serve I, bad masters,
Belong I to a bad family,
Immersed I am in sinful acts,
See I with bad intentions,
Write I collection of bad words,
Always and always,
So you are my refuge and my only refuge, Bhavani.

    प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं
       दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित् ।
       न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥६॥

    prajēśaṁ ramēśaṁ mahēśaṁ surēśaṁ
          dinēśaṁ niśīthēśvaraṁ vā kadācit .
    na jānāmi cānyat sadāhaṁ śaraṇyē
          gatistvaṁ gatistvaṁ tvamēkā bhavāni .. 6.

मैं ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इन्द्र, सूर्य, चन्द्रमा, तथा अन्य किसी भी देवताको नहीं जानता, हे शरण देनेवाली भवानि ! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो ॥ ६ ॥

Neither do I know the creator,
Nor the lord of Lakshmi,
Neither do I know the lord of all,
Nor do I know the lord of devas,
Neither do I know the god who makes the day,
Nor the god who rules at night,
Neither do I know any other gods,
Oh, goddess to whom I bow always,
So you are my refuge and my only refuge, Bhavani.

    विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे
          जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये ।
          अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥७॥

  vivādē viṣādē pramādē pravāsē
          jalē cānalē parvatē śatrumadhyē .
    araṇyē śaraṇyē sadā māṁ prapāhi
          gatistvaṁ gatistvaṁ tvamēkā bhavāni .. 7..

हे शरण्ये ! तुम विवाद, विषाद, प्रमाद, परदेश, जल, अनल, पर्वत, वन तथा शत्रुओंके मध्यमें सदा ही मेरी रक्षा करो, हे भवानि ! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो॥ ७ ॥

While I am in a heated argument,
While I am immersed in sorrow,
While I am suffering an accident,
While I am traveling far off,
While I am in water or fire,
While I am on the top of a mountain,
While I am surrounded by enemies,
And while I am in a deep forest,
Oh goddess, I always bow before thee,
So you are my refuge and my only refuge, Bhavani.

    अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो
     महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः।
     विपत्तौ प्रविष्टः प्रनष्टः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥८॥

 anāthō daridrō jarārōgayuktō
          mahākṣīṇadīnaḥ sadā jāḍyavaktraḥ .
    vipattau praviṣṭaḥ pranaṣṭaḥ sadāhaṁ
          gatistvaṁ gatistvaṁ tvamēkā bhavāni .. 8..

हे भवानि ! मैं सदासे ही अनाथ, दरिद्र, जरा-जीर्ण, रोगी, अत्यन्त दुर्बल, दीन, गूँगा, विपद्ग्रस्त और नष्ट हूँ, अब तुम्हीं एकमात्र मेरी गति हो ॥ ८ ॥

While being an orphan,
While being extremely poor,
While affected by the disease of old age,
While I am terribly tired,
While I am in a pitiable state,
While I am being swallowed by problems,
And while I suffer serious dangers,
I always bow before thee,
So you are my refuge and only refuge, Bhavani.

॥ इति श्रीमदादिशङ्कराचार्यविरचितं भवान्यष्टकं सम्पूर्णम् ॥
🪷🙏🌷🙏🏻🌷🙏🏻🌷🙏🏻🌷🙏🏻🪷

Tuesday, 10 June 2025

#पितृ #स्तोत्र रुचिरुवाच

महात्मा रूचि कृत पितृ स्तोत्र

मार्कंडेय पुराण में वर्णित इस चमत्कारी पितृ स्तोत्र का नित्य पाठ करने से पितरों की प्रसन्नता प्राप्त होती ही है।
पितृ स्तोत्र, जिसे "पूर्वजों के लिए प्रार्थना" के रूप में भी जाना जाता है, एक पवित्र प्रार्थना है जो अपने पूर्वजों को सम्मानित करने और उन्हें प्रसन्न करने के लिए समर्पित है,  पूर्वजों को "पितृ" के रूप में जाना जाता है। 
ऐसा माना जाता है कि पूर्वजों के लिए प्रार्थना करने से परिवार को आशीर्वाद, सुरक्षा और शांति मिल सकती है। पितृ स्तोत्र का पाठ भक्त कृतज्ञता व्यक्त करने, क्षमा मांगने और अपने दिवंगत पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के लिए करते हैं।
रुचिरुवाच 

अर्चितनाममूर्त्तानां पितृणां दीप्ततेजसां | 
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम(तेजसां)|| 

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा | 
सप्तर्षीणां तथान्येषां ताँ नमस्यामि कामदान || 

मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रमसोस्तथा | 
ताँ नमस्याम्यहं सर्वान पितृनप्सूदधावपि || 

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा | 
द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलिः || 

देवर्षीणां जनितॄंश्च सर्वलोकनमस्कृतान | 
अक्षय्यस्य सदा द्दातृन नमस्येहं कृताञ्जलिः || 

प्रजापतेः कश्यपाय सोमाय वरुणाय च | 
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलिः || 

नमोगणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु | 
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुसे || 

सोमाधारान पितृगणान योगमूर्त्तिधरांस्तथा | 
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जागतामहम ||
 
अग्निरूपांस्तथैवान्यान नमस्यामि पितॄनहम | 
अग्नीषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः || 

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः | 
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरुपिणः || 

तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः | 
नमो नमो नमस्ते में प्रसीदन्तु स्वधाभुजः || 

महात्मा रूचि की इस स्तुति करने पर पितर दशो दिशाओ में से प्रकाशित पुंज में से बाहर निकलकर प्रसन्न हुए | 
रूचि ने जो चन्दन-पुष्प अर्पण किये थे उसी को धारणकर पितर प्रकट हुए | 
तब महात्मा रुचिने फिर से पितरो को दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार किया |
 तब उसने पितरो को कहा की ब्रह्माजी ने मुझे सृष्टि के विस्तार करने को कहा है इसलिए आप मुझे उत्तम श्रेष्ठ पत्नी प्राप्त हो 
ऐसा आशीर्वाद दो | जिससे दिव्यसंतान की उत्पत्ति हो सके | 
तब पितरों ने कहा यही समय तुम्हे उत्तम पत्नी की प्राप्ति होगी और उसके गर्भ से तुम्हे मनु संज्ञक उत्तम पुत्र की प्राप्ति होगी | 
तीन्हों लोकों में वे तुम्हारे ही नाम से "रौच्य" नाम से प्रसिद्द होगा | 
पितरो ने कहा : जो मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करेंगे हम उसे मनोवांछित भोग और उत्तम फल प्रदान करेंगे | 
जो निरोगी रहना चाहता हो-धन-पुत्रको प्राप्त करना चाहता हो वो सदैव इस स्तुति से हमें प्रसन्न करे | 
यह स्तोत्र हमें प्रसन्न करनेवाला है | 
जो श्राद्ध में भोजन करनेवाले ब्राह्मण के सामने खड़ेहोकर भक्तिपूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करेगा उसके वहा हम निश्चय ही उपस्थित हो कर हमारे लिए किये हुए श्राद्ध को हम ग्रहण करेंगे | 
जहा पर श्राद्ध में इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है वहा हम लोगो को बारह वर्षोतक बने रहनी वाली तृप्ति करने में समर्थ होता है | 
यह स्तोत्र हेमंत ऋतु में श्राद्ध के अवसर पर सुनाने से हमें बारह वर्षोतक तृप्ति प्रदान करता है,
इसी प्रकार शिशिर ऋतु में हमें चौबीस वर्षो तक तृप्ति प्रदान करता है 
वसंत ऋतु में हमें सोलह वर्षो तक तृप्ति प्रदान करता है 
ग्रीष्मऋतु में भी सोलह वर्षो तक तृप्ति प्रदान करता है 
वर्षाऋतु में किया हुआ यह स्तोत्र का पाठ हमे अक्षय तृप्ति प्रदान करता है 
शरत्काल में किया हुआ इसका पाठ हमें पंद्रह वर्षो तक तृप्ति प्रदान करता है 
जिस घर में यह स्तोत्र लिखकर रखा जाता है वहा हम श्राद्ध के समय में उपस्थित हो जाते है | 
श्राद्ध में ब्राह्मणो को भोजन करवाते समय इस स्तोत्र को अवश्य पढ़ना चाहिए यह हमें पुष्टि प्रदान करता है |  
|| अस्तु || 

#रति #कामदेव #सौंदर्य #मंत्र

#रति #कामदेव #सौंदर्य #मंत्र 
का जाप-

शुक्रवार की रात या किसी शुभ मुहूर्त पर शुरू करें।

मंत्र साधना की सफलता के लिए अपने गुरु की पूजा करें।

घी या तेल का दीपक और धूप जलाएं।

अपने सामने थोड़ा गुलाब जल, 5 बादाम और दूध लें।

21 दिनों तक प्रतिदिन रति कामदेव सौंदर्य मंत्र का 1 माला जाप करें।

सोते समय अपने चेहरे पर गुलाब जल लगाएं और अगली सुबह बादाम और दूध का सेवन करें।

हर दिन 30-40 मिनट तक व्यायाम या योग करना अपनी दिनचर्या में शामिल करें।

जंक फूड से हर कीमत पर बचें।

सौंदर्य मंत्र
रति कामदेव मंत्र

“ॐ क्लीं क्लीं क्लीं रतिक्रियायै कामदेवायै मम
अंगे उपांगे प्रविश्य सुदर्शनायै क्लीं क्लीं क्लीं फट् “
“Om Kleem Kleem Kleem Ratikriyayee Kamadevaya Mam
Ange Upange Pravishya Sudarshanayee Kleem Kleem Kleem Phat”

#तुलसी #स्तोत्रम् #पुंडरीक कृत

तुलसी स्तोत्रम्‌      (हिंदी अर्थ सहित) # Shri # Tulsi # Stotram      (With Hindi meaning) जगद्धात्रि नमस्तुभ्यं विष्णोश्च प्रियवल्लभे । यतो...