Thursday, 3 October 2024

#देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्

#देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्!! (हिंदीअर्थ सहित) 
          यहमाँ दुर्गा का एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है, यदि आपसे माँ दुर्गा की पूजा में कोई त्रुटी हो गयी है, आपको लगे कि किसी ने आपके उपर तंत्र प्रयोग कर दिया है, जिसके कारण आपकी शक्ति काम नहीं कर रही है या नष्ट हो गयी है, तो आप रात्रि के समय, 9 बजे से 11 बजे के बीच लाल के ऊनऊनी आसन पर बैठकर, पूर्व दिशा की और मुख करके, देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम् के 1,3, या 5 पाठ अवश्य ही करें, उसके बाद आप माँ दुर्गा की आरती करें।

इस तरह पाठ करने से माँ प्रसन्न होती है, और आपकी गलती को क्षमा करके माँ आपकों आशिर्वाद प्रदान करती है। 

न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथा:।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम्।।1।।

अर्थ – हे मातः ! मैं तुम्हारा मन्त्र, यंत्र, स्तुति, आवाहन, ध्यान, स्तुतिकथा, मुद्रा तथा विलाप कुछ भी नहीं जानता, परन्तु सब प्रकार के क्लेशों को दूर करने वाला आपका अनुसरण करना ही जानता हूँ.

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव  चरणयोर्या च्युतिरभूत्।
तदेतत्क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति।।2।।

अर्थ: सबका उद्धार करने वाली हे करुणामयी माता ! तुम्हारी पूजा की विधि न जान्ने के कारण, धन के आभाव में, आलस्य से और उन विधियों को अच्छी तरह न कर सकने के कारण, तुम्हारे चरणों की सेवा करने में जो भूल हुई हो उसे क्षमा करो, क्योंकि पूत तो कपूत हो जाता है पर माता कुमाता नहीं होती.

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहव: सन्ति सरला:
परं  तेषां  मध्ये  विरलतरलोSहं  तव  सुत:।
मदीयोSयं त्याग: समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति।।3।।

अर्थ: माँ ! भूमण्डल में तुम्हारे सरल पुत्र अनेको है पर उनमे एक मैं विरला ही बड़ा चंचल हूँ, तो भी हे शिवे ! मुझे त्याग देना तुम्हे उचित नहीं, क्योंकि पूत तो कपूत हो जाता है पर माता कुमाता नहीं होती.

जगन्मातर्मातस्तव  चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया।
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति।।4।।

अर्थ:  हे जगदम्ब ! हे मातः ! मैंने तुम्हारे चरणों की सेवा नहीं की अथवा तुम्हारे लिए प्रचुर धन भी समर्पण नहीं किया तो भी मेरे ऊपर यदि तुम ऐसा अनुपम स्नेह रखती हो तो यह सच ही है की क्योंकि पूत तो कपूत हो जाता है पर माता कुमाता नहीं होती.

परित्यक्ता देवा विविधविधिसेवा कुलतया
मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि।
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भवितानिरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम्।।5।।

अर्थ:  हे गणेश जननी ! मैंने अपनी पचासी वर्ष से अधिक आयु बीत जाने पर विविध विधियों द्वारा पूजा करने से घबड़ा कर सब देवों को छोड़ दिया है, यदि इस समय तुम्हारी कृपा न हो तो मैं निराधार होकर किस की शरण में जाऊं?

श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकै:।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जन: को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ।।6।।

अर्थ: हे माता अपर्णे ! यदि तुम्हारे मंत्राक्षरों के कान में पड़ते ही चांडाल भी मिठाई के समान सुमधुरवाणी से युक्त बड़ा भारी वक्ता बन जाता है और महादरिद्र भी करोड़पति बन कर चिरकाल तक निर्भय विचरता है तो उसके जप का अनुष्ठान करने पर जपने से जो फल होता है, उसे कौन जान सकता है?

चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपति:।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम्।।7।।

अर्थ: जो चिता का भस्म रमाए है, विष खाते है, नंगे रहते है, जटाजूट बांधे है, गले में सर्पमाला पहने है, हाथ में खप्पर लिए है, पशुपति और भूतों के स्वामी है, ऐसे शिवजी ने भी जो एकमात्र जगदीश्वर की पदवी प्राप्त की है, वह हे भवानि ! तुम्हारे साथ विवाह होने का ही फल है.

न मोक्षस्याकाड़्क्षा भवविभववाण्छापि च न मे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुन:।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपत:।।8।।

अर्थ: हे चंद्रमुखी माता ! मुझे मोक्ष की इच्छा नहीं है, सांसारिक वैभव की भी लालसा नहीं है, विज्ञान तथा सुख की भी अभिलाषा नहीं है, इसलिए मैं तुमसे यही मांगता हूँ कि मेरी साड़ी आयु मृडानी, रुद्राणी, शिव-शिव, भवानी आदि नामो के जपते-जपते ही बीते.

नाराधितासि विधिना विविधोपचारै:
किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभि:।
श्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव।।9।।

अर्थ: हे श्याम ! मैंने अनेको उपचारों से तुम्हारी सेवा नहीं कि (यही नहीं, इसके विपरीत) अनिष्ट चिंतन में तत्पर अपने वचनों से मैंने क्या नहीं किया? (अर्थात अनेकों बुराइयाँ कि है) फिर भी मुझ अनाथ पर यदि तुम कुछ कृपा रखती हो तो यह तुम्हे बहुत ही उचित है, क्योंकि तुम मेरी माता हो.

आपत्सु मग्न: स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथा:
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति।।10।।

अर्थ – हे दुर्गे ! हे दयासागर माहेश्वरी ! जब मैं किसी विपत्ति में पड़ता हूँ तो तुम्हारा ही स्मरण करता हूँ, इसे तुम मेरी दुष्टता मत समझना, क्योंकि भूखे-प्यासे बालक अपनी माँ को याद किया करते हैं.

जगदम्ब विचित्रमत्र किं परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि।
अपराधपरम्परावृतं न हि माता समुपेक्षते सुतम्।।11।।

अर्थ:  हे जगज्जननी ! मुझ पर तुम्हारी पूर्ण कृपा है, इसमें आश्चर्य ही क्या है? क्योंकि अनेक अपराधों से युक्त पुत्र को भी माता त्याग नहीं देती.

मत्सम: पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि।
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथा योग्यं तथा कुरु।।12।।

अर्थ: हे महादेवी ! मेरे समान कोई पापी नहीं है और तुम्हारे समान कोई पाप नाश करने वाली नहीं है, यह जानकार जैसा उचित समझो, वैसा करो.

इति श्रीमच्छंकराचार्यकृतं देव्यपराध क्षमापनस्तोत्रम्।
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#श्रीगायत्रीशापविमोचनम् / #गायत्री शापोद्धार स्तोत्र

#श्रीगायत्रीशापविमोचनम् / गायत्री शापोद्धार स्तोत्र 
शापमुक्ता हि गायत्री चतुर्वर्गफलप्रदा ।
अशापमुक्ता गायत्री चतुर्वर्गफलान्तका॥

ॐ अस्य श्रीब्रह्मशाप विमोचन मन्त्रस्य निग्रहानुग्रह कर्ता प्रजापतिरृषिः अथवा ब्रह्मा ऋषिः । कामदुघा गायत्री छन्दः।भुक्तिमुक्तिप्रदा ब्रह्मशापविमोचनी गायत्रीशक्ति र्देवता।ब्रह्मशापविमोचनार्थे जपे विनियोगः ॥

ॐ गायत्रीं ब्रह्मेत्युपासीत यद्रूपं ब्रह्मविदो विदुः ।
तां पश्यन्ति धीराः सुमनसो वाचमग्रतः ।
ॐ वेदान्तनाथाय विद्महे हिरण्यगर्भाय धीमही तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ।
ॐ देवि गायत्री त्वं ब्रह्म शापात् विमुक्ता भव ॥

     ॐ अस्य श्रीवसिष्ठशाप विमोचन मन्त्रस्य निग्रहानुग्रहकर्ता वसिष्ठऋषिः विश्वोद्भवा गायत्री छन्दःवसिष्ठानुग्रहिता गायत्रीशक्ति देवताः।वसिष्ठ शाप विमोचनार्थं जपे विनियोगः ॥

तत्त्वानि चाङ्गेष्वग्निचितो धियांसः ध्यायति विष्णोरायुधानि बिभ्रत् ।
जनानता सा परमा च शश्वत् । गायत्रीमासाच्छुरनुत्तम च धाम
ॐ गायत्रीवसिष्ठशापाद्विमुक्ता भव ।

ॐ सोऽहमर्कमयं ज्योतिरात्मज्योतिरहं शिवः । 
आत्मज्योतिरहं शुक्रः सर्वज्योतिरसोऽस्म्यहम् ॥ 
(इति युक्त्व योनि मुद्रां प्रदर्श्य गायत्री त्रयं पदित्व )
( योनि मुद्रा दिखाकर ३-तीन बार गायत्री मन्त्र का जाप करे ।) 
ॐ देवी गायत्री त्वं वसिष्ठ शापात् विमुक्ता भव ॥

ॐ अस्य श्रीविश्वामित्र शापविमोचन मन्त्रस्य नूतनसृष्टिकर्ता विश्वामित्रऋषिः वाग्दोहा गायत्री छन्दः। विश्वामित्रानुगृहिता गायत्री शक्तिः सविता देवता। विश्वामित्रशाप विमोचनार्थे जपे विनियोगः ॥

तत्त्वानि चाङ्गेष्वग्निचितो धियांसस्त्रिगर्भां यदुद्भवां
देवाश्चोचिरे विश्वसृष्टिम् । तां कल्याणीमिष्टकरीं
प्रपद्ये यन्मुखान्निःसृतो वेदगर्भः ॥

ॐ गायत्रि त्वं विश्वामित्रशापाद्विमुक्ता भव ॥

ॐ गायत्रीं भजाम्यग्निमुखीं विश्वगर्भां यदुद्भवाः । 
देवाश्चक्रिरे विश्वसृष्टिं तां कल्याणीमिष्टकरीं प्रपद्ये ॥ 
ॐ देवी गायत्री त्वं विश्वामित्र शापात् विमुक्ता भव ॥

ॐ अस्य श्रीशुक्रशापविमोचनमन्त्रस्य श्रीशुक्र ऋषिः ।अनुष्टुप्छन्दः । देवि गायत्री देवताः।शुक्र शाप विमोचनार्थं जपे विनियोगः ॥

सोऽहमर्कमयं ज्योतिरर्कज्योतिरहं शिवः। 
आत्मज्योतिरहं शुक्रः सर्वज्योतिर सोऽस्म्यहम् ॥

ॐ देवी गायत्री त्वं शुक्र शापात् विमुक्ता भव ॥

                    ~प्रार्थना ।
ॐ अहो देवि महादेवि सन्ध्ये विद्ये सरस्वती । 
अजरे अमरे चैव ब्रह्मयोनिर्निमोऽस्तुते ॥ 

ॐ देवी गायत्री त्वं ब्रह्मशापात् विमुक्ता भव । वसिष्ठशापात् विमुक्ता भव । 
विश्वामित्रशापात् विमुक्ता भव । 
शुक्रशापात् विमुक्ता भव ॥
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#नवरात्रि (गुप्त/प्रकट) #विशिष्ट मंत्र प्रयोग #दुर्गा #सप्तशती # पाठ #विधि #सावधानियां

जय जय जय महिषासुर मर्दिनी नवरात्रि के अवसर पर भगवती मां जगदम्बा संसार की अधिष्ठात्री देवी है. जिसके पूजन-मनन से जीवन की समस्त कामनाओं की पूर...